अमिताभ बच्चन की 'काला पत्थर' त्रासदी पर बनी हिंदी की सर्वश्रेष्ठ फिल्म
आज से चार दशक पहले रिलीज हुई काला पत्थर ने बॉक्स ऑफिस पर करीब 6 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस किया था. फिल्म हिट थी. अगर फिल्म कलेक्शन को 2020 के आधार पर देखें तो अनुमान है कि काला पत्थर का कलेक्शन करीब 135 करोड़ के आसपास होता.
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करीब चार दशक बाद अमिताभ बच्चन ने अपनी एक पुरानी फिल्म का जिक्र कर उसे चर्चाओं में ला दिया. दरअसल, अमिताभ ने एक सोशल पोस्ट में कुछ तस्वीरें साझा करते हुए बताया कि उनकी फिल्म काला पत्थर को रिलीज हुए 42 साल हो गए हैं. काला पत्थर की कहानी कोयले की खदान में हुए हादसे को दिखाती और उसके बाद के रेस्क्यू ऑपरेशन को दिखाती है. उन्होंने यह भी बताया कि फिल्मों में आने से पहले उन्होंने कोलकाता की कंपनी के लिए आसनसोल और धनबाद स्थित कोयले की खदान के लिए काम किया. यह उनकी पहली नौकरी थी. काला पत्थर अमिताभ के करियर की एक बेमिसाल फिल्म है. हालांकि यह भी जंजीर और दीवार की ही कड़ी में दिखती है मगर इस पर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं हुई.
काला पत्थर 24 अगस्त 1979 को आई थी. इसका निर्माण-निर्देशन यश चोपड़ा ने किया था. फिल्म की पटकथा सलीम-जावेद की थी. काला पत्थर, जंजीर और दीवार के साथ त्रयी बनाती है. इसी त्रयी ने अमिताभ को हिंदी सिनेमा में पहले एंग्री यंग मैन और बाद में महानायक का दर्जा दिला दिया. ऐसे फ़िल्मी फ़िल्मी नायक जो जहानभर की कसमसाहटों के समंदर को अपने अंदर समेटे हुए था. और जब उसके अंदर के समंदर का ज्वार बाहर निकला तो सिनेमाई पर्दे पर लाखों नौजवानों की आवाज बन गई. इतना जादू कि युवाओं की पीढी अमिताभ को पागलों की तरह प्यार करने लगी और कभी भी अमिताभ के लिए सिनेमाघर तक आने वाली दर्शकों की भीड़ का सिलसिला नहीं टूटा. तीनों फिल्मों की सशक्त पटकथा सलीम जावेद की जोड़ी ने लिखी थी. ये वो फ़िल्में हैं जिन्होंने बॉलीवुड की नेहरूवादी रोमांटिक धारा को ही उलट पलट दिया. और हिंदी सिनेमा के नायक का चेहरा बदल गया.
जंजीर के अलावा दीवार और काला पत्थर मल्टी स्टारर फ़िल्में थीं. दीवार में अमिताभ के साथ शशि कपूर सपोर्टिंग हीरो के किरदार में थे. जबकि काला पत्थर में भी सितारों की फ़ौज थी. इसमें अमिताभ के साथ शशि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा की तिकड़ी थी. तीनों फिल्मों को देखें तो अमिताभ का किरदार एक ही पिच पर नजर आता है. जायज गुस्से से भरा हुआ नौजवान, जद्दोजहज से जूझता एक किरदार. ऐसा किरदार जो बाहरी दुनिया से जितना लड़ता है करीब-करीब वैसा ही संघर्ष उसके अंदर भी निर्बाध चल रहा है. इसके बोझ में वो भावनाओं तक का खुलकर इजहार नहीं कर पाता. सदियों से जागा हुआ लगता है. एक अजीब सन्नाटा ओढ़े अमिताभ के तीनों किरदारों के भाव में मुस्कराहट अस्थायी है.
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कुछ लोग कहते हैं कि अमिताभ बच्चन ने अपनी तमाम फिल्मों में अल पचीनो की नक़ल की. अमिताभ ने नक़ल की या अल पचीनो से प्रेरित रहे यह दावा तो लेखक नहीं कर सकता. क्योंकि किरदार स्टोरी और स्क्रिप्ट लिखने वाला तय करता है और उसे दिशा, निर्देशक देता है. अल पचीनो यानी गॉड फादर जैसी वर्ल्ड क्लासिक में माइकल कार्लियानी का किरदार निभाने वाले दिग्गज अभिनेता. वैसे अल पचीनो की गॉडफादर 2 से पहले जंजीर आ चुकी थी. लेकिन जिन्होंने भी गॉडफादर और अमिताभ की त्रयी फ़िल्में देखी होंगी उन्हें अमिताभ में कहीं ना कहीं उसका असर जरूर दिखा होगा. अल पचीनो पर्दे पर बैड मैन की भूमिका निभाकर मशहूर हुए. आंखों से बतियाने का अंदाज, चेहरे पर चुप्पी, मगर चुप्पी में भी कुछ बोलते नजर आने वाले, मुस्कराहट से कोसों दूर चेहरा- अमिताभ के जिन किरदारों में दिखा है वह अल पचीनो के करीब या यूं कहें उनसे एक हद तक प्रेरित लगता है. वैसे अल पचीनों ने अमिताभ के सुपरस्टार बनने और जंजीर-दीवार-काला पत्थर की त्रयी से काफी पहले साल 1971 में द पैनिक इन नीडल पार्क में ड्रग एडिक्ट की दमदार भूमिका से दुनियाभर के सिनेप्रेमियों को हिलाकर रख दिया था. गुंजाइश है कि दुनियाभर के अभिनेता उनसे प्रभावित हुए हों. क्योंकि ऐसा होता है.
सच्ची घटना से प्रेरित थी काला पत्थर
खैर दोनों अभिनेताओं की तुलना दूसरी चीज है. जहां तक काला पत्थर की बात है, इसे अमिताभ की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में ही रखा जाएगा. भले ही ही इसने जंजीर और दीवार के मुकाबले बड़े पैमाने पर व्यावसायिक सफलता अर्जित नहीं की और समीक्षकों को उतना प्रभावित नहीं किया हो. मगर फिल्म देखते हुए ये साफ पता चलता है कि काला पत्थर में सितारों की भरमार के बावजूद अभिनय के दम पर अमिताभ सारा लाइम लाइट लूट ले गए थे. जबकि उनके साथ शशि कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा, राखी, नूतन, परवीन बॉबी, प्रेम चोपड़ा, प्रेम नाथ और परीक्षित साहनी जैसे दिग्गज कलाकार थे. शशि और शत्रुघ्न के किरदारों में तो खूब शेड्स भी थे. संभवत: काला पत्थर औद्योगिक त्रासदी पर बनी बॉलीवुड की पहली फिल्म है. इसकी कहानी धनबाद के नजदीक कोयले की खदान की दुर्घटना से प्रेरित थी जिसमें टनल में पानी भर जाने की वजह से बड़े पैमाने पर मजदूरों की मौत हो गई थी.
काला पत्थर में अमिताभ बच्चन. फोटो साभार.
काला पत्थर में वो गिल्ट जो अमिताभ का पीछा करता है
दरअसल, काला पत्थर में अमिताभ का किरदार मर्चेंट नेवी अफसर का है. उनका पारिवारिक बैकग्राउंड बहादुर फौजियों का रहा है. समुद्री हादसा होता है. जहाज डूबने का खतरा है. साथियों के बहुत दबाव डालने की वजह से अमिताभ जहाज छोड़कर निकल जाते हैं, हालांकि वो ऐसा करना नहीं चाहते थे. जहाज डूबता नहीं है. घटना को लेकर सोसायटी में उनकी बहुत फजीहत होती है. उन्हें भगोड़ा और डरपोक करार दिया जाता है. अपमान होता है. घर में पिता से भी बुरी तरह फटकार मिलती है. हालात ऐसे बनते हैं कि अमिताभ चाहकर भी अपनी स्थिति जाहिर नहीं कर पाते. एक गिल्ट लेकर सबकुछ छोड़छाड़ कोयले की खदान में गुमनाम मजदूर के रूप में काम करते हैं. कुछ बोलते नहीं हैं. चुपचाप रहते हैं और पुरानी दुनिया से उनका संपर्क नहीं है. गिल्ट अमिताभ का पीछा करता रहता है. अमिताभ डरपोक नहीं थे. कारोबारी मुनाफे के लिए खदान में खतरनाक तरीके से कोयला निकाला जाता है. सेठ किसी की नहीं सुनता और मजदूर मजबूरी में मौत के मुंह में जाकर काम करते हैं.
थ्रिल और ड्रामा के लिहाज से त्रासदी पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म है काला पत्थर
जिस बात की आशंका थी एक दिन वही होता है. टनल में हादसा हो जाता है और पानी भरने लगता है. कई मजदूर उसमें फंसे हैं. अमिताभ को गिल्ट से पीछा छुड़ाने का मौका मिलता है और और अपने गिल्ट पर बिना सफाई दिए जान की बाजी लगाकर मजदूरों को बचाने की कोशिशें करते हैं. इस काम में दूसरे किरदार भी मदद करते हैं. कई मजदूरों की जान बच जाती है लेकिन तमाम टनल के अंदर ही डूबकर बुरी मौत का शिकार बनते हैं. अमिताभ खुद पर और परिवार पर लगे अपमानजनक धब्बे को मिटाने में कामयाब होते हैं. फिल्म में जबरदस्त ड्रामा और थ्रिल है. खासकर दूसरे हाफ में आखिर तक. बॉलीवुड में अब तक त्रासदियों पर जितनी भी फ़िल्में बनी हैं, कुछ हद तक द बर्निंग ट्रेन को छोड़ दिया जाए तो उन सब में काला पत्थर जैसा थ्रिल कहीं नजर नहीं आता. टनल के अंदर के कई रेस्क्यू सीन तो भावुक कर देने वाले हैं. उस जमाने में तकनीकी रूप से इतने संसाधन नहीं थे बावजूद कई दृश्य और रेस्क्यू के तरीके नकली नहीं लगते. एक रास्ता है जिंदगी, जगया जगया, मेरी दूरों से आई बरात, बाहों में तेरी जैसे सदाबहार गाने भी काला पत्थर के ही हैं.
आज की तारीख में रिलीज होती तो कितना कमाई करती काला पत्थर
अनुमान है कि आज से चार दशक पहले रिलीज हुई काला पत्थर ने बॉक्स ऑफिस पर करीब 6 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस किया था. फिल्म हिट थी. अगर फिल्म कलेक्शन को 2020 के आधार पर देखें तो अनुमान है कि काला पत्थर का कलेक्शन करीब 135 करोड़ के आसपास होता. हालांकि काला पत्थर से छह साल पहले आई जंजीर का कलेक्शन बहुत ज्यादा था. जंजीर ने उस जमाने में करीब 17 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस किया था जो आज की तारीख में 500 करोड़ से ज्यादा के आसपास ठहरता है.
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