तापसी पन्नू की ये 4 फ़िल्में, हर फिल्म में समाज के लिए सबक
तापसी ने पिंक, मुल्क, मनमर्जियां, थप्पड़ और नाम शबाना जैसी फ़िल्में की. इनमें नायिकाएं ही कहानी में प्रधान हैं. मगर समाज की दूसरी जटिलताओं और सच्चाइयों की ओर भी ध्यान आकृष्ट कराया गया है. ये फ़िल्में बॉलीवुड के सिनेमा इतिहास में भी मील के पत्थर की तरह हैं.
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तापसी पन्नू को भीड़ में एक अलग और ख़ास मुकाम बनाने वाली अभिनेत्री के रूप में शुमार किया जा सकता है. दिल्ली के गैरफ़िल्मी परिवार से आने वाली इस लड़की ने हीरोइन बनने के लिए मुंबई तक का रास्ता वाया हैदराबाद और चेन्नई तय किया. तापसी के करियर में बैक टू बैक कई फ़िल्में हैं जिसमें वो हीरो नजर आती हैं. उन्हें विद्या बालन और कंगना रनौत के साथ महिला प्रधान विषयों की सबसे बड़ी एक्टर कहा जा सकता है. हिंदी सिनेमा में ये मुकाम उन्होंने अपनी जबरदस्त परफफॉर्मेंस से खुद ही हासिल किया है.
आज के दौर में तापसी की फिल्मों को देखने वाले जब उनकी शुरुआती तेलगू और तमिल मसाला एक्शन फिल्मों को देखें तो समझ में आता है कि उन्होंने कितना लंबा और जटिल दौर पार किया है. आज अपने कंधे पर फ़िल्में ढोने वाली तापसी दक्षिण में हीरोइन के रूप में शो पीस भर थीं. हसीन दिलरुबा उनकी नई ताजी फिल्म है. मिस्ट्री थ्रिलर. हालांकि इसमें विक्रांत मैसी और दूसरे कलाकार भी हैं लेकिन कहानी का केंद्र तापसी ही हैं. स्वाभाविक रूप से बॉलीवुड की एक और नायिका प्रधान फिल्म.
हसीन दिलरुबा के पोस्टर में तापसी पन्नू.
इससे पहले उन्होंने पिंक, मुल्क, मनमर्जियां, थप्पड़ और नाम शबाना जैसी फ़िल्में की. इनमें नायिकाएं ही कहानी में प्रधान हैं. मगर समाज की दूसरी जटिलताओं और सच्चाइयों की ओर भी ध्यान आकृष्ट कराया गया है. ये फ़िल्में बॉलीवुड के सिनेमा इतिहास में भी मील के पत्थर की तरह हैं. खैर इन फिल्मों ने तापसी को बड़ी पहचना तो दी ही. इन्हें एक बार जरूर देखना चाहिए.
1. पिंक (2016)
पिंक महिलाओं के बारे में भारतीय समाज की घटिया सोच को बेपर्दा कर देती है- "पुरुषों के साथ सिगरेट शराब पीने या छोटे कपड़े पहनने वाली औरत हमेशा किसी के साथ सोने के लिए तैयार बैठी रहती." सिर्फ इन वजहों से उसका चरित्र हनन नहीं किया जा सकता कि कोई लड़की शराब पीती है. महिला किसी की पत्नी हो, दोस्त हो, प्रेमिका हो या चाहे वो सेक्स वर्कर ही हो, उसके ना का मतलब ना है. किसी को भी उसके साथ जबरदस्ती करने का अधिकार नहीं है. पिंक को बॉलीवुड की बेस्ट कोर्ट रूम ड्रामा फिल्मों में रखा जा सकता है. इसकी कहानी शूजित सरकार ने लिखी थी. निर्देशन अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने किया था. तापसी के साथ अमिताभ बच्चन ने भी अहम भूमिका निभाई थी.
2. मनमर्जियां (2018)
अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी फिल्म बॉलीवुड के प्रेम त्रिकोण के मामलों में बहुत ही गैरपारम्परिक फिल्म है. एक लड़की देह की सीमाओं से परे जाकर एक लड़के को प्यार करती है. लड़का भी उससे उतना ही प्यार करता है, लेकिन शादी जैसी चीज के लिए तैयार नहीं है. लड़की किसी और से शादी कर लेती है. लड़का है कि लड़की के बिना उसे जीने की आदत नहीं है. मनमर्जियां आज के दौर में बन रहे महानगरों की प्रेम कहानी है जहां प्यार के माने बदल रहे हैं. अब स्थापित ढांचों में लड़के या लड़कों के प्यार को जज करना आने वाले दौर में मुश्किल होगा. हकीकत में ये हमारे नए बन रहे शहरी समाज के भविष्य की कहानी है जहां शादियां परिवार की मर्जी से तो हो जाती हैं लेकिन कई बार उनका हासिल वैसा नहीं होता जैसा परिवार ने शादी से पहले सोच रखा था. वो चीज जिसे पचाने में समाज शायद तैयार ही ना हो.
3. मुल्क (2018)
वैसे तो मुल्क हकीकत में कोई नारी प्रधान फिल्म नहीं है. फिल्म असल में धार्मिक आधार पर प्रशासनिक-राजनीतिक भेदभाव को दिखाती है. कैसे एक पूरे परिवार पर सिर्फ मुस्लिम होने की वजह से देशद्रोही और आतंकी होने का ठप्पा लगा दिया जाता है. किसी एक की गलतियों के लिए समूचे परिवार और उसके समाज को कठघरे में नहीं खड़ा किया जा सकता. तापसी वकील हैं जिनकी शादी मुस्लिम परिवार में हुई है. वो कोर्ट में परिवार की पैरवी करती हैं. फिल्म का मकसद साफ़ है- बेहतर हिंदू और बेहतर मुसलमान की बजाय बेहतर इंसान बनना चाहिए. फिल्म का निर्देशन अनुभव सिन्हा ने किया था. तापसी के अलावा ऋषि कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई थी.
4. थप्पड़ (2020)
हकीकत में थप्पड़ पुरुषों से सवाल करती है- पति की दुनिया में आखिर पत्नी का वजूद क्या है, सरेआम थप्पड़ खाना. ये फिल्म दिन रात कोल्हू के बैल की तरह पिसी रहने और पति की दुनिया को अपना मान लेने वाली उन हजारों-लाखों घरेलू महिलाओं के दर्द को जुबान देती कि निजी फ्रस्टेशन पत्नियों पर ही क्यों? और उसकी सीमा क्या हो? एक महिला के आत्मसम्मान को परिवार और सामाजिक मूल्यों से ढंका नहीं जा सकता. जब किसी महिला का आत्मसम्मान दरकता है तो उसके जीवन में और चीजें कोई मायने नहीं रखती. नैतिक मूल्यों से दबाकर एक औरत की इच्छाओं और उसके मान सम्मान को कब तक कुचला जाएगा. घरेलू महिलाओं की तकलीफदेह कहानी को अनुभव सिन्हा ने निर्देशित किया है.
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