ऑस्कर के लिए भारत सीरियस नहीं, फिर तय हुआ!
भारत की तरफ से ऑस्कर की आधिकारिक एंट्री चुन ली गई है. फिल्म का नाम है विलेज रॉकस्टार्स, लेकिन इस फिल्म के ऑस्कर जीतने की उम्मीदों को हमारा देश ही तोड़ रहा है.
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हिंदुस्तान की किस फिल्म को ऑस्कर में एंट्री मिली है ये पता है आपको? पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में सालान बनाने वाला देश भारत हर साल ऑस्कर के लिए तरस जाता है, लेकिन इस साल भारत की तरफ से एक दमदार फिल्म को ऑस्कर में एंट्री दी गई है.
फिल्म का नाम है Village rockstars. इस फिल्म को बनाया है रीमा दास ने. भारत ने अभी तक करीब 50 फिल्में ऑस्कर में भेजी हैं जिनमें से 3 ही आज तक नॉमिनेट हुई हैं और अवॉर्ड एक को भी नहीं मिला. पहले तो मैं ये स्पष्ट कर दूं कि फिल्म को ऑस्कर में भेजने का मतलब ये नहीं कि ऑस्कर में फिल्म नॉमिनेट भी हो जाएगी. एक जूरी इसे देखेगी और ये तय करेगी कि ये फिल्म ऑस्कर नॉमिनेशन के लायक भी है या नहीं. अभी तक सिर्फ मदर इंडिया, सलाम बॉम्बे और लगान को ही नॉमिनेशन का गौरव हासिल हुआ है.
ऑस्कर लायक क्या है फिल्म Village rockstars में?
इस सवाल का जवाब बहुत आसान है. फिल्म में असम की कहानी है. जी हां, नॉर्थ ईस्ट वाला असम. असम की बाढ़, वहां के बच्चों को न मिलने वाले अवसर, वहां जी जिंदगी, ये सब मिलाकर बनाया गया है विलेज रॉकस्टार्स को. ये फिल्म है ये 10 साल की आसामी लड़की धुनू कि जिसका सपना है कि वो असली गिटार बजाए और अपना खुद का बैंड बनाए. ये फिल्म पिछले साल टोरांटो फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित की गई थी. ये कमरूपी (आसामी) भाषा में बनाई गई है.
विलेज रॉकस्टार्स का कोई भी एक्टर ट्रेनिंग लिया हुआ नहीं है
क्या खास है विलेज रॉकस्टार्स में?
अगर आप विलेज रॉकस्टार्स के बारे में पहली बार सुन रहे हैं तो मैं आपको बता दूं कि इस फिल्म ने इस साल की बेस्ट फीचर फिल्म का नैशनल अवॉर्ड जीता है और दुनिया भर के अलग-अलग फिल्म फेस्टिवल में कई अवॉर्ड जीतकर आई है.
विलेज रॉकस्टार्स में वो कहानी बताई गई है जिसे शायद किसी और फिल्म में नहीं दिखाया गया. जब फिल्म मैरी कॉम आई थी तब उसमें नॉर्थ ईस्ट के लोगों की कुछ चुनौतियां दिखाई गई थीं, लेकिन असली कहानी विलेज रॉकस्टार में दिखाई गई है.
क्यों ये फिल्म बाकी फिल्मों की तुलना में अलग है?
1. रीमा दास की ये फिल्म अलग में वन वुमन आर्मी के काम को दिखाती है. रिमा दास फिल्म की डायरेक्टर हैं, स्क्रीनराइटर हैं, प्रोड्यूसर हैं, एडिटर हैं और साथ ही साथ प्रोडक्शन डिजाइनर और सिनेमैटोग्राफर भी हैं.
2. इस फिल्म की स्क्रिप्ट पूरी करने में रीमा को साढ़े तीन साल लगे हैं. इसके बाद सिर्फ 130 दिनों में ही इस फिल्म को बना लिया गया. सबसे अलग बात ये है कि इस फिल्म में हैंडहेल्ड कैमरा (हाथ से पकड़ा जाने वाला कैमरा) इस्तेमाल किया गया है और जो भी लोग इस फिल्म में एक्टिंग कर रहे हैं उनमें से कोई भी एक्टर नहीं है. ये लोग असम के कालरदिया गांव से हैं.
रीमा दास के फेसबुक पोस्ट से ली गई फोटो, ये विलेज रॉकस्टार्स को फिलमाते वक्त ली गई थी
3. फिल्म भारतीय गावों के कुछ पहलुओं को दिखाती है जिसमें ये बताया गया है कि कैसे अगर लड़की जवान होने लगे तो उसे घर बैठा दिया जाता है. फिल्म में धुनू की मां कैसे अपनी बेटी को अलग रखती है, ये सब फिल्म की कहानी है.
4. असम की भनीता पहली चाइल्ड एक्टर हैं जिन्हें असम से इतना सम्मान मिला है. भनीता खुद रीमा दास की कजन हैं.
5. इस फिल्म में जो लोकेशन दिखाई गई हैं, या जिस तरह से एक्टर आम जिंदगी जीते हुए पर्दे पर दिखते हैं उसके कारण ही ये फिल्म इस ऊंचाई पर पहुंच पाई. किसी लो बजट फिल्म के लिए पद्मावत जैसी करोड़ों के बजट वाली फिल्म को हराना आसान नहीं था.
क्यों ऑस्कर की रेस में पिछड़ सकती है ये फिल्म...
रीमा दास की फिल्म वैसे तो बेहतरीन फिल्म है और आर्ट का एक अनोखा नमूना है, लेकिन असल में इस फिल्म की कास्ट और डायरेक्टर के पास वो जरूरी फंड नहीं हैं जो होने चाहिए. ये हाल पिछले साल की न्यूटन की तरह ही है. ऑस्कर में नॉमिनेशन के लिए भी टीम को दो महीने लगभग लॉस एंजिलिस में रहना पड़ सकता है.
आलम ये है कि इस फिल्म को ऑस्कर की दौड़ में बने रहने के लिए भी पैसे चाहिए और इसके लिए चंदा इकट्ठा करना पड़ रहा है.
Thanks Renuka for your love and support ???? Considering all options right now. Many people have voluntarily expressed a desire to contribute towards #VillageRockstars Oscar journey, so crowdfunding is definitely on my mind.
— rima das (@rimadasFilm) September 23, 2018
रीमा दास की ट्वीट बताती है कि वाकई ऐसी फिल्मों को लेकर बॉलीवुड में बहुत नाइंसाफी होती है. इस फिल्म के लिए सरकार अगर 2 करोड़ रुपए भी नहीं दे सकती है तो आखिर ऑस्कर की उम्मीद ही क्यों करते हैं हम? दरअसल, ऑस्कर सिलेक्शन कमेटी के मेंबर एसवी राजेंद्रसिंह बाबू ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में बताया कि भारतीय फिल्मों को सिर्फ प्रमोशन के लिए ही करीब दो करोड़ रुपए लग जाते हैं और इतने पैसे विलेज रॉकस्टार्स के लिए देना अभी मुमकिन नहीं है.
Govt can Use Taxpayers money to promote India's image as a supporter of High Quality art. That's what all Civilised Governments Do! #VillageRockstars is an Independent film. Its not a mainstream run-of-the-mill film. Govts responsibility is to support fine art of any Discipline. https://t.co/tCExcao6GA
— Adil hussain (@_AdilHussain) September 23, 2018
लोग इस बात के लिए ऑस्कर वाली फिल्म को कोस रहे हैं कि इस फिल्म को एक अमेरिकी अवॉर्ड दिलाने के लिए आखिर भारतीय टैक्स देने वालों का पैसा क्यों खर्च किया जाए, लेकिन क्या वाकई देश को इतनी मूर्तियों की जरूरत है जितनी लगाई जाती हैं, क्या वाकई स्टेशन और शहरों के नाम बदलने की जरूरत है जो किया जाता है? हर फिल्म का अपना अलग दायरा है और अगर ऑस्कर की बात करें तो हर साल सोशल मीडिया पर ऑस्कर के बाद इस बारे में बहस छिड़ जाती है कि आखिर भारत को ऑस्कर क्यों नहीं मिलता. फिल्मी जगत के इस बड़े अवॉर्ड को लेने के लिए हमारे यहां पैसों की कमी है. ये बात सही है कि फिल्मी सितारे भी इसके लिए कुछ डोनेशन दे सकते हैं, आखिर ये फिल्म भारत के लिए भी आएगी, लेकिन अगर कोई सामने नहीं आता तो क्या हमारी फिल्म ऐसे ही पीछे रह जाएगी? एक फिल्म के रिलीज होने को रोकने के लिए करोड़ों की पब्लिक पॉपर्टी नाश कर दी गई, लोगों की भावनाएं आहत हुईं, लेकिन अब शायद किसी की भावना आहत नहीं हो रही है कि इतनी मेहनत व्यर्थ जाएगी.
जिस महिला ने सारी मुश्किलों का सामना कर बहुत कम बजट की एक ऐसी फिल्म तैयार की जिसे ऑस्कर में दिखाया जा सके उस महिला और उस फिल्म के लिए अगर भारत जैसे विशाल देश के पास भी पैसे नहीं हैं तो ये शर्म की बात है.
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