दो हफ्ते में 154 करोड़ कमाने वाली दृश्यम 2 ने अपने पीछे कौन सी 4 बातें छोड़ी हैं, जानिए...
दृश्यम 2 ने दो हफ्ता पूरा होने से पहले ही 150 करोड़ का बेंचमार्क पार कर दिया. यह फिल्म देखकर समझा जा सकता है कि असल में हीरो का मतलब सिर्फ गठी देह, डोले शोले, हीरोइन के साथ नाच-गाना करना और 30 साल का नौजवान दिखना कोई अनिवार्य शर्त नहीं है. और भी चीजें दृश्यम 2 की कामयाबी के पीछे देखी जा सकती हैं.
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अभिषेक पाठक के निर्देशन में बनी अजय देवगन, अक्षय खन्ना और तबू स्टारर थ्रिलर ड्रामा दृश्यम 2 ने महज एक हफ्ते के अंदर कामयाबी की जो इबारत लिखी है उसकी रोशनी से समूचा बॉलीवुड चकाचौंध है. दृश्यम 2 ने सिर्फ दो हफ्ते के अंदर और वह भी सिर्फ मंगलवार तक 154.49 करोड़ रुपये कमा लिए. यह फिल्म आराम से 200 करोड़ कमाने जा रही है. यह तय है कि तीसरे वीकएंड में ही यह फिल्म 175 करोड़ या उससे ज्यादा के आंकड़े तक पहुंच जाएगी. इस साल द कश्मीर फाइल्स के बाद बॉलीवुड के खाते में यह दूसरी बड़ी कामयाबी है. कार्तिक आर्यन की भूल भुलैया 2 ने भी टिकट खिड़की पर 150 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर दर्शकों को हैरान कर दिया था.
आइए जानते हैं अभिषेक पाठक की फिल्म की कामयाबी ने अपने पीछे कौन सी चार बड़ी चीजें छोड़ी हैं.
1) ईमानदार कॉन्टेंट को कैम्पेन की जरूरत नहीं पड़ती
दृश्यम 2 की कामयाबी ने बॉलीवुड के लिए जो सबसे बड़ा सबक छोड़ा है वह यही कि कॉन्टेंट ईमानदार है तो कोई परेशानी की बात नहीं. दृश्यम 2 की कामयाबी से पहले बॉलीवुड की तमाम फलमें औंधें मुंह गिर रही थीं. बॉलीवुड की कुछ फिल्मों के खिलाफ तगड़ा निगेटिव कैम्पेन भी चल रहा था और तमाम फ़िल्में खराब कॉन्टेंट की वजह से ही फ्लॉप साबित हुईं. लेकिन जिन फिल्मों का कॉन्टेंट खराब था उसकी नाकामी का ठीकरा भी बॉलीवुड के खिलाफ जारी निगेटिव कैम्पेन पर फोड़ा गया. खुद अजय देवगन की रनवे 34 और थैंकगॉड को खामियाजा भुगतना पड़ा.
कुल मिलाकर टिकट खिड़की पर बॉलीवुड फिल्मों को लेकर एक आम धारणा बना ली गई कि इंडस्ट्री का संभलना मुश्किल है. लेकिन पहले राजश्री फिल्म्स की ऊंचाई और बाद में दृश्यम 2 ने साफ़ कर दिया कि अगर कॉन्टेंट ईमानदार है तो उसे किसी कैम्पेन की जरूरत नहीं पड़ती. उसके खिलाफ कोई निगेटिव कैम्पेन भी काम नहीं करता है. दृश्यम 2 की रिलीज से पहले कुछ शरारती तत्वों ने बायकॉट बॉलीवुड की आंधी में दृश्यम 2 के बर्बाद होने का दावा किया था. दावे धरे रह गए.
दृश्यम 2
2) बॉलीवुड पश्चिम से प्रभावित होंगे, इसका मतलब भारत के दर्शकों का प्रभावित होना नहीं है
बॉलीवुड फिल्मों में बेतहाशा पश्चिमीकरण किया जा रहा है. सिर्फ पहनावे भर नहीं. बैकड्राप, लोकेशन, रिश्तों और पारिवारिक सामजिक मूल्य भी पश्चिम की तरह ही दिखाए जा रहे हैं. बॉलीवुड फिल्मों में पिता, बेटे को गर्लफ्रेंड बनाने और उसके साथ नाइटआउट करने के लिए पिछले तीन दशक से उत्साहित कर रहा है. भारत की सामाजिक सांस्कृतिक चीजें बॉलीवुड फिल्मों के दायरे से बाहर कर दी गईं या उन्हें फोकस ही नहीं किया गया. बॉलीवुड के खिलाफ दर्शकों की सबसे बड़ी आपत्ति थी. बॉलीवुड का अपना जो समाज है उनके लिए यह सामान्य बात हो सकती है. मसलन कई शादियां करना, तलाक देना, शराब और हिंसा को तार्किक बनाना आदि. लेकिन भारत का जो समाज है वह अब भी तमाम चीजों के लिए सांस्कृतिक रूप से तैयार नहीं है. उसे लेकर सहज भी नहीं है. अब ऊंचाई और दृश्यम 2 को देखिए.
दोनों फिल्मों में पश्चिम का वही असर है जो सार्वभौमिक है और उसे स्वीकार किया जा सकता है. लेकिन भारतीय मूल्यों को जबरदस्त तरजीह दी गई है. लोकेशन बैकड्राप हर जगह वो दिखता है. दर्शकों ने दृश्यम 2 में दिखाई गई चीजों को अपने आसपास पाया और उससे प्रभावित हुए. साफ़ हो गया कि बॉलीवुड का अनुभव या उसके किसी स्टार फिल्ममेकर का अनुभव आम भारतीय अनुभव नहीं हो सकता. बॉलीवुड को भारतीय समाज को समझने की कोशिश करनी चाहिए.
3) फिल्म मेकिंग आइडियाज और थॉट्स का बंच है, कोई अलग-अलग इकाई नहीं
फिल्म मेकिंग यह नहीं कि कोई अच्छी कहानी दिखा दी. या फिल्म में संवाद, उसके कुछ सीक्वेंस, कुछ एक्टर्स की परफॉर्मेंस बेहतरीन है. रन में विजय राज के हिस्से के सभी सीक्वेंस जबरदस्त बने, लेकिन तमाम जरूरी चीजों का एक बंच नहीं बन पाया और फिल्म सुपरफ्लॉप रही थी. दृश्यम 2 एक बढ़िया केस स्टडी है कि अच्छी फिल्म के लिए एक बढ़िया कहानी और एक दो एक्टर्स के दमदार परफॉमेंस भर के जरूरत नहीं पड़ती. अच्छी फिल्म के लिए हर चीज बेहतर और संतुलित होनी चाहिए.
कहानी बेहतर हो, पटकथा, संवाद, लोकेशन, सम्पादन, निर्देशन आदि भी बेहतर हो. सिर्फ एक दो एक्टर्स की दमदार परफॉमेंस ही नहीं बल्कि सभी कलाकारों का बेस्ट निकलकर आना चाहिए. जब सभी चीजें संतुलित आती हैं तो एक बेहतर फिल्म बनती है और वह अपने दर्शक तक पहुंच ही जाती है.
4) हीरो का मतलब 20 साल की हीरोइन के साथ पेड़ के नीचे डांस करना भर नहीं है
बॉलीवुड में हीरो का मतलब गठी हुए देह, डोले शोले और और परदे पर 30 साल का नौजवान दिखना भर है. 20-25 साल की हीरोइन के साथ पेड़ के नीचे मोहब्बत करना है. शर्त की बटन खोलकर छाती दिखाना है. बॉलीवुड के तमाम बूढ़े अभिनेता यही करते नजर आते हैं अपनी फिल्मों में. लेकिन दृश्यम 2 ने साबित किया कि बिना यह किए भी अजय देवगन या कोई हीरो दिख सकता है. हीरो या हीरोइन का मुख्य काम मनोरंजन करना होता है और दृश्यम 2 देखकर समझ में आता है कि दर्शकों को मनोरंजन देने के लिए गठी देह, डोले शोले, हीरोइन के साथ नाच गाना या फिर 30 साल का नौजवान दिखना कोई अनिवार्य शर्त नहीं है.
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