किस दबाव में फिल्मफेयर ने 'द कश्मीर फाइल्स' का बायकॉट किया? हिजाब में छिपे बॉलीवुड को यहां देखिए
हाल ही में फिल्म फेयर पुरस्कार बांटे गए. प्रोग्राम में बॉलीवुड के तमाम सितारों को बुलाया गया था. मगर इसमें द कश्मीर फाइल्स की स्टारकास्ट से परहेज किया गया. जबकि कश्मीर फाइल्स इस साल हिंदी की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म है. क्या फिल्म फेयर ने ऐसा किसी 'गैंग' के दबाव में किया?
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द कश्मीर फाइल्स में ऐसी एक भी चीज नहीं दिखाई गई जो हकीकत में ना हुई हो. एक भी चीज. ये बात दूसरी है कि उसे दिखाने के तरीके पर सवाल किया जा सकता है. बॉलीवुड क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर पिछले 75 साल से तमाम ऐसी चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रचारित करता रहा जिनका हकीकत से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं था. रिलीज के वक्त 'द कश्मीर फाइल्स' को स्क्रीन तक नहीं मिले थे. कोविड से जूझ रहे सिनेमाघरों में जब यह फिल्म रिलीज हुई- दर्शकों का तांता लग गया. फिल्म इंटरनेट पर भी लीक हुई थी. बावजूद इसका कलेक्शन आसमान की तरफ भागते नजर आया था. हर दिन बीतने के साथ स्क्रीन्स और शोज की संख्या बढ़ती ही नजर आ रही थी. सिनेमाघर पब्लिक डिमांड पर इसे शोकेस कर रहे थे. लोगों ने सिनेमाघरों में भी देखी और मोबाइल पर भी. खूब देखी.
भारतीय सिनेमा के इतिहास में शायद 'जय संतोषी मां' के बाद यह पहली फिल्म है जिसने लागत के मुकाबले सर्वाधिक मुनाफा कमाने का ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे कई-कई साल तक तोड़ना, किसी भी दूसरी फिल्म के लिए असंभव होगा. फिल्म ने कुल 340 करोड़ से ज्यादा कमाए. एक ऐसी फिल्म जिसके जनांदोलन बनने के गवाह हम सब हैं. अब सवाल है कि क्या ऐसी फिल्म और उससे जुड़ी कास्ट और क्रिएटिव टीम को नजरअंदाज कर हिंदी सिनेमा पर केंद्रित किसी फिल्म पुरस्कार समारोह को पूर्ण माना जाएगा? सीधा जवाब है- नहीं. किसी भी भाषा, किसी भी उद्योग में. हिंदी फिल्मों से जुड़े समारोह में अगर द कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्म के रीप्रजेंटेटिव को ही ना बुलाया जाए तो इस स्थिति में यह किसी भी तरह की नौटंकी हो सकती है- मगर उसे फिल्म से जुड़ा समारोह कहने में दिक्कत है.
बॉलीवुड पर आरोप हवा हवाई नहीं हैं, बॉलीवुड सुधार भी नहीं है अभी
वह भी तब जब 'फिल्म फेयर' बॉलीवुड के दायरे से बाहर की 'स्वतंत्र' व्यवस्था होने का दावा करता है. बावजूद कि अनगिनत मौकों पर 'फिल्म फेयर' के पक्षपातपूर्ण रवैए और बॉलीवुड के कुछ सितारों और बैनर्स के दबाव में पुरस्कार देने के आरोप सामने आते रहते हैं. चूंकि द कश्मीर फाइल्स से जुड़े किसी भी शख्स को नहीं बुलाया गया, कंगना रनौत के न्यौते पर एक अलग ही रायता दिखा- तमाम चीजों के मद्देनजर बॉलीवुड पर लगने वाले आरोप सही नजर आते हैं. फिल्मफेयर सिर्फ इस बात से नहीं बच सकता कि फिल्म पुरस्कारों के जिस एडिशन को लेकर चर्चा हो रही है वह साल 2021 में आई फिल्मों के लिए है. चूंकि द कश्मीर फाइल्स साल 2022 में आई थी इसलिए फिल्म से जुड़े कास्ट और क्रू को ना बुलाने का मसला बेमतलब है. हालांकि इस तर्क में भी फिल्मफेयर दावे से नहीं कह सकता कि उसके सभी बॉलीवुडिया गेस्ट सिर्फ वही लोग थे, जिनकी फ़िल्में 2021 में आई थीं.
द कश्मीर फाइल्स में अनुपम खेर ने बेहतरीन भूमिका निभाई है.
अब सवाल है कि फिल्म फेयर ने ऐसा क्यों किया? सीधी सी बात है कि फिल्म फेयर ने ऐसा सिर्फ बॉलीवुड के दबाव में ही किया. तो क्या यह मान लिया जाए कि दबाव देने वाले लोग वही हैं जिन्हें द कश्मीर फाइल्स का कंटेट पसंद नहीं आया. उन्हें फिल्म अब भी चुभ रही है. वे बायकॉट की अपील से हताश भले हों, मगर अब भी फिल्मों के जरिए मनमानियां करने की योजना बना रहे हैं. बिल्कुल, फिल्म फेयर पर दबाव डालने वाले वही लोग हैं जिन्होंने द कश्मीर फाइल्स की कामयाबी को लेकर या तो विचार जाहिर नहीं किया या संकोच बरता. जैसे अक्षय कुमार ने अनुपम खेर की तारीफ़ तो की थी मगर सीधे फिल्म और दूसरे कास्ट की सराहना करने से खुद को बचा लिया. शायद कश्मीर फाइल्स के एक हफ्ते बाद उनकी 'बच्चन पांडे' नहीं आती तो वह इस फिल्म के लिए अपने दोस्त अनुपम खेर की भी तारीफ़ करने में संकोच बरतते.
कश्मीर फाइल्स पर चुप रहने वाले सितारों ने अबतक डिजास्टर बनी ना जाने कितनी फिल्मों को मास्टरपीस बताया
किसी भी खान सितारे ने द कश्मीर फाइल्स की माउंट एवरेस्ट जैसी सक्सेस पर ट्वीट नहीं किया. जिन्होंने किया उनकी आत्मा पर पड़ा बोझ उनके ट्वीट या बयान में दिख जाएगा. आमिर खान का बयान देख लीजिए. वादा करने के बावजूद क्या वे फिल्म देखने गए? तमाम अख्तर, कपूर और चोपड़ा पता नहीं किस झिझक में चुप रहे. मजेदार यह है कि द कश्मीर फाइल्स के बाद बॉलीवुड की दर्जनों फ़िल्में रिलीज हुईं. कई तो करोड़ों के भारी भरकम बजट में बनाई गई थीं. एक से बढ़कर एक बकवास फ़िल्में, जिन्हें दर्शकों ने खारिज कर दिया. इनमें कुछ फ़िल्में उन चेहरों की थीं जिन्हें बॉलीवुड का सर्वेसर्वा माना जाता है. बावजूद हर फिल्म को बॉलीवुड सितारों ने मास्टरपीस से कम नहीं माना. उन्हें देखने की अपील भी की. मास्टरपीस जो एक हफ्ते में 50 करोड़ भी कमाई नहीं कर पाई.
निश्चित ही बॉलीवुड का चेहरा घूंघट, हिजाब या किसी बुरके में छिपा है जिसे द कश्मीर फाइल्स ने बेनकाब कर दिया. अब तो कश्मीर फाइल्स के मेकर्स के तमाम आरोप सच लगने लगे हैं जिसमें उन्होंने बिना नाम लिए दावा किया था कि फिल्म रिलीज ना हो पाए इसके लिए बॉलीवुड के ताकतवर धडों ने गोलबंदी की थी. माना जा सकता है कि चाहे कंगना एपिसोड हो या फिर द कश्मीर फाइल्स से जुड़े लोगों को नजरअंदाज करना- बॉलीवुड की एक लॉबी के इशारे पर ऐसा हुआ है. और फिल्म फेयर बिल्कुल दूध का धुला नहीं है. कहा जाता है कि फिल्म फेयर हो या ऐसे दूसरे फ़िल्मी पुरस्कार- बॉलीवुड के ताकतवर स्टार और बैनर ही चीजों को तय करते हैं. यहां तक कि कुछ साल पहले तक राष्ट्रीय पुरस्कार भी यही लोग तय करते रहे हैं.
बॉलीवुड को लेकर शेखर गुप्ता का अनुभव भी जान लीजिए
बॉलीवुड की तमाम कूड़ा फिल्मों को भारतीय भाषा की श्रेष्ठ फिल्मों पर तरजीह देकर राष्ट्रीय पुरस्कार दिए गए. ऑस्कर में फ़िल्में भेजी गई. विजयदान देथा की महान कहानी पर बनी 'पहेली' में शाहरुख खान ने बकवास एक्टिंग की. फिल्म दर्शकों को प्रभावित भी नहीं कर पाई. बावजूद दर्जनों पुरस्कार (फिल्म फेयर भी)फिल्म को मिले. ऑस्कर में भी भेजा गया. ऑस्कर जैसी कौन सी बात थी पहेली में सिवाय इसके कि वह शाहरुख खान की फिल्म थी.
आमिर खान समेत तमाम दिग्गज फिल्म फेयर की पारदर्शिता पर सवाल उठा चुके हैं. 'दिल' को पुरस्कार नहीं दिए जाने से नाराज हो बैठे आमिर खान ने तो फिल्म फेयर का बायकॉट तक कर दिया. कुछ महीने पहले वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने द प्रिंट पर अपने साप्ताहिक कॉलम में बॉलीवुड से जुड़े पुराने अनुभव को साझा किया था. सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या पर केंद्रित विश्लेषण में उन्होंने बताया था कि बॉलीवुड वो जगह है जहां कुछ भी खरीदा जा सकता है या उसकी बाह मरोड़ी जा सकती है. लेख यहां पढ़ सकते हैं.
कहने की बात नहीं कि बॉलीवुड पर किन्हीं ख़ास लोगों का नियंत्रण है. हिजाब या बुरके में छिपे चेहरे को बहुत आसानी से द कश्मीर फाइल्स के आइने में देखा जा सकता है. हमेशा.
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