Thalaivi movie: जयललिता के बारे में जानिए कुछ 'नई बातें', और कुछ 'मान लीजिये'
जयललिता की तमिलनाडु से बाहर एक अलग छवि है. उनके जीवन पर फिल्म आई है. अब सवाल है कि कंगना रनौत-अरविंद स्वामी (Kangana Ranaut-Arvind Swami) की थलाइवी (Thalaivi movie) में क्या जयललिता का वैसा ही रूप दिखाया गया है?
-
Total Shares
कंगना रनौत (Kangana Ranaut) की भूमिका से सजी 'थलाइवी' (Thalaivi movie) का दर्शक शिद्दत से इंतज़ार कर रहे थे.फिल्म एआईएडीएमके की चीफ रही और तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता के जीवन पर आधारित है. एएल विजय के निर्देशन में थलाइवी की कहानी केवी विजयेंद्र प्रसाद और मदन कार्की (तमिल वर्जन) ने लिखी है. हिंदी वर्जन रजत अरोड़ा ने लिखा है. थलाइवी भले ही सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म कही जा रही है, मगर इसमें तमाम घटनाओं को दिखाने के लिए काल्पनिकता का भी सहारा लिया गया है. राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के नाम बदले गए हैं.
थलाइवी जिनकी कहानी पर बनी है उनके बारे में बहुत सारी चीजें पब्लिक डोमेन में अलग-अलग नैरेटिव के साथ मौजूद हैं. एक बायोपिक फिल्म होने की वजह से थलाइवी से उम्मीद थी कि जयललिता के बारे में कुछ नया होगा या उनके निधन के बाद किसी निष्कर्ष पर जाकर कुछ चीजों को मानने के लिए मजबूर करेगी. जयललिता के बारे में तमिलनाडु के बाहर जो आम धारण है- उसमें उन्हें हद दर्जे की तुनकमिजाज, अपने मन की करने वाली, करीबी लोगों को सरकारी संसाधनों की लूट का छूट देने वाली, वोटों के लिए टीवी-फ्रीज, साड़ी बिंदी और गहने बांटने की पॉपुलर घोषणाएं करने वाली, ऐशो आराम से जिंदगी जीने वाली और सिर्फ अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाली मौकापरस्त महिला नेता की ही है.
एक ऐसी मुख्यमंत्री जिसकी छत्रछाया में उसके रिश्तेदारों और करीबियों ने जमकर बंदरबाट किया. उनकी छवि एक बहुत सख्त और लगभग 'तानाशाह' महिला के रूप में भी बनती है. एक ऐसी नेता के रूप में भी जो सिर्फ एमजीआर के साथ निजी रिश्तों की वजह से फिल्मों और राजनीति में शीर्ष तक पहुंचने में कामयाब रही. यानी कि अगर एमजीआर नहीं होते तो जया का अकोई वजूद ही नहीं होता. जयललिता को लेकर लगभग यही सीन है. ये बाद की बात है कि भ्रष्टाचार के मामलों में कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था और उन्होंने कुछ दागी करीबियों से दूरी भी बना ली थी.
अब सवाल है कि कंगना-अरविंद स्वामी की थलाइवी में क्या जयललिता का ऐसा ही रूप दिखाया गया है? नहीं. समूची फिल्म में जया का रूप कहीं भी ऐसा नहीं दिखाया गया है. बल्कि फिल्म में उनकी मौजूदगी ठीक इसके उलट है. पूरी फिल्म में जया के 'अम्मू' या 'अम्मा' के दो रूप हैं. अम्मू डूबकर प्यार करने वाली और बहुत भावुक लड़की है. शरारती है. केयर करती है और अपनों के लिए कुछ भी करने को तैयार है. यहां तक कि एमजेआर (एमजीआर) को सबसे ज्यादा प्यार करने के बावजूद उनके कहने पर दूर चली जाती है. थलाइवी की अम्मा, अम्मू के ठीक उलट है. भ्रष्टाचार की खिलाफत करने वाली, आम जनता की पीड़ा समझने वाली जननायक और किसी भी असंभव काम को कर दिखाने वाली महिला नेता.
हकीकत में अम्मू और अम्मा के लिहाज से थलाइवी में कुछ नई चीजें दिखती हैं हो सकता है कि पुरानी हे एहों पर अब तक इनपर ज्यादा प्रकाश नहीं डाला गया. कुछ ऐसी चीजें भी हैं जो जया के पक्ष में निष्कर्ष बनाती हैं. वो क्या है आइए जानते हैं.
1) थलाइवी में दिखाया गया है कि जया में अद्भुत नैसर्गिक नेतृत्व क्षमता थी. एमजीआर ने उन्हें उनकी इसी क्षमता की वजह से मौके दिए और आगे बढ़ाया. वो चाहे फिल्म हो या राजनीति. ना कि उनके साथ निजी रिश्तों की वजह से.
2) जया की काबिलियत को तमिलनाडु का पुरुषवर्चस्व वाला सियासी तबका पचा नहीं पा रहा था. विपक्षी नेता तो उनके खिलाफ साजिशों में शामिल ही थे, उन्होंने अपनी पार्टी के लोगों का भी कम विरोध नहीं झेला. अपने ही लोगों की साजिशों का शिकार हुईं. उन्हें जहां भी लगाया गया काबिलियत सिद्ध की और एमजीआर की राजनीति को मजबूत बनाया. महज महिला होने की वजह से उन्हें रोकने और परेशान करने की बहुत कोशिशें हुईं. थलाइवी में जया एक जगह कहती भी हैं- "परदे पर औरत सबको अच्छी लगती हैं मगर जब वो पावर में आती है सबको मिर्ची लगती है."
3) अगर एमजीआर राजनीति में नहीं आते तो काफी संभावना थी कि जयललिता के साथ उनकी कहानी कुछ और ही होती. थलाइवी में इशारों इशारों में यही बात है. एमजीआर पहली पत्नी को बहुत प्यार करते थे. उन्हें 'अम्मू' में उनकी झलक दिखती थी. जया के बहुत करीब थे मगर राजनीति के लिए सलाहकार के दबाव में ना चाहते हुए भी खुद को उनसे दूर कर लिया था.
4) हो सकता है कि ये नई चीज हो या इस पर ज्यादा चीजें सामने नहीं आई हैं कि एमजीआर भी जया से खुद को असुरक्षित महसूस करते थे. थलाइवी में कई जगह यह दिखता है. हालांकि जया के प्रति असुरक्षाबोध एमजीआर के निजी सलाहकार के हवाले से दिखाया गया है. राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखने के लिए उन्होंने जया से किनारा कर लिया था और उन्हें उनके परेशान हाल पर छोड़ दिया था. यहां एक तरह से एमजीआर मतलबी इंसान दिखते हैं जो जरूरत के हिसाब से जया का मनचाहा इस्तेमाल करते हैं.
5) करुणा और एमजीआर दोनों में एक-दूसरे के लिए दोस्ती और इज्जत का भाव है. तवज्जो भी देते हैं और भरोसा करते हैं. अन्नादुरई की मौत के बाद दोनों के अलगाव की वजह एक मामूली गलतफहमी को दिखाया गया है. दरअसल, खुले मन से करुणा को बेहतर नेता मानने वाले एमजीआर एक प्रोग्राम में सीएम करुणा की स्पीच के दौरान ही शूटिंग के लिए मंच से उठकर चले जाते हैं. करुणा को ये बात बुरी लगती है और फिर मतभेद के बाद दोनों के रास्ते अलग हो जाते हैं.
6) विधानसभा में जयललिता के साथ बदसलूकी हुई थी जिसके बाद तमिलनाडु की सियासत में बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ. बदसलूकी को जया ने सम्मान का प्रश्न बना लिया था और करुणा को सत्ता से बाहर फेंक देने की शपथ ली थी. दोनों की अदावत की मिसालें इतिहास की किताबों में दर्ज हैं. लेकिन थलाइवी में दिखाया गया है कि करुणा को जया के साथ बदसलूकी का मलाल था और उन्होंने इसके लिए पार्टी नेताओं को कोसा भी था. हालांकि कुछ जगहों पर मलाल जाहिर करने वाले करुणा, जया पर जेंडर और उनके प्रोफेशन को लेकर तंज भी कसते नजर आते हैं.
आपकी राय