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Updated: 14 जून, 2020 07:52 PM
मनीष जैसल
मनीष जैसल
  @jaisal123
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वर्ष 2019, फ़िल्म छिछोरे (Chhichhore). याद है आपको? कोई कैसे भूल सकता है नितेश तिवारी की लिखी और निर्देशित फ़िल्म को जिसने कॉमेडी जॉनर के ज़रिए एक ऐसे विषय को जीवंत रूप दिया जिसे आज कल की तेज़ भागती दुनिया में सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. इसी फ़िल्म के एक किरदार अनिरुद्ध पाठक को निभा चुके युवा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने बांद्रा, मुंबई स्थित अपने घर में फांसी लगा ली (Sushant Singh Rajput Commits Suicide). एक दर्शक को जब यह ख़बर टीवी की ब्रेकिंग न्यूज़ और मोबाइल के नोटिफ़िकेशन में दिखती है तो सबसे पहले ग़ुस्सा आता है और फिर सांत्वना. एक अभिनेता कैसे अपनी निजी ज़िंदगी में वह सब कर सकता है जब उसने ख़ुद इसी विषय पर उम्दा अभिनय करते हुए दर्शकों को जागरूक किया हो? छिछोरे बताती है कि जीवन में कैसे चुनौतियों से लड़ना है, उनसे भागना नहीं है. हो असफल होने पर भी हमें बार बार खड़े होना है, लड़ना है फिर चलना है और तब तक लड़ते रहना है जब तक मंज़िल ना मिल जाए. लेकिन ऐसा नहीं करना जैसा तुमने किया सुशांत. लाखों चाहने वाले दर्शकों और फ़ैन्स की तरफ़ से सुशांत को आख़िरी सलाम. लेकिन उनके ऐसे जाने के लिए उन्हें शायद ही कोई दर्शक माफ़ करेगा.

Sushant Singh Rajput Commits Suicideइस खबर के बाद कि सुशांत नहीं रहे इंडस्ट्री के साथ साथ पूरा देश सन्न है

मात्र 34 साल के एक्टर, डांसर और इंटरपेन्योर सुशांत सिंह राजपूत सफल अभिनेताओं की सूची में आते थे. काई पो चे, शुद्ध देशी रोमांस, पीके, डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी, एमएस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी, राबता, वेलकम टू न्यूयार्क, केदारनाथ, सोन चिरैया, छिछोरे जैसी फ़िल्मों में सुशांत अपनी अलग छाप छोड़ते दर्शकों को दिखते हैं. लेकिन हमारी बदक़िस्मती ऐसी कि उनकी इसी साल आने वाली मुकेश छाबरा की फ़िल्म दिल बेचारा को देख तो सकेंगे लेकिन उनका निभाया मैनी का किरदार कैसा लगा, यह उनको ना बता सकेंगे.

दर्शकों की नज़र में सुशांत के फ़िल्मी किरदार जल्दी चढ़ जाते थे. छिछोरे का अनुरुद्ध हो या सोन चिरैया का लखना सिंह, राबता का शिव कक्कर, शुद्ध देशी रोमांस के रघु के अलावा दुनिया ने क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की निजी ज़िंदगी को उनके ही अभिनय से देखा. और ख़ूब पसंद किया. टीवी की दुनिया से फ़िल्मों में आए सुशांत सिंह ने अपनी पहचान ख़ुद बनाई, IIFA, जी सिने, फ़िल्म फ़ेयर, स्टार डस्ट, प्रोड्यूसर गिल्ड फ़िल्म अवार्ड जैसे सम्मान उनकी अदाकारी के सफल होने का प्रमाण बताते हैं.

वर्ष 2002 में अपनी मां की मृत्यु के बाद बिहार के पूर्णिया से अपनी क्रिकेटर बहन मीतू सिंह के साथ सुशांत मुंबई तो शिफ़्ट हो गए. पिछले हफ़्ते ही उन्होंने अपनी माँ को याद करते हुए एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर को ट्विटर पर साझा किया और लिखा कि ‘आंसुओं से धुंधलाता अतीत धुंधलाता हुआ, मुस्कुराते हुए और एक क्षणभंगुर जीवन संजोने वाले सपनो में दोनों के बीच बातचीत, #मां.

इसी के साथ वो हाथ से लिखे हुए एक पत्र को भी शेयर करते हुए लिखते हैं आपने वादा किया था मां कि आप मुझे छोड़ कर कभी नही जाओगी. मैं हमेशा मुस्कुराता रहूंगा. लेकिन इस मायानगरी की चका चौंध में साइंस का सफल छात्र (National Olympiad Winner in Physics) अपने आपको कितना शामिल कर पाए यह वही जानते थे.

2008 से बालाजी के साथ टीवी पर पारी शुरू करते हुए छोटे शहर के इस अभिनेता ने बड़े परदे पर ख़ुद की क़ाबिलियत से शामिल किया. और एक से बढ़कर एक फ़िल्मों में अभिनय के ज़रिए दर्शकों के दिलों में जगह बनाई. ख़ासकर एक ऐसा दर्शक वर्ग जो युवा अभिनेताओं की एक्टिंग को पसंद करता है उनमें सुशांत का नाम शामिल रहा ही है.

लेकिन सुशांत द्वारा की गई बांद्रा स्थित उनके घर में की गई आत्महत्या कई बड़े सवाल भी खड़े करती है. छोटे शहरों से ताल्लुक़ रखने वाले अभिनेता और कलाकार क्या ख़ुद को मुंबई में औरों की तरह सरवाइव करने में सफल नही हो पाते? किसी फ़िल्मी परिवार का सपोर्ट ना होना क्या उनके फ़िल्मी कैरियर में किसी तरह का अवरोध पैदा करता है?

प्रति वर्ष फ़िल्में करने वाला अभिनेता बिना किसी मीडिया में विवाद उत्पन्न किए किन उलझनों से जूझ रहा था? देश के मीडिया की इंटरनेटमेंट बीट पर ग़ौर करे तो यहां स्टार्स के बच्चों से लेकर टॉमी तक की ख़बरों का ज़िक्र आपको अमूमन मिलता है, ऐसे में 6 महीनों से डिप्रेशन से जूझ रहे सुशांत को लेकर क्या कभी किसी को भनक तक नही लगी?

यह तथ्य भी सही मालूम पड़ता है कि किसी के अंदर क्या चल रहा इसे कौन जान सकता है. लेकिन डिप्रेशन की अमूमन वजहों पर भी अगर ग़ौर करते हुए बात की जाए तो आर्थिक तंगी, पारिवारिक रिश्ते, कैरियर में भारी उतार एक बड़ी वजह मानी जा सकती है. सुशांत के मामले में अभी कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी अगर डिप्रेशन उनकी आर्थिक तंगी से रही होगी तो यह दुखद है.

बिहार से मुंबई तक के सफ़र में सुशांत बहुत ही शालीन और सभ्य अभिनेताओं की श्रेणी में गिने जाएंगे. उनका किसी भी तरह का कोई नकारात्मक स्टेटमेंट कम ही मीडिया में दिखाई सुनाई पड़ा है. और उनके कैरियर की उपलब्धि पर भी इसका असर देखने को मिलता रहा है. लेकिन उनका इस तरह जाना अखरता है.

एक अभिनेता जो किसी भी किरदार को फ़िल्मी रूपांतरण से पहले अपने अंदर ख़ुद ब ख़ुद जी लेता है उसके लिए असल जीवन में यह सब करना इतना आसान कैसे हो जाता है? कम से कम एक असफल प्रयास भी होता तो आपके अंदर चल रहे उफ़ान से निबटान ज़रूर हो सकता था. माया नगरी में हुई यह पहली आत्म हत्या नही है इसके पहले जिया खान दिव्या भारती,गुरुदत्त, परवीं बॉबी, कुशल पंजाबी जैसे कलाकारों ने भी ख़ुद को ख़त्म किया.

फ़िल्मी दुनिया से जुड़े लोगों को परदे पर देखते हुए दर्शक जितना संतुष्ट होते है अगर इसके साथ उनकी निजी ज़िंदगी के तमाम अनाप सनाप बेवक़ूफ़ी भरे कंटेंट इसे इतर कुछ ज़रूरी ख़बरें एकत्रित की जाए तो हो सकता है अपने अंदर ही अंदर जूझ रहे सुशांत जैसे कलाकारों को समय रहते ऐसे कृत्य से रोका जा सकता है. सुशांत तुम्हें आख़िरी सलाम तो दे रहे हैं लेकिन कोशिश करो जहां रहो ख़ुश रहो. वहां अंदर ही अंदर ऐसे मत घुटना जैसे यहां अब तक थे. 

केदारनाथ फ़िल्म का संवाद तुमने बखूबी फॉलो किया सुशांत-

शिव का डमरू तीनों लोक सुनते हैं.

हम जीवन से पहले अपनी मृत्यु चुनते हैं.

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लेखक

मनीष जैसल मनीष जैसल @jaisal123

लेखक सिनेमा और फिल्म मेकिंग में पीएचडी कर रहे हैं, और समसामयिक मुद्दों के अलावा सिनेमा पर लिखते हैं.

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