The Kashmir Files की चर्चा के बीच 'गुजरात फाइल्स' फिल्म बनाने की बात करने वाले कौन हैं?
Gujarat Files Book: नेशनल अवॉर्ड विनर डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी अनुपम खेर और मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' इस वक्त सुर्खियों में है. इस फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर लोग अपनी राय जाहिर कर रहे हैं. एक तरफ लोग इस फिल्म को देखने की अपील कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ कुछ लोग एक नया राग अलाप रहे हैं.
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90 के दशक में कश्मीर में हुए नरसंहार और कश्मीरी पंडितों के पलायन पर आधारित फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' की चर्चा हर तरफ हो रही है. नेशनल अवॉर्ड विनर डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी और अतुल श्रीवास्तव जैसे कलाकार अहम किरदारों में हैं. कश्मीर में धारा 370 के खत्म होने के बाद पहली बार घाटी के बारे में पूरे देश में लोग बात कर रहे हैं. फिल्म में कश्मीरी पंडितों के उस दर्द को दिखाने का दावा किया जा रहा है, जो पिछले तीन दशक से कश्मीर घाटी में दफन था. उस नरसंहार की चर्चा कोई नहीं करता था. उसमें पलायन हुए पंडितों के दर्द को कोई महसूस नहीं करता था. लेकिन सिनेमा के जरिए एक बार फिर इसे रूपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया गया है. इसलिए राष्ट्रवादी विचारधारा को मानने वाले लोग इस फिल्म का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन वहीं कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि कश्मीर फाइल्स की तरह 'गुजरात फाइल्स' फिल्म भी बनाई जानी चाहिए.
अनुपम खेर और मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन कर रही है.
यहां सवाल उठता है कि आखिर वो लोग कौन हैं, जो फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' की चर्चा के बीच 'गुजरात फाइल्स' का राग अलाप रहे हैं. यदि सोशल मीडिया पर लिखे जा रहे पोस्ट पर गौर करें, तो समझ में आ जाएगा कि इस तरह की बात करने वाले आखिर कौन लोग हैं? दरअसल, हिंदुस्तान मोदी युग में दो वैचारिक हिस्सों में बंट चुका है. एक तरफ राष्ट्रवाद के समर्थक हैं, जो मोदी को पसंद करते हैं. वहीं दूसरी तरफ वो लोग हैं, जो मोदी को नापसंद करते हैं; और खुद को तथाकथित सेकुलर कहते हैं. उनका मानना है कि इस फिल्म के जरिए कश्मीरी पंडितों के दर्द को बयां करना तो ठीक है, लेकिन साल 2002 में गुजरात में हुए दंगों के दौरान प्रभावित हुए लोगों का दर्द कौन दिखाएगा? ऐसे लोग चाहते हैं कि कश्मीरी पंडितों की तरह गुजरात दंगा पीड़ितों के बारे में भी बात की जाए. सीधे तौर पर ऐसे लोगों के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह हैं, जिनका नाम इस प्रकरण में बार-बार आया है, लेकिन कोर्ट में साबित नहीं हो सका है.
नीचे गुजरात फाइल्स को लेकर आए कुछ पोस्ट देखिए...
Do you Have even Guts to Talk about it?Make A Film on this BookGUJARAT FILES. Can You?@RanaAyyub#GujaratFile #TheKashmirFiles pic.twitter.com/y2mXNBqnHN
— Laibah Firdaus. لائبہ فردوس (@FirdausLaibah) March 13, 2022
Kashmir Files, Gujarat Files, Bengal Files, Kerala Files, Muzaffarnagar Files, and the list goes on…
— Tushar Gupta (@Tushar15_) March 13, 2022
Director of Director of Kashmir Files?? Gujarat Files??https://t.co/SonTSlUnxy pic.twitter.com/k6Q5p3Hpdd
— बाबूराव गणपतराव आप्टे (@baburao__aapte) March 13, 2022
How about Making The Gujarat Files? The world need to know how Modi Ji supervise the massacre of 100 muslims at Naroda and total of over 2000 in #gujarat2002 https://t.co/EOhi4IRLT7 pic.twitter.com/qVCwZl0q7k
— Bello King Khan (@Bellokingkhan) March 12, 2022
God save India!!! Waiting for Gujarat Files!!! https://t.co/NufXiF1JPy
— Skysea!!! (@BeHumanWithLove) March 13, 2022
आखिर 'गुजरात फाइल्स' क्या है?
वैसे जानकारी के लिए बता दें कि 'गुजरात फाइल्स' एक किताब का नाम भी है. इसे एक पत्रकार राणा अयूब ने लिखा है. गुजरात दंगे पर आधारित 'गुजरात फाइल्स- अनाटॉमी ऑफ ए कवर अप' नामक इस किताब में दावा किया गया है कि दंगों के समय कई अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव था. इसमें हरेन पांड्या मर्डर केस पर भी एक चैप्टर है. इसमें जांच अधिकारी वाईए शेख के आरोपों को भी जगह दी गई है. इतना ही नहीं अशोक नारायण, जीएल सिंघल, पीसी पांडे, जीसी राईघर, राजन प्रियदर्शी और वाईए शेख जैसे लोगों का स्टिंग ऑपरेशन करने का भी दावा किया गया था. इसकी लेखिका वाशिंगटन पोस्ट जैसे नामचीन अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थाओं के लिए लिखती रही हैं. मोदी सरकार की मुखर होकर आलोचना करने वाली अयूब के सोशल मीडिया पर लाखों की संख्या में फॉलोअर्स हैं. इनके खिलाफ सितंबर 2021 में गाजियाबाद में मनीलांड्रिंग का केस दर्ज हुआ था. पिछले महीने ईडी ने भी मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है. उन पर पैसों में धोखाधड़ी का आरोप है.
#TheKashmirFiles is SENSATIONAL, biz more than doubles on Day 2… Registers 139.44% growth, HIGHEST EVER GROWTH [Day 2] *since 2020*... East, West, North, South, #BO is on ???… This film is UNSTOPPABLE… Fri 3.55 cr, Sat 8.50 cr. Total: ₹ 12.05 cr. #India biz... FANTASTIC! pic.twitter.com/GHS5RqP7dS
— taran adarsh (@taran_adarsh) March 13, 2022
लोकप्रियता के शिखर पर फिल्म
फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' बिना किसी प्रमोशन के इस वक्त अपने लोकप्रियता के शिखर पर है. हर तरफ फिल्म को लेकर चर्चा हो रही है. मल्टीप्लेक्स से लेकर सिंगल स्क्रीन थियेटर तक हाऊस फुल जा रहे हैं. फिल्म 'राधे श्याम' के साथ रिलीज हुई इस फिल्म को बहुत कम स्क्रीन मिला था, लेकिन इसके बावजदू फिल्म ने कमाई के मामले में प्रभास की फिल्म को टक्कर दिया है. इसका दो दिन का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन करीब 12 करोड़ रुपए है, जबकि फिल्म की कुल लागत ही 14 करोड़ रुपए है. इस फिल्म की कहानी दर्शकों के दिल को छू रही है. ज्यादातर दर्शक फिल्म देखने के बाद बेहद भावुक हो जा रहे हैं. रो रहे हैं. इसकी लोकप्रियता को देखते हुए हरियाणा सरकार ने सबसे पहले फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया. उसके बाद गुजरात और मध्यप्रदेश सरकार ने भी जनभावनाओं को देखते हुए फिल्म को राज्य में टैक्स फ्री कर दिया है. मध्य प्रदेश में तो टैक्स फ्री किए जाने की जानकारी देने खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सामने आए हैं. उन्होंने वीडियो शेयर किया है.
Presenting #TheKashmirFiles It’s your film now. If the film touches your heart, I’d request you to raise your voice for the #RightToJustice and heal the victims of Kashmir Genocide.@vivekagnihotri @AnupamPKher @AdityaRajKaul pic.twitter.com/Gnwg0wlPKU
— Suresh Raina?? (@ImRaina) March 11, 2022
पंडितों के नरसंहार पर आधारित
फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों के पलायन की ऐतिहासिक घटना पर आधारित है. बताया जाता है कि कश्मीर से पंडितों को हटाने के लिए उनका वहां नरसंहार किया गया था. साल 1990 में घाटी के भीतर 75,343 कश्मीरी पंडित परिवार थे. लेकिन साल 1990 और 1992 के बीच आतंकियों के डर से 70 हजार से ज्यादा परिवारों ने घाटी को छोड़ दिया. साल 1990 से 2011 के बीच आतंकियों ने 399 पंडितों की हत्या की है. पिछले 30 सालों के दौरान घाटी में महज 800 हिंदू परिवार ही बचे हैं. साल 1941 में कश्मीरी हिंदुओं का आबादी में हिस्सा 15 फीसदी था. लेकिन साल 1991 तक उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 0.1 फीसदी ही रह गई. मातृभूमि और कर्मभूमि से विस्थापित होने के कश्मीरी पंडितों के दर्द को व्यापक रिसर्च के बाद पेश किया जा रहा है.
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