विक्रम वेधा: आमिर की लाल सिंह चड्ढा की तरह एक और बॉलीवुड रीमेक का हो सकता है बंटाधार!
विक्रम वेधा का टीजर आ चुका है. रितिक-सैफ की फिल्म अगले महीने रिलीज होगी. मगर सोशल मीडिया पर यह फिल्म भी उसी ट्रैप में फंसती दिख रही है जिसमें लाल सिंह चड्ढा फंस गई थी. आइए जानते हैं वह ट्रैप क्या है और कैसे बॉलीवुड फिल्मों के खिलाफ बायकॉट ट्रेंड लॉजिकल रूप धर लेता है.
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दुनिया कहां से कहां चली गई और बॉलीवुड अभी तक गन के खोखे लोड अनलोड करने के पुराने तरीके में ही फंसा हुआ है. उसे अब भी यही लग रहा कि बॉलीवुड वाले मास्टरपीस ही बना रहे, मगर मूर्ख दर्शकों को फिल्मों की समझ ही नहीं है. बॉलीवुड को खारिज कर कूड़ा देख रहे हैं. उसे शायद यह भी लग रहा हो कि गोबरपट्टी में लोगों की जेबें भयानक रूप से खाली हैं और इस वजह से कोई सिनेमाघर में बॉलीवुड की फ़िल्में देखने नहीं आ रहा. खैर इस तरह के सवाल जवाब के बीच बॉलीवुड की एक और रीमेक विक्रम और वेधा चर्चा में है. इसे अगले महीने 30 सितंबर को रिलीज करने की तैयारी है. मूल रूप से यह फिल्म साल 2017 में तमिल में बनाई गई थी. यह बेताल पचीसी की कहानी से प्रेरित है. इसमें आर माधवन और विजय सेतुपति अहम भूमिकाओं में दिखे थे.
विक्रम वेधा की कहानी असल में एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस अफसर और एक खूखार साइको अपराधी की है. मूल फिल्म के निर्देशक ही बॉलीवुड रीमेक भी बना रहे हैं. अभी कुछ ही दिन पहले विक्रम वेधा पर बॉलीवुड का असर साफ़ दिखा. दुर्भाग्य है यह. एक दृश्य है. पुलिस अफसर विक्रम की भूमिका में सैफ अली खान चले जा रहे हैं. गन में वैसे ही मैगजीन लोड करते चलते दिखते हैं जैसा उन्होंने मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, फैंटम, सैक्रेड गेम्स आदि में किया है. हूबहू वैसे ही. चेहरे पर वही भाव. गन के साथ बॉलीवुड नायकों का यह कॉमन सीक्वेंस हैं. चेहरे अलग हैं बाकी सबकुछ हूबहू. अब पाठकों को लग रहा होगा कि भला ऐसी कहानी क्यों बताई रही है. ठीक है- एक दृश्य भर तो है.
विक्रम वेधा में रितिक-सैफ.
बॉलीवुड और दूसरे सिनमा में यही फर्क इस वक्त बहसतलब है. असल में यह बताने की कोशिश है कि कैसे कोई फिल्म- वह चाहे ओड टू माई फादर (सलमान ने भारत बनाई), जर्सी (शाहिद कपूर के साथ सेम टाइटल में आई), फ़ॉरेस्ट गंप (आमिर ने लाल सिंह चड्ढा बनाई) हो या फिर तमिल की विक्रम वेधा- मास्टरपीस का हाल बॉलीवुड आते-आते क्या से क्या हो जाता है. अब अगर बॉलीवुड के निगेटिव कैम्पेन की बात करें तो कोई भी निगेटिव कैम्पेन तब असरदार होता है जब कंटेंट में उसे जस्टीफाई करने वाली चीजें मिलने लगती है. अगर जस्टीफाई करने वाली चीजें नहीं हैं तो भारी निगेटिव कैम्पेन के बावजूद फ़िल्में फ्लॉप हो जाती हैं. कंटेंट में देखने लायक चीजें हैं तो पद्मावत और गंगूबाई काठियावाड़ी जैसी फ़िल्में विरोध झेलकर भी पैसे कमा ही लेती हैं. अच्छा है कि संजय लीला भंसाली रीमेक नहीं बनाते.
कैसे बॉलीवुड के खिलाफ बायकॉट ट्रेंड पकड़ता है जोर?
असल में ओटीटी के आने से कुछ समय पहले तक इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता था. ग्लोबल सिनेमा कुछ लोगों की पहुंच में था. ओटीटी की लोकप्रियता ने अब ग्लोबल सिनेमा को आम दर्शकों की पहुंच में कर दिया है और अब लोग मूल फ़िल्में भी देखते हैं. तब तो जरूर देखने लगते हैं जब उनकी चर्चा होती है. सोशल मीडिया पर बॉलीवुड की किसी फिल्म को जब निशाना बनाया जाता है तो उसके सबसे कमजोर पहलुओं को उभारा जाता है. इस पर अलग-अलग भाषा, क्षेत्र और विचारधारा के लोगों की राय एक जैसी नजर आती है. उदाहरण के लिए आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा को सबसे ज्यादा कमजोर मेकर्स के उस प्रचार ने किया कि यह फिल्म दुनियाभर में तहलका मचा चुकी हॉलीवुड की ऑस्कर विनर फॉरेस्ट गंप का आधिकारिक रीमेक है.
निगेटिव कैम्पेन में दिखा कि लोग मूल फिल्म की तुलना करने लगें. और तुलना कई स्तरों पर हुई. कहानी, तकनीक पक्ष, अभिनय और परिवेश को लेकर तुलनाएं सामने आ रही थीं. लोग दोनों फिल्मों के एक जैसे दृश्यों को सामने रख रहे थे और यह बताने का प्रयास कर रहे थे कि देखो आमिर जिस रीमेक को मास्टरपीस बनाने पर तुले हैं वह असल में मूल फिल्म के मुकाबले कितना घटिया, तर्कहीन और बचकाना है. लाल सिंह चड्ढा के खिलाफ बेशक निगेटिव कैम्पेन की और भी वजहें थीं, मगर इस एक पॉइंट ने फिल्म को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया. बर्बादी की सबसे बड़ी वजह है यह. बाकी बॉलीवुड के अपने बेंचमार्क में फिल्म मनोरंजक ही है.
विक्रम वेधा का टीजर आने के बाद अब फॉरेस्ट गंप वाला फ़ॉर्मूला रितिक रोशन और सैफ अली खान की फिल्म के खिलाफ नजर आने लगा है. दोनों एक्टर्स के परफॉर्मेंस की मूल फिल्म से तुलना हो रही है. ट्रेलर आने के बाद दोनों के कंटेंट की तुलना होने लगेगी. जबकि यह संभव ही नहीं है कि किसी एक फिल्म और उसके परफॉर्मेंस को दोहराया जा सके. यहां तक कि मूल एक्टर्स को ही रीमेक में लिया जाए बावजूद पहले जैसी चीज दूसरी में हो ही यह शर्तिया नहीं कहा जा सकता. यह सच है कि तमिल में आई फिल्म के मुकाबले विक्रम वेधा के हिंदी वर्जन में ऐसी कोई चीज नहीं दिखी कि बॉलीवुड रीमेक को मास्टरपीस मान लिया जाए. रितिक रोशन तो उस किरदार के आसपास भी नहीं हैं जिसे विजय सेतुपति ने निभाया था. फिल्म का मूल तमिल वर्जन देख चुके लोग इस बात से भलीभांति वाकिफ हैं. सैफ भी खुद के ही राउडी किरदारों को दोहराते दिख रहे हैं.
लाल सिंह चड्ढा का सपोर्ट करने की वजह से रितिक रोशन सोशल मीडिया धडों के निशाने पर हैं. विक्रम वेधा के हिंदी वर्जन के लिए भी ट्रोल्स का समूह वही ट्रैप बुन रहा है जैसा उसने फ़ॉरेस्ट गंप के लिए किया था. ऐसे ट्रैप में होता यह है कि 'हेट कैम्पेन' की आलोचनात्मक स्वीकार्यता बढ़ जाती है. ट्रोल्स के अलावा भी लोग कैम्पेन के सपोर्ट में आते हैं. दूसरा- इस तरह की डिबेट जितनी मजबूत होती है लोग मूल फ़िल्में देखने लगते हैं. रिपोर्ट्स भी हैं कि लाल सिंह चड्ढा की रिलीज होते होते ओटीटी पर फ़ॉरेस्ट गंप देखने वालों की संख्या बढ़ गई थी. स्वाभाविक है कि एक बार मूल फिल्म देख चुके लोग भला रीमेक देखने के लिए पैसे और समय की बर्बादी करने सिनेमाघर क्यों ही जाएंगे? वह भी उस स्थिति में जब लोगों पर महंगाई का असर है ही. बॉलीवुड को अपनी रणनीतियों पर फिर से विचार करना चाहिए.
विक्रम वेधा भी फारेस्ट गंप जैसी परिस्थितियों का सामना करने जा रही है. रीमेक का भविष्य बहुत उज्जवल नहीं है.
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