Thalaivi: अरविंद स्वामी या कंगना रनौत में किसने किया सबसे बढ़िया काम?
कंगना रनौत की थलाइवी का सबसे सरप्राइजिंग फैक्टर तो अरविंद स्वामी हैं. फिल्म की रिलीज से पहले अरविंद पर ज्यादा बात भी नहीं हुई थी. लगा था कि उनकी भूमिका छोटी मोटी होगी.
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एएल विजय के निर्देशन में जे. जयललिता के जीवन पर बनी थलाइवी सिनेमाघरों में है. कंगना रनौत, जयललिता की भूमिका में हैं. उनकी तारीफ़ भी खूब हो रही है. खासकर सोशल मीडिया पर उनके प्रशंसक जिस तरह तारीफों का पुल बांधते दिख रहे उसका कहना ही क्या. कंगना के माता-पिता और थलाइवी का हिंदी वर्जन लिखने वाले रजत अरोड़ा ने तो परफॉर्मेंस के आधार पर यह भी घोषणा कर डाली है कि जयललिता की भूमिका के लिए एक्ट्रेस पांचवें राष्ट्रीय पुरस्कारों के सर्वथा योग्य हैं. हालांकि राष्ट्रीय पुरस्कारों की घोषणा में अभी वक्त है और कई अच्छी फिल्मों का रिलीज होना भी बाकी है. लेकिन पुरस्कारों के साथ थलाइवी को अभी से जोड़ा जा रहा है और कंगना का नाम पुश होते दिख रहा है. क्या सच में ऐसा कंगना ने अवॉर्ड विनिंग एक्टिंग की है. क्या कंगना फिल्म में सबपर भारी पड़ी हैं?
जहां तक थलाइवी में परफॉर्मेंस की बात है, कई एक्टर्स ने बेहतरीन काम किया है. भले ही उनकी भूमिका छोटी थी या बड़ी. पांच किरदार तो बेहद ही प्रभावी रूप से सामने आते हैं. इनमें जया के अलावा एमजेआर, वीरप्पन, करुणा और रामचंद्रन सबसे अहम हैं. एमजेआर (एमजीआर) की भूमिका अरविंद स्वामी ने, करुणा (करुणानिधि) के रोल में नासर, एमजेआर के सलाहकार वीरप्पन की भूमिका में राज अर्जुन और जया के पर्सनल स्टाफ माधवन की भूमिका में थाम्बी हैं. एक्टिंग फ्रंट पर इन सभी किरदारों ने सबसे ज्यादा छाप छोड़ने में सफलता पाई है.
थलाइवी में कंगना रनौत और अरविंद स्वामी.
थलाइवी में किसका काम सबसे बेस्ट, कंगना या अरविंद स्वामी?
थलाइवी में जया का किरदार सबसे बड़ा और जटिल है. स्वाभाविक रूप से उनका स्पेस भी किरदार और कहानी के मुताबिक़ ही है. जब एक ही किरदार के कई अलग शेड्स होते हैं तो वो बहुत जटिल भी दिखता है. जया जिद्दी थीं, बच्चों जैसी शरारत भी थी उनमें. उन्हें लग्जरी भी पसंद थी. डूबकर लोगों को चाहती और उन पर भरोसा करती थीं. अपने लोगों की बहुत केयर भी किया करती थीं. तुनकमिजाज, बहुत अड़ियल और अपनी धुन में पक्की तो वे मानी ही जाती थीं. थलाइवी में जयललिता के व्यक्तित्व के इन सभी पहलुओं की झलक मिलती है. निश्चित ही कंगना ने मेहनत और ईमानदारी से जया को फ़िल्मी परदे पर जिया है. तारीफ़ के काबिल. लेकिन.
जयललिता का निधन कुछ साल पहले ही हुआ था. और वे ऐसी शख्सियत थीं जिनके बारे में लोग काफी कुछ जानते थे. इन जानकारियों की वजह से जया को लेकर लोगों के दिमाग में एक स्केच पहले से ही मौजूद था. कंगना ने अपनी जगह जितना बेहतर हो सकता था, जरूर बढ़िया काम किया है, मगर थलाइवी में उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती ही यही थी कि वो दर्शकों को भरोसा दिला पाएं कि परदे पर जिस जया को वे देख रहे हैं हकीकत में वही है, ना कि कंगना. कंगना इसी जगह आकर मात खाती दिख रही हैं. वे कई जगह जया की बजाय कंगना दिखती हैं. हो सकता है कि ऐसा सिर्फ इस वजह से हुआ कि दर्शकों के दिमाग में उनकी अपनी जया का भी एक स्केच रहा हो. लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि उनका काम औसत है. अभिनय उनका लाजवाब है. बढ़ती उम्र के साथ जया के रूप में उनका ट्रांसफॉरमेशन भी बहुत असरदार है. जहां तक मेरी बात है मुझे नहीं लगता कि कंगना का काम उनके कुछ पुराने बेंचमार्क से बहुत ही बेहतर है. मणिकर्णिका की तुलना में यहां कंगना बहुत दमदार हैं बावजूद फैशन, तनु वेड्स मनु और क्वीन को अब भी उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शुमार किया जाना चाहिए.
थलाइवी में अरविंद स्वामी ने तो हैरान ही कर दिया
थलाइवी का सबसे सरप्राइजिंग फैक्टर तो अरविंद स्वामी हैं. फिल्म की रिलीज से पहले अरविंद पर ज्यादा बात नहीं हुई थी. लगा था कि उनकी भूमिका छोटी मोटी होगी. आमतौर पर बायोपिक फिल्मों में सपोर्टिंग कास्ट इसी तरह दिखते भी हैं. लेकिन हकीकत में जीवंत भूमिका से थलाइवी को जया के साथ ही एमजीआर की फिल्म भी बनाने में अरविंद कामयाब हुए हैं. अरविंद जब तक फ्रेम में हैं, वो महसूस होते हैं. कई फ्रेम में तो कंगना पर साफ़ भारी भी पड़ते दिखते हैं. उनका शांत और गंभीर चेहरा, 70 के दशक में तमिल स्टार, कंगना के मेंटोर और एक राजनीतिक हस्ती के रूप में उनके अपीयरेंस लाजवाब बन पड़े हैं. लोग कह भी रहे हैं कि उन्होंने एमजीआर के अलग-अलग भावों को बहुत सफाई से पकड़ा है. कुछ सीन तो इतने ताकतवर और प्रभावी हैं कि उन्हें देखकर ही महसूस किया जा सकता है. एक फ्रेम है जिसमें एमजेआर, कंगना के फोन आने पर रिसीवर कान पर टिकाकर चुप बैठे रहते हैं. उन्होंने कुछ बोला नहीं मगर उनकी आंखें उनके गाल और होठ संवाद कर रहे हैं. इलाज कराकर लौटने के बाद के सभी सीन चरम हैं. वे चुप और कमजोर दिखते हैं, बुजुर्गों की तरह रुमाल मुंहपर ले जाते हैं. यहां अरविंद क्लासिक अभिनय के उच्चतम शिखर पर दिखते हैं. फुल फ्लेज्ड. रोजा और बॉम्बे जैसी फिल्मों के जरिए हिंदी में तहलका मचा चुके अरविंद को इतने साल बाद थलाइवी में देखना हिंदी दर्शकों को अलग ही फील देगा.
थलाइवी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार किसे मिलेगा यह जवाब मेरे पास नहीं है. मगर मुझसे पूछा जाए कि आप थलाइवी दोबारा किसके लिए देखेंगे, तो मैं सीधे कहूंगा- अरविंद स्वामी. ऐसा भी नहीं कि कंगना का काम मुझे ठीक नहीं लगा. बहुत बढ़िया है पर थलाइवी का सरप्राइज पैक अरविंद स्वामी ही हैं.
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