Tashkent Files: लाल बहादुर शास्त्री की मौत का कारण पता चला तो माथा पीट लिया
विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द ताशकंद फाइल्स सिनेमाघरों में आ चुकी है और लगातार चर्चा में है. जब बात फिल्म की हो तो उसमें सच-झूठ नहीं देखा जाता. वहां मुद्दा मनोरंजन रहता है. हमें फिल्म को बस मनोरंजन के एक माध्यम की तरह लेना चाहिए.
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अमेरिका के एक निर्देशक हुए हैं डेविड लिंच. बरसों पहले उन्होंने सिनेमा के विषय में कहा था कि, 'हर दर्शक को एक अलग चीज मिलने वाली है. यही पेंटिंग, फोटोग्राफी, सिनेमा की विशेषता है'. डेविड लिंच की ये बात भले ही हमें याद न हो मगर हममें से बहुत से लोग ऐसे होंगे जिन्होंने अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर देखी होगी. फिल्म में वासेपुर के दबंग रामाधीर सिंह ने सिनेमा को लेकर अपने बेटे से एक बहुत गहरी बात कही थी. बात तब शायद हमें न समझ में आई हो. मगर आज जब हम उसे हालिया रिलीज फिल्म ' द ताशकंद फाइल्स' के सन्दर्भ में सोचें तो मिलता है कि फिल्म में जो कुछ भी रामाधीर सिंह ने कहा एक एक शब्द सही है. विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है.
निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द ताशकंद फाइल्स की कांग्रेस ने खूब आलोचना की थी
मूवी से कांग्रेस का बेचैन होना स्वाभाविक था. पार्टी ने पूरी कोशिश की कि फिल्म की रिलीज पर रोक लगा दी जाए लेकिन तमाम विवादों को दरकिनार करते हुए फिल्म फिल्म हमारे सामने है. ध्यान रहे कि फिल्म की कहानी देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के मौत की गुत्थी पर आधारित है. फिल्म की खास बता ये है कि ये आज के समय के इर्द गिर्द दर्शायी गई है.
फिल्म के केंद्र में एक महत्त्वाकांक्षी पत्रकार रागिनी फुले को दिखाया गया है, जो एक ऐसी न्यूज़ के इंतजार में हैं जो दुनिया भर में तहलका मचा दे. इसी बीच उनके हाथ ताशकंद फाल्स लग जाती हैं, जिसमें लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मृत्यु का सच लिखा होता है. वह उन तथ्यों को पढ़कर अखबारों में छपवा देती है. जिसके चलते सरकार को लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु का केस दोबारा खोलना पड़ता है. धीरे धीरे कहानी शास्त्री जी की मौत के बाद हुए भारत के संविधान और सरकार में बदलाव के रास्ते पर चलकर सत्य खोज निकालने का प्रयास करती नजर आती है.
फिल्म में शास्त्री जी की मौत से परदा हटाने के लिए एक सरकारी समिति को दर्शाया गया है जिसमें मिथुन चक्रवर्ती, नसीरुद्दीन शाह, पल्लवी जोशी, पंकज त्रिपाठी, मंदिरा बेदी, राजेश शर्मा हैं. चूंकि, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत फिल्म का प्लाट है, इसलिए निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है कि, दर्शकों में फिल्म को लेकर उत्सुकता बनी रहे. तो वहीं उन्हें पूरा मनोरंजन मिले.
फिल्म में चाहे मिथुन चक्रवर्ती, नसीरुद्दीन शाह, पंजक त्रिपाठी जैसे दिग्गज कलाकारों की एक्टिंग हो. या फिर एक छोटे से सरकारी दफ्तर में शूट हुई फिल्म की परिस्थितियां हों. कई ऐसे दृश्य हैं जिन्हें देखकर एक दर्शक अपने आप को अपने नाखून चबाने से नहीं रोक पाएगा. बात अगर फिल्म के संगीत की हो तो कह सकते हैं कि फिल्म का संगीत ही फिल्म की जान है. फिल्म में कई मौके ऐसे आते हैं जब संगीत के जरिये ही निर्देशक ने एक पूरे सीन को जस्टिफाई करके रख दिया है.
कलाकारों के चयन को फिल्म द ताशकंद फाइल्स का सबसे मजबूत पक्ष माना जा सकता है
बहरहाल, भारतीय परिपेक्ष में सिनेमा का मतलब मनोरंजन है. टिकट खरीदकर थियेटर में आने से पहले दर्शक को भी इस बात का पूरा अंदाजा रहता है कि 'रील' के जरिये वो जो कुछ भी पर्दे पर देख रहा होगा वो रियल लाइफ में सच नहीं होता. फिल्म में जिस तरह का निर्देशन किया गया है, कहीं न कहीं निर्देशक ने दर्शकों के इस मिथक को तोड़ने का काम किया है. हालांकि वो इसमें कामयाब नहीं हो पाए हैं.
बात अगर इसके पीछे के अहम कारण पर हो तो फिल्म की एडिटिंग को इसकी मुख्य वजह माना जा सकता है. फिल्म की एडिटिंग निर्देशक की जल्दबाजी को दर्शाती नजर आ रही है.
खैर, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत को एक लम्बा वक़्त बीत चुका है. शास्त्री जी कैसे मरे ? क्यों मरे ये रहस्य आज भी जस का तस है. इसलिए बेहतर यही है कि हम इस फिल्म को एक फिल्म की तरह लें और इसपर ज्यादा गंभीर न हों. फिल्म अच्छी है. टिकट बुक करिए. देखिये और अपने घर वापस आ जाइए. जहां बात मनोरंजन की होती है वहां दिमाग लगाना बल्कि दिमाग ज्यादा लगाना वैसे भी अच्छी बात नहीं है.
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