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Updated: 28 फरवरी, 2023 12:19 PM
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अक्षय कुमार (Akshay Kumar), इमरान हाशमी (Imran Hashmi) स्टारर 'सेल्फी' शुक्रवार को थिएटर्स में रिलीज हुई थी. फिल्म को लेकर हाइप तो नहीं था, लेकिन फिर भी फिल्म से एक सम्मानजनक ओपनिंग कलेक्शन की उम्मीद थी. अक्षय की हालिया सीरीज ऑफ़ फ्लॉप फिल्म्स की रामसेतु, रक्षाबंधन, सम्राट पृथ्वीराज और बच्चन पांडे का ओपनिंग डे कलेक्शन क्रमशः 15 करोड़ (कुल 72 करोड़), 8 करोड़ (कुल 44 करोड़), 11 करोड़ (कुल 68 करोड़) और 13 करोड़ (कुल 50 करोड़) रहा था. कहने का मतलब अक्षय की बुरी से बुरी फिल्मों का भी ओपनिंग डे कलेक्शन सम्मानजनक रहा करता था, मगर 'सेल्फी' इस ट्रेंड को बरकरार नहीं रख पाई और फिल्म के हाथ पहले दिन सिर्फ 2.55 करोड़ ही लगे.

यही केस स्टडी मकसद है हमारा, विषयवस्तु 'सेल्फी' तक ही सीमित रखते हुए. 2019 में आई थी एक मलयालम फिल्म ‘ड्राइविंग लाइसेंस’. दिलचस्प कहानी थी एक सुपरस्टार अभिनेता और खुद को उसका सबसे बड़ा फैन कहने वाले शख्स के बीच एक सेल्फी के लिए हुई तनातनी की. फिल्म की खूब तारीफ़ हुई थी और वह खूब कमाई भी कर गई थी. तो ऐसा क्या हुआ कि उसकी हिन्दी रीमेक व्यूअर्स को नहीं भा रही है?हालांकि अक्षय कुमार ने डैमेज कंट्रोल स्ट्रेटेजी के तहत माना कि वे दर्शकों की बदलती चाहतों के अनुरूप तारतम्य नहीं बैठा पाए. ऐसा पहले भी हुआ था जब उनकी फ़िल्में फ्लॉप हो रही थीं. तब भी उन्होंने ट्रैक बदला था. फिर वही मंजर है और उनकी हालिया 4 -5 फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर धराशायी हुई हैं. सो बदलाव जरूरी है जिसके लिए वे एक बार फिर दृढ़ संकल्प हैं स्वयं को ढालने के लिए, बदलने के लिए ताकि दर्शकों की आशाओं पर खरा उतर पाएं.

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खैर, इसके अलावा वे और क्या ही कह सकते थे? मेकर्स को कठघरे में खड़ा करते तो सवाल उनके फिल्म करने पर ज्यादा बनता क्योंकि करियर के इस मुकाम पर अच्छे और मौलिक कंटेंट से जुड़ना उनकी प्राथमिकता होनी चाहिए. विशुद्ध फ़िल्मी दृष्टिकोण से देखें तो 'सेल्फी' में अक्षय का रोल उनके स्टार पावर के अनुरूप है. वे अपनी शानदार कॉमिक टाइमिंग बरकरार रखते हैं, आखिर उनका जॉनर जो है एक्शन-कॉमेडी. उनके सामने डटे रहने की कोशिश तो इमरान हाशमी ने की है लेकिन तालमेल नहीं बिठा पाते. सो कोई कारण नहीं है कि अक्षय के फैंस निराश हों. चूंकि फिल्म फिर भी फ्लॉप हो रही है, जबकि फ्राइडे रिलीज़ सिर्फ 'सेल्फी' ही है, तो निष्कर्ष यही निकलता है कि या तो खिलाडी का स्टारडम बोरडम में बदल गया है या बदलना शुरू हो गया है.

पूरे वीकेंड यानी शुक्र-शनि-रवि का कलेक्शन रहा मात्र साढ़े दस करोड़. करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शन ने दांव इसलिए लगाया था कि मेकर्स टीम अच्छी थी, कास्ट भी उम्दा थी, फिर भी फिल्म डिजास्टर साबित हो रही है. निश्चित ही सॉलिड वजहें हैं जिनका संज्ञान लिया जाना बॉलीवुड के अस्तित्व के लिए है. इक्का दुक्का "पठान" आकर तो इंडस्ट्री एज़ ए व्होल को नहीं उबार सकता, पहली महत्वपूर्ण वजह है घर घर घर चुके इस ओटीटी युग में हूबहू या कमोबेश (more or less) रीमेक के सफल होने की संभावनाएं बहुत कम हो गई है, बशर्ते कोई स्पेक्टैक्युलर बात ना हों.

दर्शकों का एक बड़ा वर्ग ओरिजिनल विथ प्रिफर्ड ऑडियो/सबटाइटल देख चुका होता है. और यदि फिल्म अच्छी लगती है तो औरों के साथ भी शेयर कर ही लेता है. इसके अलावा जब रीमेक बनाने का रिस्क मेकर लेता भी है और यदि वह ओरिजिनल से इंस्पायर्ड आ चुकी अन्य फिल्मों का संज्ञान नहीं ले पाता, रिस्क फलीभूत नहीं होता. 'सेल्फी' फिल्म की मूल कहानी मलयालम फिल्म से तो है लेकिन दूसरी बॉलीवुड फिल्में 'एन एक्शन हीरो' और 'फैन' भी तो यही थीम क्वालीफाई करती प्रतीत होती हैं. बॉलीवुड के तमाम मेकर्स क्यों नहीं मानते कि मैजिक केवल एक बार क्रिएट किया जा सकता है.

अगर आप इसे फिर से बनाते हैं तो यह बस फीका पड़ जाता है और इसका अनुभव पहले जैसा नहीं रहता है. दूसरी वजह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. अपने चहेते फिल्मी सितारों के लिए पागलपन, भक्ति, दक्षिण भारत का शग़ल है. उसका शतांश भी हिन्दी पट्टी में नहीं दिखता. वहां के फैन्स के द्वारा अपने चहेते सितारे की फिल्म आने पर उसके कटआउट बनाना, उन मूर्ति सरीखे कटआउट को मालाएं पहनाना, दूध से नहलाना, ढोल ताशे बजाना आम है. लेकिन हिंदी पट्टी में ऐसा नहीं है.

यहीं कहानी मात खा जाती है, चूंकि हिंदी का आम दर्शक कनेक्ट नहीं कर पाता. और अंत में ऑन ए लाइटर नोट, "सेल्फी" का हश्र फिल्म के ही दो संवादों में बयां हो जाता है ,"...जिस पब्लिक ने आसमान पे चढ़ाया है वो ही पब्लिक उस सितारे को जमीन पर लेके आएगी...आपको आईडिया नहीं है कि एक सीधे साधे आदमी की सटकती है तो वो किस हद तक जा सकता है ..."

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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