क्रिमिनल जस्टिस: अधूरे सच को जानने के लिए पूरी कहानी का इंतजार भारी तो है!
तय हो चला है कि, व्यूअर्स क्रिमिनल जस्टिस के 'अधूरे सच' को जाने बिना नहीं रहेगा. मन मारकर भी नौ एपिसोड की इस श्रृंखला को पूरा देखेगा. हां, निरंतरता होती तो बात ही कुछ और होती. थ्रिल ख़त्म होने के पहले बार बार टूटता नहीं और सीरीज बिंज वॉच भी खूब होती.
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बतौर वेब सीरीज क्रिमिनल जस्टिस के हिट होने का सच था इसका कंटेंट जो एंगेज कर रहा था व्यूअर्स को. और एक बार एंगेज हुए तो जब तब स्लो पड़ती कहानी भी उन्हें डिस-एंगेज नहीं कर पाई, अगले एपिसोड की आकंठ उत्सुकता में वे स्लो मोमेंट्स भी सुखकर लगे. अभी तक तीन एपिसोड आए हैं. स्पष्ट हो चला है कि कहानी क्रिमिनल जस्टिस के पहले लीगल ड्रामा की ही रेप्लिकेट हो रही है इस फ़र्क़ के साथ कि सस्पेक्ट और विक्टिम दोनों ही जुवेनाइल है. आदित्य शर्मा की जिंदगी के द्वंद्व को, उसकी जेल की जर्नी को विक्रम मैसी ने खूब जिया था और इस अधूरे सच में अब तक नवोदित आदित्य गुप्ता बेहतर तरीके से सस्पेक्ट मुकुल आहूजा की यात्रा चल रहे हैं. विक्रम ने जब सीजन वन की थी, एक्टिंग का अच्छा ख़ासा अनुभव था उनके पास जबकि कोलकाता के आदित्य एक्टिंग के अनुभव के मामले में भी किशोर ही हैं. एकाध थिएटर वर्क भर ही किया है उसने. फिर भी उसके हाव भाव बता रहे हैं बंदे में बहुत दम है.
वेब सीरीज क्रिमिनल जस्टिस ऐसी है कि जब एक बार आप उसे देखेंगे, तो फिर पूरा देखकर ही उठेंगे
एक तो क्रिमिनल जस्टिस में सीजन वाला कोई कनेक्शन नहीं है, पहला लीगल ड्रामा बताया गया था, दूसरा डिस्क्राइब हुआ 'behind the closed doors' से और वर्तमान में क्रिमिनल जस्टिस को 'अधूरा सच' बताया गया है. चूंकि मेकर ने उसी लेवल तक व्यूअर्स की उत्सुकता जगा दी है, उन्हें सीरियल नुमा स्टाइल में इन्तजार करना भारी पड़ रहा है. फॅमिली ड्रामा या किसी कॉमेडी को तो ब्रेक ले लेकर देखा जा सकता है, लीगल ड्रामा के लिए 'तारीख पे तारीख' मिलना अखर रहा है.
क्रिमिनल जस्टिस की अलग अलग कहानियों में दो कॉमन किरदार हैं वकील माधव मिश्रा और माधव मिश्रा की पत्नी रत्ना एक्टर भी कॉमन हैं पंकज त्रिपाठी और खुशबू अत्रे. दोनों का टाइप भी वही हैं फिर भी व्यूअर्स के मन से उतरे नहीं है वजह हैं कमाल की पंच टाइमिंग. और सिर्फ पंच की बात हो तो उन पर उनकी ऑन-स्क्रीन बीवी खुशबू अत्रे भारी पड़ती हैं.
वैसे लॉजिक भी है अलग अलग मामलों में वकील वही हों तो उनका टाइप भी वही होगा ना.और उनकी बीवी भी वैसी ही रहेगी, आखिर भाभीजी घर में ही तो है. होपलेस से मामले की मज़बूरी और कुछ आरोपी की आर्थिक मजबूरी ने होपलेस टुटपुंजिये किस्म के वकील को डिफेंस का वकील बना दिया और जब मौक़ा मिला तो मिश्राजी ने अच्छा भुनाया और क्रिमिनल लॉयर के रूप में स्थापित भी हो गए.
सो अब मिश्रा जी और मिश्राइन जी फिक्स्ड किरदार हैं जिनका साबका पड़ना है नए मामले के नए किरदारों से और नयापन नया ही दिखे तो नए कलाकारों का होना ही बनता था. कास्टिंग परफेक्ट हुई हैं, स्वस्तिका मुखर्जी की यूएसपी ही हैं चिंतित और हैरान परेशान महिला दिखना सो सस्पेक्ट की मां के लिए उनका चयन उत्तम है. प्रॉसिक्यूशन की वकील के रोल में श्वेता बासु प्रसाद की चॉइस भी परफेक्ट रही है. अमूमन प्रॉसिक्यूशन टीम इतनी ग्लैमरस होती नहीं हैं लेकिन 'क्रिमिनल जस्टिस' ने इस परंपरा को तोड़ा है.
'अधूरे सच' में इस परंपरा को तोड़ा है श्वेता बासु प्रसाद ने और जितनी स्क्रीन उन्होंने अब तक शेयर की है, उम्मीद बंधती है कि वे निराश नहीं करेंगी. जुवेनाइल सस्पेक्ट के किरदार में आदित्य गुप्ता को पिक करने के लिए कास्टिंग टीम को विशेष क्रेडिट दिया जाना बनता है. लाइट मोमेंट्स के लिए माधव जी के जूनियर वकील के रूप में साले दीप का क्रिएशन अच्छा बन पड़ा हैं. दीप के लिए बॉस हमेशा 'मेहमान' है, बिहार की परंपरा जो है दामाद को मेहमान मानने की और मेहमान कहकर ही संबोधित करने की.
कोड ऑफ़ कंडक्ट कौन याद रखे और भगवान ना करें यदि जज ही दामाद निकल आये तो वह भरी अदालत में माननीय को भी ' योर ऑनर ' की जगह 'मेहमान जी' कहकर संबोधित कर दे. अब आते हैं लेखन पर और निर्देशन पर. अधूरे सच की पूरी कहानी लिखी है बिग बी की 'युद्ध' लिखने वाले बृजेश जय राजन ने. चूंकि कहानी शुरू ही हुई है, भूमिका भर सामने आई हैं, फिलहाल उनकी लेखनी पर कोई राय बनाना ठीक नहीं होगा.
इस समय कहें कि माधव मिश्रा को समुचित स्पेस नहीं दिया या कुछ और, ज़्यादती ही होगी. उम्मीद है वे क्रिमिनल जस्टिस के कथित तीसरे सीजन में वही करंट दौड़ा पाएंगे जिसके लिए पूर्ववर्ती दोनों ही लीगल ड्रामा सुपर हिट हुए थे. डायरेक्टर रोहन सिप्पी नामचीन हैं, लेखन की भी उन्हें गहरी समझ है क्योंकि स्वयं भी कुछेक बेहतरीन लिख चुके हैं. हाल ही आई वेब सीरीज़ 'मिथ्या' और 'अरण्यक' उन्होंने ही लिखी है.
निश्चित ही उनकी यही एडिशनल क्वालिटी उनके डायरेक्शन को निखारता है. क्रिमिनल जस्टिस का पहला सीजन तिग्मांशु धुलिया और विशाल फुरिया ने डायरेक्ट किया था, एक हाई बार सेट कर दिया था. दूसरा सीजन रोहन सिप्पी का था और उन्होंने कोई कमी नहीं रहने दी. अब तक तीनों एपिसोड देखने के बाद कह सकते हैं वे इस बार भी निराश नहीं करेंगे और दमदार तरीके से 'अधूरे सच' को रख पाएंगे.
सस्पेंस बना रहा है, मर्डरर का हिंट सा दिया तो है लेकिन व्यूअर्स के कन्फ्यूजन को भी बरकरार रखा है. तय हो चला है कि व्यूअर्स क्रिमिनल जस्टिस के 'अधूरे सच' को जाने बिना नहीं रहेगा और इसीलिए मन मारकर भी नौ एपिसोड की इस श्रृंखला को पूरा देखेगा ! हाँ, निरंतरता होती तो बात ही कुछ और होती ! थ्रिल ख़त्म होने के पहले बार बार टूटता नहीं. बिंज वॉच भी खूब होती.
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