Sushant Singh Rajput death: कंगना के बाद रणवीर शौरी के आरोपों पर भी क्या चुप रहेगा बॉलीवुड?
सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी (Sushant Singh Rajput Suicide) ने बॉलीवुड (Bollywood) को ऐसे मुहाने पर ला खड़ा किया है, जहां जरूरत पड़ने लगी है कि आउटसाइडर्स (Outsiders) को काम और सम्मान दिलाने के लिए एक कमीशन बने, जो पीड़ितों की आवाज सुने और उनकी समस्याओं का हल निकाले.
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सुशांत सिंह राजपूत की मौत (Sushant Singh Rajput Suicide) ने बॉलीवुड में खलबली मचा दी है. एक ऐसे ऐक्टर, जिसने महज 7 साल के बॉलीवुड करियर में बड़े-बड़े प्रड्यूसर्स और डायरेक्टर्स के साथ काम किया और उसे अचानक काम मिलना बंद हो गया, यह बिल्कुल अप्रत्याशित है. 34 वर्षीय सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी ने बॉलीवुड की कार्यप्रणाली और सिस्टम की पोल खोलकर रख दी है कि यहां कोई अपना नहीं. यहां की व्यवस्था बिल्कुल अंडरवर्ल्ड की तरह है, जब आपका स्टारडम अन्य स्टार्स के लिए खतरा बन जाता है तो वे अपनी सारी ऊर्जा आपको नीचे गिराने में लगा देते हैं और फिर मौके कम होते जाते हैं. रिश्ते खराब होने लगते हैं और करियर बर्बादी के कगार पर पहुंच जाता है. सुशांत सिंह राजपूत की मौत की सही वजह भले ज्ञात न हो, लेकिन जिस तरह के हालात बने हैं, उससे इतना तो पता चल ही रहा है कि सुशांत काफी परेशान थे, चाहे वह फिल्म न मिलने की वजह से हो, सही मौका हाथ से छिन जाने की वजह से हो या किसी व्यक्ति विशेष की वजह से.
जिस तरह सुशांत की खुदकुशी के बाद बॉलीवुड में नेपोटिज्म और उससे होने वाले नुकसान पर चर्चा शुरू हो गई है. कंगना रनौत, शेखर कपूर और रणवीर शौरी समेत कई स्टार्स और निर्देशकों के काफी आरोपात्मक बयान आ रहे हैं, उससे यही लग रहा है कि जितना आसान यह मामला दिख रहा है, उतना है नहीं. बॉलीवुड में रिश्तों की परत खंगाली जा रही है और जैसा कि कहते हैं कि मुंबई मायानगरी है, तो इस माया नगरी के मायावी चेहरों की पहचान हो रही है, जिनका पर्दाफाश कर माहौल को बेहतर बनाया जा सके.
‘फिल्म इंडस्ट्री बेहद क्रूर और निर्दयी है’
अभिषेक चौबे की फिल्म सोनचिड़िया में सुशांत सिंह राजपूत के साथ काम कर चुके रणवीर शौरी ने कहा है कि बॉलीवुड बेहद निर्दयी है. इस फिल्मी दुनिया में अगर आप सफलता की सीढ़ी चढ़ने लगते हैं तो दुनिया काफी निर्दयी और क्रूर हो जाती है. आपको गिराने के लिए हरसंभव कोशिश करने लगती है और आपके हौसले तोड़ देती है. रणवीर शौरी बीते 20 साल से ज्यादा समय से बॉलीवुड में हैं और उन्हें बॉलीवुड के मायावी चेहरों की ज्यादा पहचान है. ऐसे में उनकी बातें सच लगती हैं कि फिल्म नगरी बाहर से भले साफ-सुथरी और अच्छे माहौल वाली लगती है, लेकिन इसके अंदर का सच और कलाकारों का दर्द इतना गहरा है कि सोचकर सामान्य लोगों के मन में डर बैठ जाए. और ऐसा होता भी है. आंखों में सपने संजोये हजारों युवा मुंबई का रुख करते हैं, कुछ को मौके मिल जाते हैं, कुछ अपनी टूटी उम्मीदों के साथ घर वापस आ जाते हैं और कुछ टूटे सपनों के बोझ तले जिंदगी हार बैठते हैं.
Something has to be said about the games they play, and their two facedness. Something has to be said about the power they wield with zero accountability. The power they derive from having inherited privilege in the business and the mainstream media sitting in their lap.
— Ranvir Shorey (@RanvirShorey) June 15, 2020
The power to decide who will be a “star” and who will be left out in the cold. But of course, the coterie that owns the only high stakes table in the casino will never be questioned, because everyone is too busy enjoying the game. Even if they know it’s fixed.
— Ranvir Shorey (@RanvirShorey) June 15, 2020
आउटसाइडर्स को काम-सम्मान उतना ही अहम
सुशांत की मौत के बाद उनके साथ काम करने वालों और लाखों फैंस के दिलों में ये सवाल घुमर रहे हैं कि आखिर किन परिस्थितियों में इस जिंदादिल इंसान ने इतना बड़ा कदम उठाया. क्या बॉलीवुड में सुशांत को आउटसाइडर समझ उन्हें साइडलाइन किया जा रहा था. क्या उनके टैलेंट से जलने वाले कुछ लोग उनके लिए मौके कम कर रहे थे या ऐसी परिस्थिति बनाई जा रही थी जिससे सुशांत लड़ नहीं पाए और हताश निराश होकर जीवन के धागों को खुद ही काट दें. तभी तो कंगना रनौत ने आरोप लगाए कि सुशांत ने खुदकुशी नहीं कि, बल्कि यह प्लान्ड मर्डर है. वहीं शेखर कपूर ने कहा कि सुशांत ने अपनी वजह से नहीं, बल्कि किसी और की वजह से खुदकुशी की है, क्योंकि उन्हें परेशान किया जा रहा था.
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विशाखा गाइंडलाइंस की तरह क्यों न बने ‘सुशांत गाइडलाइंस’
सवाल कई हैं और ऐसे हैं जिनका जवाब जरूरी है, क्योंकि अगर जवाब न मिला तो कल को कई सुशांत की लाश मायानगरी में कभी पंखों से लटकी, तो कभी रेलवे ट्रैक पर तो कभी बहुमंजिला इमारतों के नीचे, दिखेगी. फिल्म इंडस्ट्री का माहौल कैसा हो गया है कि रणवीर शौरी जैसे स्थापित एक्टर यहां खुलेपन और लोकतांत्रिक वातावरण की जरूरत महसूस कर रहे हैं. बॉलीवुड में किसी ऐसे कमीशन यानी आयोग की हद से ज्यादा जरूरत महसूस होने लगी है जो सुशांत जैसे कलाकारों का दुख-दर्द समझ सके. उनकी आवाज बन सके. इसके साथ ही बॉलीवुड का माहौल बेहतर करे, जहां कुछ बड़ी फिल्म फैमिली अपनी मनमानी और दूसरों के साथ अन्याय करने से पहले चार बार सोचे. जिस तरह कार्यस्थलों पर महिलाओं का शोषण रोकने और इस समस्या को सुलझाने के लिए साल 1997 में विशाखा गाइडलाइंस बनाई गई थी, उसी प्रकार क्यों न फिल्म इंडस्ट्री में प्रोफेशनल राइवलरी रोकने और आउटसाइडर्स को काम और सम्मान देने के लिए सुशांत गाइडलाइंस बनाई जाए, जहां परेशान लोग अपनी बात रख सके और आयोग वाले कुछ हल निकाल सके.
उल्लेखनीय है कि अब जबकि सुशांत हमेशा के लिए बॉलीवुड ही नहीं, बल्कि इस मायावी लोक को ही छोड़ चुके हैं तो ऐसे में बॉलीवुड के नामचीन लोगों को एक आयोग बनाने पर जोर देना चाहिए, जहां बॉलीवुड से जुड़ी हर छोटी-बड़ी समस्याओं पर बात हो सके, छोटे शहरों से आने वाले कलाकारों से भेदभाव न हो, कोई बड़ा एक्टर आउटसाइडर्स पर छींटाकशी न करे और सबसे अहम बात कि मनोरंजन जगत में उसे भी उतनी ही स्वीकार्यता मिले जितनी बड़े स्टार्स के बच्चों को मिलती है, तभी माहौल बेहतर हो सकेगा और आए दिन लोग अपने सपनों का गला घोंटते नहीं दिखेंगे.
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