जानिए कंगना में ही दम है या 'सिमरन' में भी...
सिमरन की कहानी दिलचस्प भी है और प्रगतिशील भी. लेकिन स्क्रीनप्ले कमजोर है. शुरू के 15 मिनट फिल्म बेहद अच्छी लगती है. फिर धीरे-धीरे निर्देशक की पकड़ कमजोर पड़ने लगती है.
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कंगना रनौट हैं "सिमरन", इस फिल्म को देखने की उत्सुकता बहुत थी. मगर वजह एक नहीं अनेक है.
1) कंगना रनौट के बेबाक़ या कहें हैरतअंगेज़ बयान, चाहे ऋतिक रोशन हों, आदित्य पंचोली या फिर शेखर सुमन के पुत्र अध्ययन सुमन. सबके बारे में जी भर के जो बोलना था बोला.
2) कंगना एक बेहतरीन एक्ट्रेस हैं. "क्वीन", "तनु वेड्स मनु" और "तनु वेड्स मनु रिटर्न्स" जैसी हिट फिल्में इस बात का प्रमाण हैं.
3) वैसे फिल्म देखने की तीसरी वजह ये भी हो सकती है कि कंगना जो बेहतरीन एक्ट्रेस हैं. लेकिन साथ ही "कट्टी-बट्टी" "रिवॉल्वर रानी" और उनकी पिछली फिल्म "रंगून" जैसी फ्लॉप भी दे चुकी हैं.
4) जिन लोगों के उपर कंगना ने तोहमत या अलग-अलग क़िस्म के इल्ज़ाम लगाये, वो क्या सोच रहे होंगे? अगर फिल्म पिटी तो उनकी सोच क्या होगी? और अगर फिल्म हिट हुई तो उनके प्रति कंगना की सोच क्या होगी?
5) निर्देशक हंसल मेहता जिनकी फिल्म "सिटी लाइट" तो कुछ खास नहीं कर पाई थी. लेकिन राजकुमार यादव के साथ "शाहिद" और "अलिगढ़" जैसी फिल्मों से उन्हें तारीफ जरूर मिली.
6) फिल्म के लेखक अपूर्वा असरानी की कॉट्रोवर्सी. उन्होंने कंगना पर क्रेडिट टाइटल शेयर करने का इल्ज़ाम लगाया था.
7) असल ज़िंदगी के किरदार से प्रेरित है फिल्म "सिमरन".
कंगना का किरदार कमाल लेकिन फिल्म....
सिमरन की कहानी दिलचस्प है. एक गुजराती लड़की प्रफुल्ल पटेल जो अपने माता पिता से अलग रहना चाहती है. तलाकशुदा है. उसके बॉयफ़्रेंड्स भी हैं. उसका मानना है कि लड़का अगर चार लड़कियों को घुमा सकता है तो लड़की क्यों नहीं. शराब पीने या कसीनो में जुआ खेलने को वो बुरा नहीं समझती. एक होटल के हाऊस कीपिंग डिपार्टमेंट में वो काम करती है. लेकिन उसके माता-पिता उससे इतेफाक नहीं रखते. उनकी तो बस यही ख़्वाहिश है कि उनकी इकलौती बेटी की शादी दोबारा हो जाये.
मगर बेटी एकदम अलग सोचती है. इसी अलग सोच की वजह से वो जुए में बहुत से रुपए हार जाती है. फिर क़र्ज़ देनेवाला माफ़िया उसके पीछे पड़ जाता है. और उस क़र्ज़ को चुकाने के लिये प्रफुल्ल पटेल ऐसी ग़लतियां करती है कि वक्त के साथ उसका नाम सिमरन पड़ जाता है. आखिकार प्रफुल्ल यानि सिमरन अपनी मुसीबतों से छुटकारा पाती है या नहीं. सिमरन की कहानी दिलचस्प भी है और प्रगतिशील भी. लेकिन स्क्रीनप्ले कमजोर है. शुरू के 15 मिनट फिल्म बेहद अच्छी लगती है. फिर धीरे-धीरे निर्देशक की पकड़ कमजोर पड़ने लगती है. ख़ासतौर से इंटरवल के बाद तो लगता है कि कुछ भी हो रहा है. कंगना फिल्म में इतनी आसानी से बैंक लूटती है कि शायद कोई बच्चा दुकान से लॉलीपॉप भी इतनी आसानी से ना चुरा पाये. फिर प्रश्न उठने लगता कि है लेखक और निर्देशक फिल्म को खत्म कैसे करेंगे.
आखिरकार ख़ुशी इस बात की नहीं होती कि अंत में क्या हुआ बल्कि ख़ुशी इस बात की होती है कि फिल्म का अंत तो हुआ. अब मज़े की बात ये है कि लेखक अपूर्वा असरानी से अगर ये बात कही जाये तो वो इल्ज़ाम कंगना के सिर मढ़ देंगे. कंगना एडिशनल डायलॉग राइटर का क्रेडिट लिया है. फिर ज़ाहिर है कंगना अपूर्वा को नहीं बक्शने वाली. ख़ैर स्क्रीनप्ले में ग़लती तो दोनो की है. एक्टिंग के डिपार्टमेंट में ये फिल्म पूरी तरह से कंगना की है. उन्होंने एक बार फिर ये साबित कर दिया की वो कमाल की अभिनेत्री हैं. गुजराती लड़की के किरदार में उन्होंने जान डाल दी. कई सीन्स में कंगना हंसाने में कामयाब होती हैं. लेकिन "क्वीन" या "तनु वेड्स मनु रिटर्न" से तुलना की जाये तो उन फिल्मों की ख़ासियत ये थी कि कंगना के परफ़ॉर्मेंस के साथ पूरी फिल्म अच्छी थी. लेकिन यहां फिल्म के बारे ये नहीं कह सकते. कंगना रनौट को अच्छे निर्देशन और स्क्रीनप्ले का सपोर्ट नहीं मिला. कंगना के मंगेतर के रोल में सोहम शाह मिसकास्ट हैं. बाकी सभी कलाकरों ने औसत काम किया है. सचिन जिगर का संगीत बेदम है और अनुज धवन की सिनेमेटोग्राफ़ी औसत.
कंगना रनौट की वजह से फिल्म को ओपनिंग ठीक मिल सकती है. लेकिन माउथ पब्लिसिटी और फिल्म में बहुत अंग्रेज़ी डायलॉग होने की वजह से एक वर्ग फिल्म से नहीं जुड़ पायेगा. कंगना रनौट के करियर के लिये "सिमरन" एक अहम फिल्म है.
तो सवाल ये था कि "कंगना" में दम या "सिमरन" में?
जवाब है कंगना रनौट तो फिल्म में अच्छी हैं. लेकिन यही बात ओवरऑल "सिमरन" के लिये नहीं कह सकते. बाकी पैसे आपके हैं अपने रिस्क पर देखें.
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