मदर इंडिया के सुखीलाला याद हैं? डॉक्युमेंट्री में दिखेगी कन्हैया लाल की बेमिसाल यात्रा
अभिनेता कन्हैया लाल ने मदर इंडिया में नर्गिस के अपोजिट सुखी लाल का अमर किरदार निभाया था. उन्होंने करीब 105 फ़िल्में कीं मगर हिंदी सिनेमा में उनके योगदान को लेकर कुछ नहीं दिखता. अब उनकी बेटी हेमा सिंह पिता के जीवन पर डॉक्यूमेंट्री लेकर आ रही हैं.
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अभिनेता कन्हैयालाल बॉलीवुड के उन दिग्गज अभिनेताओं में शुमार हैं जिनके अभिनय की छाप दशकों बाद आजतक फीकी नहीं पड़ी है. हिंदी सिनेमा के उन शुरुआती कलाकारों की उस पीढ़ी के प्रतिनिधि भी हैं जिन्होंने देश-विदेश के सिनेमा जगत को अपनी एक्टिंग क्षमता से हिलाकर रख दिया. उनकी टक्कर का शायद ही कोई कैरेक्टर आर्टिस्ट नजर आए. अगर मदर इंडिया की वजह से नर्गिस अभिनय के शिखर पर दिखती हैं तो कन्हैयालाल भी उनके अपोजिट धूर्त और मौक़ा परस्त साहूकार की भूमिका में सर्वश्रेष्ठ खलनायक नजर आते हैं. हालांकि सिनेमा में उनके योगदान को भुला दिया गया है. उनका अभिनय आज भी मिसाल की तरह मौजूद है. हालांकि देश के सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान देने के बावजूद किसी चर्चा या पहल में उनके हिस्से का क्रेडिट नजर नहीं आता.
कन्हैयालाल की बेटी हेमा सिंह इस बात से दुखी जरूर हैं लेकिन उन्होंने अलग तरीका अपनाया है. सिनेमा में पिता के योगदान को खुद रखने के सामने रखने का फैसला किया है. उन्होंने आइचौक को बताया- कन्हैलाल के समूचे जीवन संघर्ष को उन्होंने एक डॉक्युमेंट्री में समेटा है. और अगर सबकुछ ठीक ठाक रहा तो अगले कुछ महीनों में डॉक्युमेंट्री दर्शकों के बीच मौजूद होगी. हीमा सिंह ने कहा- "बनारस से लेकर मुंबई तक बाबूजी के जीवन के हर पहलू को डॉक्युमेंट्री में लिया गया है. शूट का काम पूरा हो चुका है. कोरोना से हालात सामान्य होते ही बचा खुचा काम पूरा कर डॉक्युमेंट्री रिलीज की जाएगी."
डॉक्युमेंट्री में काफी हिस्सा बनारस का भी है जहां 1910 में कन्हैयालाल का जन्म हुआ था. इसी शहर में उन्होंने साहित्य के साथ अभिनय का ककहरा सीखा.
मदर इंडिया के एक दृश्य में कन्हैया लाल और नर्गिस. फोटो- ईगल होम एंटरटेनमेंट्स से साभार.
लीजेंड को याद करते दिखेंगे अमिताभ बच्चन
हेमा सिंह ने बताया कि यह उनकी ओर से पिता को श्रद्धांजलि है जिसके लिए बॉलीवुड के कई लीजेंड कैमरा के सामने आए हैं. अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर और नसीरुद्दीन शाह जैसे सितारे डॉक्युमेंट्री में कन्हैलालाल के योगदान को याद करते नजर आएंगे. इसका निर्माण वे खुद अपने बैनर से कर रही हैं. इसे दुनियाभर में दिखाने की तैयारी है. हेमा की कोशिश डॉक्युमेंट्री को दुनिया के प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में भी ले जाने की है. साथ ही बनारस में भी स्क्रीनिंग की व्यवस्था करेंगी उस शहर में जहां कन्हैयालाल के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है. दिग्गज अभिनेता की बेटी से जब यह पूछा गया कि आजकल डॉक्युमेंट्री को ओटीटी पर दिखाने का चलन है- उन्होंने कहा अभी किसी प्लेटफॉर्म से बात तो नहीं हुई है मगर वे जरूर चाहेंगी की यह किसी ना किसी प्लेटफॉर्म पर आए ताकि ज्यादा से ज्यादा दर्शक उनके पिता के जीवन, संघर्ष और योगदान के बारे में जान सकें.
हेमा सिंह ने कहा- सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान देने के बावजूद उनके पिता को सरकार और संबंधित व्यवस्थाओं ने भुला दिया. सरकार की तरफ से उन्हें नागरिक सम्मान तक नहीं दिया गया. ना तो उनके नाम पर कोई अवॉर्ड है ना ही मेमोरियल. जिस शहर में उनका जन्म हुआ वहां भी उनका कोई स्टेच्यू तक नहीं है. बनारस शहर और उनके पिता एक दूसरे के ही पहलू रहें जिसकी झलक डॉक्युमेंट्री में देखने को मिलेगी. कन्हैयालाल क्या थे, कहां से निकलकर आए थे और उन्होंने क्या कुछ किया है- पहली बार दर्शकों को अभिनेता के जीवन की तमाम बातें जानने को मिलेंगी.
विरासत में मिली थी एक्टिंग, पिता चलाते थे रामलीला मंडली
कन्हैयालाल का पूरा नाम कन्हैयालाल चतुर्वेदी है. अभिनय विरासत में मिली थी. बनारस में उनके पिता रामलीला मंडली चलाते थे. लेकिन पिता की काफी पहले मौत हो गई और कन्हैयालाल का परिवार मुश्किलों में आ गया. इन दिनों उन्हें पंसारी की दुकान तक चलानी पड़ी. लेकिन अभिनय में उनकी जाना थी. कुछ समय बाद सिनेमा के लिए उन्होंने मुंबई जाने का फैसला किया. ताकि पैसे कमाकर घर की मदद कर सकें. कन्हैयालाल भाई के साथ मुंबई चले आए और फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट के रूप में कम करने लगे. साल 1938 में उनकी पहली फिल्म आई थी. उनकी शक्ल सूरत और गंवई अंदाज ने उन्हें बड़ी पहचान दिलाई.
1940 में महबूब खान की औरत में कन्हैया लाल ने यादगार भूमिका निभाई. 17 साल बाद जब 1957 में मदर इंडिया के रूप में इसी फिल्म का रीमेक सामने आया कन्हैया लाल की भूमिका ने हर किसी का ध्यान खींचा. धूर्त कपटी और लम्पट सुखीलाला का उनका किरदार अमर हो गया. सुखीलाला की टक्कर का दूसरा किरदार बॉलीवुड में शायद ही देखने को मिले. कन्हैयालाल का निधन साल 1982 में हुआ. करियर में उन्होंने करीब 105 फ़िल्में की और कई मौकों पर लाजवाब कर दिया.
डॉक्युमेंट्री भूले बिसरे दिग्गज को याद करने का बढ़िया जरिया हो सकता है.
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