Thor: Love And Thunder के सामने कोई फिल्म नहीं, दक्षिण के साथ हॉलीवुड से भी भागने लगा है बॉलीवुड!
जुलाई के पहले हफ्ते में हिंदी टेरिटरी में दो क्लैश थे. तीसरे हफ्ते में भी हिट: द फर्स्ट केस और शाबास मिठू के बीच क्लैश है. दूसरा हफ्ता खाली होने के बावजूद बॉलीवुड के निर्माताओं ने अपनी फिल्म रिलीज करने से बचे क्योंकि मार्वल की Thor: Love And Thunder आ रही है. बाहरी मुकाबले से भाग रहे बॉलीवुड का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है.
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कोरोना महामारी के बाद सिनेमाघरों के बंद रहने की वजह से फिल्मों को लंबा इंतज़ार करना पड़ा. सिनेमाघर जब से खुले हैं- आलम यह है कि लगभग हर शुक्रवार को बड़ी-बड़ी फ़िल्में आ रही हैं. हिंदी बॉक्स ऑफिस पर जुलाई के पहले हफ्ते में रॉकेट्री: द नाम्बी इफेक्ट और राष्ट्रकवच ओम के बीच क्लैश देखने को मिला. हालांकि दूसरे हफ्ते में शुक्रवार को कोई बड़ी हिंदी फिल्म रिलीज नहीं हो रही है. मगर इसी महीने के तीसरे हफ्ते में 15 जुलाई के दिन दो फ़िल्में क्लैश में हैं- राजकुमार राव की हिट: द फर्स्ट केस और तापसी पन्नू की शाबास मिठू.
जुलाई के पहले और तीसरे हफ्ते में क्लैश और दूसरे हफ्ते में सन्नाटे की वजह है. असल में दूसरे हफ्ते के शुक्रवार यानी 8 जुलाई को तायका वेट्टी के निर्देशन में बनी मार्वल स्टूडियोज की 'थॉर: लव एंड थंडर' आ रही है. मार्वल स्टूडियोज की पिछली अन्य फिल्मों की तरह ही थॉर: लव एंड थंडर' भी सुपरहीरो ड्रामा ही है. जिसमें अलौकिक शक्तियों से लैस तूफ़ान का एसगार्डियन देवता एक बार फिर दर्शकों को हैरान करने के लिए तैयार है. मार्वल की सुपरहीरोज फिल्मों को दुनियाभर में पसंद किया जाता है. यहां तक कि भारत में भी पिछली कई फिल्मों का रिकॉर्डतोड़ बिजनेस उनकी कामयाबी का सबूत है.
दक्षिण ही नहीं हॉलीवुड से भी बुरी तरह डरता है बॉलीवुड और उसकी वजह भी है
कहने की बात नहीं कि आला दर्जे का अंतरराष्ट्रीय कंटेंट और बॉक्स ऑफिस पर उनके परफोर्मेंस की वजह से दूसरे निर्माता हॉलीवुड फिल्मो से क्लैश का जोखिम मोल लेने से बचते हैं. वैसे ही जैसे साउथ की पैन इंडिया फिल्मों के आगे बॉलीवुड के निर्माता फ्लॉप होने से बचने के लिए अपनी फिल्मों को रिलीज करने से कतराते हैं. बॉलीवुड के लिए साउथ की तरह हॉलीवुड भी बड़ा सिरदर्द बना हुआ है. किसी भी निर्माता ने हॉलीवुड से टक्कर लेने में दिलेरी नहीं दिखाई. जबकि ठीक एक हफ्ते बाद हिट: द फर्स्ट केस और शाबास मिठू के रूप में संभवत: बॉलीवुड की दो अच्छी फ़िल्में हैं, मगर हॉलीवुड से भिड़ने की बजाए एक दूसरे के आमने-सामने हैं.
थॉर: लव एंड थंडर के सामने बॉलीवुड की कोई बड़ी फिल्म रिलीज नहीं हो रही है.
साबित करने के लिए काफी है कि हिंदी फ़िल्में आपस में तो एक-दूसरे के कंटेंट से मुकाबले में संकोच नहीं करतीं, मगर उनकी यही डेयरिंग पता नहीं किन वजहों से हॉलीवुड या दक्षिण की फिल्मों के आगे मर जाती है. या तो बॉलीवुड अपने कंटेंट की कमतरी के फोबिया से जूझ रहा है या फिर पहले के हॉलीवुड और दक्षिण के सिनेमा के हाथों पिछली कई भिड़ंत में नुकसान उठाने के बाद- लड़ने की हिम्मत ही नहीं बची. इससे पहले पिछले साल क्रिसमस से पहले 17 दिसंबर को आई मार्वल की ही स्पाइडर मैन: नो वे होम ने भारत में जबरदस्त बिजनेस किया था.
रणवीर सिंह की 83 को स्पाइडर मैन और पुष्पा ने बुरी तरह डुबोया था
स्पाइडर मैन: नो वे होम ने 200 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई की थी. क्रिसमस पर बॉलीवुड की स्पोर्ट्स पीरियड ड्रामा "83" भी आई थी. रणवीर सिंह की बड़े स्केल की फिल्म बुरी तरह से नाकाम साबित हुई. स्पाइडर मैन: नो वे होम का बिजनेस और अल्लू अर्जुन की पुष्पा: द राइज का बिजनेस यह बताने के लिए पर्याप्त है कि दोनों फिल्मों के सामने 83 किस कदर नाकाम रही. ऐसे एक दर्जन से ज्यादा बड़े मौके हैं जब दक्षिण और हॉलीवुड की फिल्मों के आगे बॉलीवुड के बड़े-बड़े तीसमार खां सुपरस्टार्स की फ़िल्में टिकट खिड़की पर पानी भरती नजर आईं. स्पाइडरमैन के बाद डॉक्टर स्ट्रेंज के बिजनेस ने भी ट्रेड सर्किल को हैरान कर दिया था और भारतीय फिल्मों पर उसका एक असर दिखा.
कहते हैं कि दूध से जली बिल्ली छांछ भी फूंक-फूककर पीती है. कई चुनौतियों का सामना कर रहे बॉलीवुड की हालत भी दूध से जली बिल्ली की तरह है. वैसे भी थॉर को स्पाइडरमैन की तरह ही भारत में खूब सारे स्क्रीन्स मिले हैं. यह फिल्म 2800 से ज्यादा स्क्रीन्स पर है. फिल्म को अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ में भी डब किया गया है. वीकडेज में शनिवार और रविवार को स्क्रीन्स बढ़ जाने की संभावना है. भारत में बड़े पैमाने पर रिलीज होने वाली थॉर तीसरी बड़ी फिल्म है. थॉर से पहले साल 2019 में आई अवेंजर्स एंडगेम को 2845 स्क्रीन और साल 2021 में आई स्पाइडरमैन: नो वे होम को सबसे ज्यादा 3264 स्क्रीन्स मिले थे. भारत में अवेंजर्स एंडगेम ने भी जबरदस्त बिजनेस किया था.
अपनी माद में रहकर कितने दिनों तक बचा रह पाएगा बॉलीवुड?
स्क्रीन्स से भी मार्वल की फिल्मों का भारत में क्रेज समझा जा सकता है. अब थॉर के सामने कोई हिंदी फिल्म आती भी तो उसे स्क्रीन्स पाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता. लग तो यही रहा कि बॉलीवुड सिर्फ अपने कंटेंट से भिड़ंत की सोच सकता है, मगर दक्षिण के सिनेमा या हॉलीवुड से क्लैश की उसमें शायद अब क्षमता ही नहीं बची है. पर सवाल है कि बॉलीवुड इस तरह अपनी माद में रहकर कितने दिनों तक बचा रह पाएगा. इससे तो साउथ और हॉलीवुड की तमाम फिल्मों का दबदबा बढ़ जाएगा. साउथ और हॉलीवुड फ़िल्में एक भाषा में बनाते ही हैं उन्हें बस डब करने की जरूरत पड़ेगी. बॉलीवुड के हाथ से लगातार चीजें फिसलती दिख रही हैं.
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