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Updated: 10 फरवरी, 2023 06:42 PM
आईचौक
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भारतीय समाज चाहे तो यशराज फिल्म्स को बधाई दे सकता है. आमिर खान की फना और शाहरुख खान की मैं हूं ना जैसी तमाम फिल्मों के जरिए बॉलीवुड एक लंबे वक्त से कोशिश कर रहा था कि आतंकी नायकों की तरह पूजे जाए. और भले भारतीय समाज स्वप्न में भी यह मानने को कभी तैयार ना हो कि भारतीय सेना और रॉ जैसी एजेंसीज के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर देने वाले हमारे जवान कुछ भी हो सकते हैं मगर देश विरोधी नहीं हो सकता. बावजूद बॉलीवुड के बांद्रा बॉयज (मुंबई में रहने वाली एक ख़ास प्रजाति, जिसका अपना कुछ नहीं है) इससे इत्तेफाक नहीं रखते.

बांद्रा बॉयज जिन्हें फर्क नहीं पड़ता कि देश में किसकी सरकार है, देश की सीमाएं सुरक्षित हैं या नहीं, समाज एकजुट है या नहीं. देश में बेरोजगारी है गरीबी है. कोई भारत पर नियंत्रण बनाने की कोशिशों में लगा है. पठान में रॉ के आतंकी 'जिम' की भूमिका निभाने वाले जॉन अब्राहम के बयान से तो ऐसा ही नजर आ रहा है. हाल ही में जॉन ने कहा- बेहद खुशी मिल रही है कि लोग एंटी-हीरो (पठान के) के पक्ष में बोल रहे हैं. मैं खुशकिस्मत हूं कि मेरे काम को लोगों ने सराहा और मैं लोगों को एक ऐसा एंटी-हीरो देने में कामयाब रहा जिसे हमेशा याद रखा जाएगा.

john abrahamपठान में जॉन अब्राहम

पठान को लेकर जताई गई चिंताएं बिल्कुल जायज हैं

जॉन का यह बयान मामूली नहीं है. जॉन की पहचान एक नेशलिस्ट एक्टर के रूप में की जाती थी. उन्होंने कई बेहतरीन फ़िल्में देकर दर्शकों से यह छवि अर्जित की थी. आईचौक ने पहले ही सोशल मीडिया पर चल रही बहसों को आधार बनाने हुए अपने विश्लेषणों में आशंका जताई थी कि जॉन को साफ़-सुथरे आतंकी के रूप में कास्ट करना नैरेटिव गढ़ने की दिशा में अहम कदम माना जाएगा. जॉन की जो लीगेसी रही है उसमें लोग आतंकी को आतंकी की तरह नहीं लेंगे.

दूसरी चिंता यह जताई गई थी कि जिस तरह पठान में भारत विरोधी इस्लामिक आतंक का चेहरा बदला गया है- वह भी भारत विरोधी नैरेटिव को भारतीय समाज में सार्वभौम बनाने की कोशिश है. मगर कम चिंताजनक बात यह भी नहीं कि जो आतंकी कैरेक्टर गढ़ा गया उसके जरिए भले एक मजहब विशेष को बचाया गया, मगर दूसरे मजहब का इस्तेमाल किया गया कि आतंकी बैकग्राउंड दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आता. उसके नाम से पता चलता है कि वह ईसाई है. हो सकता है ऐसा ना भी हो. क्योंकि पठान की तरह उसकी धार्मिक पहचान फिल्म में बहुत साफ़ नहीं होती है. यशराज फिल्म को लगता है कि पाकिस्तानी मुसलमान आतंकी और भारत विरोधी नहीं हो सकता है. 'जिम' (हिंदू भी हो सकता है ईसाई भी) के रूप में एक गैरमुस्लिम को आतंकी के रूप में देखने का तर्क गढ़ा गया है.

भारत में देश के खाए-अघाए दीमकों की एक फ़ौज तैयार हो गई है. देश, उसकी संस्थाओं और उसकी चिंताओं से अलग उनकी मान्यता है. दिन रात भारत की बर्बादी की कामना करने वाले पाकिस्तानी उन्हें मानवीय लगते नहीं अब. पठान में बॉलीवुड की वही कोशिशें आसमान पर नजर आती हैं. जॉन अब्राहम ने पठान में एक आतंकी की भूमिका निभाई है. एक ऐसा आतंकी जो रॉ का पूर्व अफसर था, लेकिन आतंकी बन जाता है और पैसों के बदले भारत पर हमले की साजिश रचता है. जिसे पठान के रूप में ईमान का पक्का "मुल्क भक्त" रोकता है.

यह फिल्म यशराज ने बनाई है. यशराज जासूसी कहानियां बनाने के लिए मशहूर हैं. और टाइगर सीरीज में उन्होंने जासूसों की कहानियों से प्रेरित मगर मनमाने तरह से फ़िल्में बनाई हैं. उनका जासूस पाकिस्तानी जासूस को दिल दे बैठता है और उसे लेकर भाग जाता है. यहां पूरी तरह से फर्जी कहानियां दिखाने में उस्तादी नजर आती है मगर जो सच्चाई है उसे कथित इस्लामोफोबिया के नाम पर बदला जा रहा है. पठान उसका जीता जागता और ताजा सबूत माना जा सकता है.

बॉलीवुड में यह कोशिश आज की नहीं है. एक जमाने से यह कई फिल्मों में नजर आता है. समझना मुश्किल नहीं कि आखिर क्यों पठान में जासूसी की एक नकली कहानी गढ़ी गई और जॉन के रूप में एक फर्जी आतंकी चेहरा स्थापित करने की कोशिशें हुईं. अगर भारतीय समाज ने पठान का विरोध किया तो गलत नहीं किया. पठान का कॉन्टेंट हमेशा सवालों के घेरे में रहेगा.

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