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Updated: 30 अगस्त, 2016 06:59 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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सिद्धार्थ मल्होत्रा और कैटरीना कैफ की आने वाली फिल्म 'बार-बार देखो' को सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने A/U सर्टीफिकेट दिया है और कहा है कि फिल्म से वो सीन काट दिया जाए जिसमें ब्रा दिखाई गई है. वजह ये कि ब्रा भड़काऊ होती है! उसे देखकर लोग असहज हो जाते हैं. निहलानी जी भला ऐसे किसी भड़काऊ सीन को फिल्म में कैसे दिखा सकते हैं, सीन तो सीन उन्होंने तो फिल्म में सविता भाभी का जिक्र भी गवारा नहीं, तो उस सीन पर भी कैंची चलाने के लिए कहा गया है जिसमें सविता भाभी का जिक्र है.

भारतीय सिनेमा में संस्कारों के रक्षक पहलाज निहलानी की बात से ये तो मान लिया कि ब्रा भड़काऊ होती है, लेकिन एक बात जो दिमाग खराब कर रही है वो ये कि फिल्मों में अगर ब्रा भडकाऊ है, तो फिर बिकनी भड़काऊ क्यों नहीं ?

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सवाल वाजिब है, अगर ब्रा भडकाऊ है, तो फिर बिकनी भड़काऊ क्यों नहीं?

ब्रा पर ऑब्जेक्शन करने वाले निहलानी साहब को बिकनी क्यों संस्कारी नजर आती है ? उसपर भला कैंची क्यों नहीं चलती ? कई बॉलीवुड फिल्मों में हिरोइनों ने बिकनी सीन देकर 'हॉट' होने का तमगा हासिल किया है. लेकिन मजाल है सेंसर बोर्ड ने एक भी बिकनी पर कैंची चलाई हो. क्या बिकनी के पास सर्टिफिकेट है कि चूंकि वो बिकनी है इसलिए वो भड़काऊ नहीं हो सकती.

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 बिकनी सीन्स पर कैंची क्यों नहीं चलाता सेंसर बोर्ड ?

चलिए जाने दीजिए, हो सकता है कि फिल्म 'बार-बार देखो में ब्रा ज्यादा ही भड़काऊ तरीके से दिखाई गई होगी, इसीलिए उसे काटने को कहा गया होगा. लेकिन जरा इन तस्वीरों पर गौर करें और बताएं कि ये ब्रा ज्यादा भड़काऊ है या फिर साड़ियों के नीचे पहने गए ये ब्रा नुमा ब्लाउज. जिन्‍हें बिकनी ब्लाउज भी कहते हैं. क्या इसे सेंसर सिर्फ इसलिए नहीं किया गया क्योंकि इसके साथ संस्कारी साड़ी पहनी गई है ?

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फैशन ट्रेंड है बिकनी ब्लाउज

ये तो अच्छा हुआ कि जीनत अमान इस दौर में नहीं हैं. अगर होतीं तो पहलाज निहलानी और उनका सेंसर बोर्ड सोच में पड़ जाता कि क्या हटाएं और क्या लगाएं.

अब जरा पिछले कुछ दशकों की फिल्मों पर निगाह डालिए. इसे क्या कहेंगे-

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 अब इसे क्या कहेंगे?

अगर बात भड़काऊ होने की है तो फिर हर भड़काऊ सीन सेंसर्ड होना चाहिए. लेकिन सेंसर बोर्ड के राजा तो पहलाज निहलानी हैं, वो जो कह दें वो सही. अगर अंडर गारमेंट देखकर वो असहज महसूस करते हैं तो उन्हें बिल्कुल सेंसर कर दें लेकिन एक बात का जवाब तो उन्हें देना ही होगा कि जब ब्रा की ही तरह दिखने वाली बिकनी और बिकनी ब्लाउज से परहेज नहीं तो ब्रा से क्या परेशानी है?

निहलानी साहब के ऐसे फैसले भी ट्विटर की दुनिया के लोगों को मौका देते हैं, जो फिल्‍म 'बार-बार देखो' का नाम बदलकर कहते हैं 'ब्रा-ब्रा देखो'.

लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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