मुस्लिम औरतों को आजादी का सबक दे गईं सिने अदाकारा फर्रुख़ जाफर!
जौनपुर से लखनऊ में ब्याही मुस्लिम परिवार की फर्रुख़ जाफर रेडियो, थिएटर और फिर बड़े पर्दे पर अपनी पहचान बना लें तो ये कोई मामूली बात नहीं है. और इससे भी ज्यादा कमाल की बात ये रही कि जिस बालीवुड में जगह पाने के लिए देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां वर्षों तक मुंबई के फुटपाथों पर पड़ी रहीं उस बॉलीवुड ने लखनऊ आकर उनको काम दिया.
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बॉलीवुड की बुज़ुर्ग अदाकार फर्रुख़ जाफर दुनिया छोड़ गईं लेकिन भारत की क्रिएटिव महिलाओं के लिए बड़ा पैग़ाम छोड़ गईं. औरत को सीमित दायरे में बांधने वाले पुरुष समाज की दखयानूसी सलाखो़ं को तोड़ने वाली फर्रुख़ का हुनर हर बंदिश को हराने में कामयाब रहा. अंदाजा लगाइए छोटे से शहर जौनपुर से लखनऊ में ब्याही मुस्लिम परिवार की एक युवती रेडियो, थिएटर और फिर बड़े पर्दे पर अपनी पहचान बना ले तो ये कोई मामूली बात नहीं है. और इससे भी ज्यादा कमाल की बात ये रही कि जिस बालीवुड में जगह पाने के लिए देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां वर्षों तक मुंबई की फुटपाथों पर पड़ी रही उस बॉलीवुड के नामी फिल्म प्रोडक्शन हाउसेज़ ने लखनऊ आकर उनको काम दिया. फर्रुख़ लखनऊ में ही रहीं, उन्होंने अपने शहर से पलायन कर काम पाने के लिए मुंबई जाकर स्ट्रगल नहीं किया बल्कि मुंबई उनकी कला से प्रभावित होकर ख़ुद लखनऊ आया. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, शाहरुख ख़ान, आमिर खान और सलमान ख़ान जैसे सुपर स्टार्स की फिल्मों में उन्हें महत्वपूर्ण किरदार निभाने का काम दिया गया.
एक्टर फर्रुख़ जाफर ने मुस्लिम औरतों को आजादी का असली मतलब सिखा दिया है
फिल्म अदाकार फर्रुख़ जाफर फेफड़ों में इंफेक्शन के इलाज के दौरान इस दुनिया से कूच कर गईं. शनिवार को लखनऊ स्थित मलका जहां की कर्बला में उन्हें सुपूर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया. वो 88 बरस की थीं. सन 1933 में जन्मीं लखनऊ की सबसे बुज़ुर्ग हरदिल अज़ीज़ इस अदाकारा की जन्मभूमि जौनपुर थी. कम उम्र में शादी के बाद वो अपनी ससुराल लखनऊ की तहज़ीब का आइना बन गईं थीं. यहीं उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की.
अस्सी के दशक में मुस्लिम समाज की किसी महिला का फिल्म की दुनिया में कदम रखना आसान नहीं था. शोहरतयाफ्ता और इज्जजतदार मुस्लिम परिवार की जिन तरक्कीपसंद महिलाओं ने पर्दे की दुनिया में क़दम रख कर मिसाल क़ायम की थी उसमें फर्रुख जाफर अग्रणी थीं. 1963 में उन्होंने आकाशवाणी से बतौर उद्घोषिका आपने कैरियर का सफर शुरू किया था. फिर थिएटर में अभिनय की बारीकियां सीखीं.
फिल्म निदेशक मुजफ्फर अली लखनऊ की पृष्ठभूमि पर उमराव जान बना रहे थे. उन्होंने इनको रेखा की मां का चरित्र निभाने का मौका दिया. इसके बाद फिल्म की दुनिया में बतौर अदाकारा उन्होंने ख़ूब शोहरत हासिल की और कला, संस्कृति और अदब के शहर-ए-लखनऊ का नाम रौशन किया. उन्हें काम देने के लिए मुंबई फिल्म नगरी की बड़ी हस्तियां लखनऊ आकर उन्हें काम करने की दावत देती थीं.
पिछले बरस ही उन्होंने महानायक अमिताभ बच्चन के साथ गुलाबो सिताबो में काम किया था. उनकी आखिरी फिल्म महरुन्निसा थी. मीडिया पर तंज़ करने वाली आमिर ख़ान की पीपली लाइफ फिल्म में इनके किरदार को काफी सराहा गया था. स्वदेश, सुल्तान और अपने ज़माने की मशहूर फिल्म उमराव जान जैसी तमाम फिल्मों में सशक्त किरदार निभाने वाली फर्रुख़ जाफर के शौहर एस एम जाफर साहब फ्रीडम फाइटर थे, पत्रकारिता भी उन्होंने की थी.
दो बार विधानपरिषद के सदस्य रहे जाफर साहब तरक्कीपसंद आज़ाद ख्याल शोहरतयाफ्ता शख्सियत थे. शोहर के सहयोग से फर्रुख़ जाफर ने बच्चों की परवरिश के साथ आखिरी दम तक फिल्मों में सशक्त अभिनय की छाप छोड़कर साबित कर दिया कि महिला किसी भी छोटे-बड़ेशहर, संस्कृति, समाज या धर्म की हो, उसमें जज़्बा हो तो हौसलों की उड़ानों से वो तरक्क़ी के हर आसमान पर उड़ानें भर सकती है.
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