The Great Weddings of Munnes Review: उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी अभिषेक बनर्जी की सीरीज
The Great Weddings of Munnes Web series Review in Hindi: अभिषेक बनर्जी और बरखा सिंह की कॉमेडी वेब सीरीज 'द ग्रेट वेडिंग ऑफ मुन्नेस' वूट सेलेक्ट पर स्ट्रीम हो रही है. राज शांडिल्य के मार्गदर्शन में बनी इस वेब सीरीज ने उन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है, जो ट्रेलर देखने के बाद जगी थीं.
-
Total Shares
''खोदा पहाड़, निकली चुहिया''...ये कहावत ओटीटी प्लेटफॉर्म वूट सेलेक्ट पर स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज 'द ग्रेट वेडिंग ऑफ मुन्नेस' पर सटीक बैठ रही है. इस सीरीज की रिलीज से 10 दिन पहले यानी 26 जुलाई को इसका ट्रेलर लॉन्च हुआ था. फिल्म पहली झलक में कमाल की लगी थी. इसके गुदगुदाने वाले चुटिले संवाद और कलाकारों के सहज अभिनय ने दिल जीत लिया था. ट्रेलर देखकर लगा कि 'पंचायत', 'गुल्लक' और 'निर्मल पाठक की घर वापसी' की फेहरिस्त में एक नई सीरीज शामिल होने वाली है. लेकिन रिलीज होने के बाद सीरीज ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया. फिल्म के ट्रेलर को दिलचस्प बनाने में जितनी मेहनत की गई थी, उसकी आधी मेहनत भी सीरीज के निर्माण में नजर नहीं आती है. सबसे ज्यादा दुख तो ये जानकर होता है कि इसे राज शांडिल्य जैसे मशहूर निर्माता-निर्देशक के मार्गदर्शन में बनाया गया है. इतना ही नहीं वो इसकी कहानी के लेखन टीम में भी शामिल हैं.
राज शांडिल्य को आयुष्मान खुराना की फिल्म 'ड्रीम गर्ल' के निर्देशन के लिए जाना जाता है. हाल ही में रिलीज हुई नुसरत भरूचा की फिल्म 'जनहित में जारी' की कहानी भी राज ने ही लिखी थी. उन्होंने ज्यादातर कॉमेडी शोज लिखे हैं. इसमें सोनी टीवी का 'कॉमेडी सर्कस' और 'द कपिल शर्मा शो' का नाम शामिल है. राज को मुख्यत: कॉमेडी सिनेमा और शोज के लिए लेखन के लिए जाना जाता है. लेकिन 'द ग्रेट वेडिंग ऑफ मुन्नेस' ने उनकी साख पर बट्टा लगा दिया है. 10 एपिसोड की इस सीरीज में कहानी इतनी दिशाओं में भटकती है कि मुख्य कहानी का रोमांच ही खत्म हो जाता है. नायक और नायिक की शादी कराने निकले निर्देशक और लेखन मंडली के लोग पूरे देश का चक्कर लगवा देते हैं. लेकिन अंतिम में परिणाम ढ़ाक के तीन पात ही निकलता है. समझ नहीं आता कि इतने सरल विषय पर बुनी गई सीधी कहानी को इतना ज्यादा विस्तार और मोड़ देने की क्या जरूरत थी.
वेब सीरीज की कहानी
''इनसे मिलिए ये हैं मुन्नेस कुमार यादव. इनकी जिंदगी भी बिल्कुल सल्लू भाई जैसी हो गई है. वो अपनी मर्जी कुवांरे हैं और ये लड़कियों की वजह से''...वेब सीरीज 'द ग्रेट वेडिंग ऑफ मुन्नेस' की कहानी को इसके इस डायलॉग के जरिए बखूबी समझा सकता है. ये सीरीज मुन्नेस कुमार यादव (अभिषेक बनर्जी) नामक एक लड़के की कहानी पर आधारित है, जिसकी तमाम कोशिशों के बावजूद शादी नहीं हो रही है. पूरा यादव परिवार परेशान है. मुन्नेस बड़ी शिद्दत से अपने लिए लड़की की तलाश कर रहा है. सरकारी नौकरी है, लेकिन फिर भी कोई लड़की घास तक नहीं डाल रही है. हर जगह रिजेक्शन मिलता है. यहां तक कि परिवार और दोस्त भी उसका मजाक उड़ाने लगते हैं. तभी उसकी जिंदगी में एक लड़की का प्रवेश होता है. माही (बरखा सिंह) एक सर्टिफिकेट में करेक्शन कराने के लिए मुन्नेस के ऑफिस जाती है. वहीं दोनों की मुलाकात होती है. मुन्नेस की सादगी माही को पसंद आता है. वो उससे प्यार करने लगती है. एक दिन लगे हाथ शादी का प्रस्ताव रख देती है. मुन्नेस को विश्वास ही नहीं होता. माही कहने पर मुन्नेस का परिवार उसके घर आता है.
माही के दादाजी विधायक हैं. उनका कहना है कि वो उसी लड़के से अपनी पोती की शादी करेंगे जिससे उसकी कुंडली मिलेगी. कुंडली मिल जाती है. मुन्नेस बारात लेकर माही के घर पहुंच जाता है. दोनों के फेरे होने लगते हैं. तभी अचानक पंडितजी उनकी जिंदगी में खलनायक बनकर सामने आ जाते हैं. वो शादी को रोककर कहते हैं कि ये शादी होना असंभव है. यदि ये शादी हुई तो मुन्नेस की मौत हो जाएगी. यदि माही से शादी करनी है, तो मुन्नेस को पहले किसी दूसरी लड़की से शादी करनी होगी. उसके बाद वो उस शादी को तोड़कर माही से शादी कर सकता है. इसके बाद शुरू हो जाती है उस लड़की की तलाश जिससे मुन्नेस की शादी कराई जाए. पूरा परिवार लड़की की तलाश में लग जाता है. इस तरह उस लड़की की तलाश में इस वेब सीरीज के आठ कीमती एपिसोड खर्च हो जाते हैं. अंत में मथुरा में रहने वाले मुन्नेस का ऐसा आगरा कनेक्शन निकलता है, जो पूरी समस्या को एक झटके में खत्म कर देता है. आखिर मुन्नेस का आगरा कनेक्शन क्या है? क्या मुन्नेस और माही की शादी हो पाती है? इन सवालों के जवाब के लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
वेब सीरीज की समीक्षा
वेब सीरीज 'द ग्रेट वेडिंग ऑफ मुन्नेस' का निर्देशन सुनील सुब्रमणि ने किया है. ये उनकी डेब्यू सीरीज है. राज शांडिल्य ने उनसे अपेक्षाओं बहुत की होंगी, लेकिन वो उस पर खरे नहीं उतर पाए हैं. सही मायने में कहे तो सारा झोल निर्देशन और कहानी लिखने वाली टीम का है. किसी सीरीज के लिए आधे दर्जन से अधिक लेखकों ने काम किया हो तो अमूमन उसे बेहतर कैटेगरी में माना जाता है. लेकिन यहां यही कमजोर पक्ष बन गया है. इस सीरीज को राज के साथ विपुल विठलानी, पार्थ अजय देसाई, हेमंत जंगली, जय बसंतू सिंह, सोनाली सिंह और शोभित सिन्हा ने मिलकर लिखा है. इतनी लंबी टीम कहानी को सही दिशा में ले जाने की बजाए भटकाने का काम ज्यादा किया है. ओटीटी के जमाने में फ्रेश कंटेंट की डिमांड ज्यादा है. हर कोई नई कहानी और नया ट्रीटमेंट चाहता है. इसमें सीरीज निराश करती है. अभिषेक बनर्जी हमेशा से ही उम्दा कलाकार माने जाते हैं, जिनके कंधों पर सीरीज टिकी हुई है. उन्होंने अपना काम बखूबी किया है. लेकिन कहानी का रायता इतना ज्यादा फैल गया है कि इसे संभालना किसी भी कलाकार के लिए मुश्किल जान पड़ता है.
मुन्नेस की बुआ के किरदार में सुनीता रजवार, जुआरी फूफा के किरदार में परेश गनात्रा, तायाजी के किरदार में सुनील चितकारा और दोस्त सुरेश के किरदार में आकाश दाभाडे ने अपना काम ईमानदारी से किया है. उनकी प्रेमिका माही के किरदार में बरखा सिंह बहुत खूबसूरत लगी हैं. पूरी सीरीज कलाकारों के दमदार अभिनय प्रदर्शन के दम पर टिकी रहती है. लेकिन पटकथा और निर्देशन उनकी मेहनत पर पानी फेर देता है. कुल मिलाकर, 'द ग्रेट वेडिंग्स ऑफ मुन्नेस' का आधार दिलचस्प लगता है, लेकिन कहानी में कई खामियां हैं और इसे अच्छी तरह से निष्पादित नहीं किया गया है. इस तरह की एक साधारण कहानी के लिए 10 एपिसोड बहुत खिंचे हुए लगते हैं और वेब शो को उबाऊ बना देते हैं. इस सीरीज की एक अच्छी बात यह है कि यह कुछ स्थितियों में हंसी की गारंटी देती है. हालांकि, हास्य परिस्थिति की बजाए केवल संवादों में दिखता है. सही मायने में कहें तो इस सीरीज से जितनी उम्मीदें थीं, वो पूरी नहीं हो पाई हैं. राज एंड टीम को आने वाली सीरीज के लिए ज्यादा मेहनत करनी होगी. यदि आप अभिषेक की अदाकारी के कायल हैं, तो ही इसे देखें.
आपकी राय