कार्तिक की शहजादा से पहले अल्लू अर्जुन की फिल्म का हिंदी वर्जन आना नुकसानदायक तो है, मगर...
कार्तिक आर्यन की शहजादा अल्लू अर्जुन की जिस फिल्म का रीमेक है- वह मूल फिल्म शहजादा की रिलीज से पहले आ रही है. मनोरंजन और कारोबार के लिहाज से इसमें फायदा है या नुकसान- आइए समझते हैं.
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पुष्पा: द राइज के बाद अल्लू अर्जुन देश के उन चुनिंदा अभिनेताओं में शामिल हो चुके हैं जिनकी देशव्यापी पहचान अब बहुत बड़ी है. दुर्भाग्य से बॉलीवुड में उनके कद का कोई अभिनेता नजर नहीं आता. और आज की तारीख में यह एक ऐसी बड़ी वजह बन सकती है कि अल्लू अर्जुन की फिल्म 'अला बैकुंठपुरमुलु' बॉलीवुड की 'शहजादा' को आने वाले दिनों में टिकट खिड़की पर नुकसान पहुंचा सकती है. असल में अल्लू अर्जुन की फिल्म को शहजादा की रिलीज से पहले 2 फरवरी को रिलीज किया जा रहा है. गोल्डमाइन के यूट्यूब प्लेटफॉर्म पर. चूंकि फिल्म यूट्यूब पर आएगी, हिंदी में है और फ्री ही है तो- उसे व्यापक रूप से देखा जा सकता है.
शहजादा के लिए यह बड़ी परेशानी का विषय है. ऐसा क्यों हुआ- यह समझ में नहीं आ रहा. क्योंकि जब भी किसी फिल्म का रीमेक बनाने के लिए समझौते होते हैं आमतौर पर ऐसे बिंदुओं का ख्याल रखा जाता है. क्योंकि इससे कारोबारी पक्ष प्रभावित होते हैं. बावजूद कि मूल फिल्म रिलीज हो रही है तो मान लेना चाहिए कि राइट खरीदते वक्त इसका ख्याल ना रखा गया हो. या फिर शहजादा के मेकर्स को यह लगा हो कि अल्लू ही तो हैं. भला यूट्यूब पर उनकी डब फिल्म कोई क्यों देखने आएगा? या फिर शहजादा के मेकर्स को इंटरनेट की ताकत का अंदाजा अभी भी नहीं लगा है. अल्लू अर्जुन को निश्चित ही देखा जाएगा. देश का मिजाज तो यही कह रहा है. कुल मिलाकर तमाम पहलुओं से यहां तक अल्लू अर्जुन की फिल्म शहजादा को नुकसान पहुंचाते तो दिख रही है.
कार्तिक आर्यन और अल्लू अर्जुन
मान ही लीजिए कि शाहरुख खान विश्व के सबसे बड़े एक्टर हैं और शहजादा उनसे डरकर पोस्टफोन कर दी गई
शहजादा पहले 10 फरवरी को रिलीज होनी थी. लेकिन अब चर्चा है शाहरुख खान कि पठान पहली फिल्म है- जिसने 300 करोड़ कमाए. करियर के बिल्कुल में आखिर में आई है. फिल्म जो मजहबी ध्रुवीकरण और संदिग्ध एडवांस बुकिंग, प्रमोशन और 'खरबूजा इफेक्ट' की (खरबूजा इफेक्ट को पठान और आइचौक के साथ सर्च कर समझ सकते हैं वह क्या है) वजह से आज की तारीख में शीर्ष पर है. कुछ पत्रकारों ने शाहरुख में जननायक की भूमिका भी देख ली. और खुद राजनीति में असफल रहने वाले सपा के सर्वेसर्वा अखिलेश यादव उनमें खुद में तो नहीं लेकिन शाहरुख में मोदी के कद का करिश्माई नेतृत्व भी देख रहे हैं. जैसे विपक्ष के लिए शाहरुख से बड़ा और उचित चेहरा कोई ना हो.
अखिलेश को बिना देर किए बड़ा दांव खेल ही देना चाहिए. बावजूद कि पठान पर बहस इंटरनेट दुनिया में बहुत गंभीर खेल नहीं था. वह बदल रही ग्लोबल पॉलिटिक्स में जो मापने का औजार था- वह शत प्रतिशत सफल रहा. उसके सैम्पल और नतीजे भारत की संप्रभुता के लिहाज से आने वाले दिनों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते नजर आएंगे. अखिलेश बेशक अभी पठान के जादू से बाहर नहीं निकल पाए हैं लेकिन बाकी लोगों को अब बहुत गंभीरता से लेने की बजाए आगे की चीजों पर ध्यान देना चाहिए. असल बात तो यह है कि शहजादा अब 17 फरवरी को आएगी और मान लीजिए कि ऐसा करने से शहजादा का कारोबार पर पठान के तूफ़ान से बच जाएगा. बॉलीवुड में साम्राज्य कायम रहेगा. कोई गैंग कह ले, मठ कह ले या जो भी उसे ठीक लगे कह सकता है. पठान की यूनिवर्स अलग है. ध्यान यह देना चाहिए कि अभी सिस्टम में कमियां कहां हैं और उसे कौन और कैसे- नियंत्रित करने में अभी भी सक्षम बना हुआ है?
फिलहाल तो टिकट खिड़की पर शहजादा कमजोर नहीं लग रही
खैर एक बात जरूर ध्यान दीजिए कि अल्लू की फिल्म का गोल्डमाइन ने हिंदी में टीवी और यूट्यूब के लिए डबिंग राइट खरीदा है. वह दक्षिण की फिल्मों का खरीदता रहा है. वह तमाम दक्षिण की फिल्मों को लेकर इसी तरह का बिजनेस कर रहा है. यानी साफ है कि शहजादा के मेकर्स को पता था कि अल्लू की मूल फिल्म भी हिंदी में दिखाई जाएगी. अब आते हैं शहजादा पर. हो सकता है कि मेकर्स का आत्मविश्वास रहा हो. और उन्होंने अल्लू अर्जुन के निर्माताओं से उसी आत्मविश्वास की वजह से हिंदी में रिलीज करने या ना करने पर बात ना किया हो. उन्हें लगा हो कि हम बेशक अल्लू की फिल्म बना रहे हैं, लेकिन दक्षिण भारतीय फिल्म को बॉलीवुड के अंदाज में बनाकर दिखाएंगे, जो कि हिंदी दर्शकों की देखने की आदतों में शुमार है. उन्हें यह भरोसा भी हो कि हम रीमेक में फेरबदल तो कर ही रहे हैं- जरूरत के मुताबिक़. और ऐसा हो रहा है. अक्षय कुमार की कटपुतली जैसी खराब रीमेक भी आ रही हैं तो दृश्यम 2 जैसी ब्लॉकबस्टर भी. अजय देवगन की दृश्यम 2 में मूल फिल्म से परे बहुत सारे फेरबदल शानदार हैं. अक्षय खन्ना के रूप में एक फ्रेश किरदार तो यूएसपी है ही. यानी दर्शकों के लिए देखानों की गुंजाइश हमेशा बनी है.
इसका सकारात्मक पहलू यह भी है कि शहजादा का ट्रेलर रिकॉर्डतोड़ देखा गया. पठान से कम समय में पठान के ग्रेलर से ज्यादा व्यूज आए. जबकि पठान के शोर में शहजादा की कहीं चर्चा तक नहीं थी. लोगों ने पसंद भी किया और इसने लोगों को 90s की याद दिला दी. फैमिली ड्रामा. बॉलीवुड के अंदाज में. बाद बाकी कार्तिक आर्यन को नई पीढ़ी ने शहजादा तो स्वीकार कर लिया है. बॉलीवुड में उनके सामने उनका कोई समकक्ष नहीं है. दूर दूर तक नहीं दिखता. शहजादा का ट्रेलर जिस तरह दिख रहा है और उसे दर्शकों ने जिस तरह बिना प्रयास और प्रमोशन के देखा है- टिकट खिड़की पर शहजादा का भविष्य फिलहाल तो खराब नहीं दिखता.
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