बॉक्स ऑफिस पर कांतारा हिंदी की कमाई आयुष्मान खुराना की डॉक्टर G से क्यों बीस समझी जाए?
कांतारा के हिंदी वर्जन ने टिकट खिड़की पर मुकाबले में दिग्गज सितारों की फिल्म होने के बावजूद जबरदस्त कमाई की है. ऋषभ शेट्टी की फिल्म का कंटेट और बिजनेस ध्यान आकर्षित करने वाला है.
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ऋषभ शेट्टी के लेखन-निर्देशन और मुख्य भूमिका से सजी कांतारा की हर तरफ तारीफ़ देखने को मिल रही है. हाल के दिनों में जितना बेहतर वर्ड ऑफ़ माउथ कांतारा के लिए बनता नजर आया- शायद ही किसी दूसरी फिल्म के लिए दिखा हो. यह वर्ड ऑफ़ माउथ का ही कमाल है कि मूल रूप से कन्नड़ में बनी फिल्म खुद ब खुद पैन इंडिया बन गई और भारी डिमांड की वजह से मुख्य रिलीज के दो हफ़्तों बाद इसे हिंदी समेत कई अहम भाषाओं में डब कर रिलीज किया गया है.
हिंदी बेल्ट में कांतारा का शानदार बिजनेस ट्रेड एक्सपर्ट्स को हैरान कर रहा है. बिना तैयारी के एक हिंदी दर्शकों को एक अनजाने नायक की फिल्म लुभा रही है. पहले वीकएंड में फिल्म के हिंदी वर्जन की कमाई 7.52 करोड़ रुपये रही. यह उल्लेखनीय है. कांतारा के साथ ही साथ हिंदी की कॉमेडी एंटरटेनर डॉक्टर जी भी रिलीज हुई थी. डॉक्टर जी ने इसी अवधि में 15.03 करोड़ रुपये कमाए थे. बेशक यह कांतारा से दोगुना है, लेकिन आयुष्मान खुराना की फिल्म की क्षमताओं के मुकाबले कांतारा का बिजनेस डॉक्टर जी से बीस ही मानना चाहिए.
कांतारा का एक दृश्य.
35 करोड़ तक कमा सकती है कांतारा
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक़ कांतारा को हिंदी बेल्ट में हजार से भी कम स्क्रीन्स पर रिलीज किया गया था. कोई मोई ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि कांतारा के स्क्रीन्स की संख्या 2500 है. कांतारा के सामने ना सिर्फ आयुष्मान खुराना की फिल्म बल्कि गुडबाय, ब्रह्मास्त्र, विक्रम वेधा भी हैं. कहीं कहीं पोन्नियिन सेलवन 1 भी है. बताने की जरूरत नहीं कि ऋषभ शेट्टी की फिल्म हिंदी बेल्ट में किस तरह के मुश्किल मुकाबले में हैं. बावजूद उसने बिना प्रमोशन और तैयारी के अगर पहले तीन दिन में 7.52 करोड़ कमाए हैं तो यह मामूली बात नहीं है. कुछ ट्रेड रिपोर्ट्स में माना जा रहा कि मूल कन्नड़ फिल्म के हिंदी वर्जन का बिजनेस 30-35 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. ऐसा हुआ तो यह एक बड़ी कारोबारी सफलता मानी जाएगी.
क्या है कांतारा की कहानी?
कांतारा की कहानी असल में प्रकृति के साथ मनुष्यों के धर्म, साहचर्य और संघर्ष की कहानी है. इसे पुराने आख्यानों को आधुनिक संदर्भों में रखकर गढ़ा गया है. जंगल में एक गांव है. कई सौ साल पहले वहां के राजा ने एक मामूली से पत्थर के बदले अपनी जमीनें आदिवासियों और गांववालों को उपहार में दी थी. यह जमीनें उन्हें घर बनाने के लिए कुल देवता 'पनजूरली' का मंदिर बनाने के लिए दान की थी. बदले में गांववाले और उनके कुल देवता- गांव, जंगल, राजा और उसके राज्य की रक्षा करते थे.
सालों से चीजें चली आ रही हैं. आदिवासी अपने देवता के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं. मगर दिक्कतें तब शुरू होती हैं जब नए दौर में लालच की वजह से पुराने समझौते को तोड़ने की कोशिश होने लगती है. असल में राजा के वंशजों की नजर जंगल और गांव की जमीन पर है. वे इसे अब वापस चाहते हैं. जबकि गांव और जंगल लोगों के खून में धर्म और संस्कृति की तरह बह रहा है. जंगल उनके जीवन का आधार भी है. वे जंगल की लकड़ियों, जड़ी बूटी और शिकार पर आश्रित हैं.
यह सदियों से चला रहा है. सरकारी अमला भी जंगल की आड़ में गांववालों के जीवन का सीमांकन करने की कोशिश करता है. वह कानूनी वजहें गिनाकर जंगल के इस्तेमाल को जबरदस्ती रोकता है और इसके परिणाम में एक संघर्ष शुरू हो जाता है. यह संघर्ष ना सिर्फ जीविकोपार्जन का है बल्कि परंपराओं का भी है. संघर्ष का निचोड़ क्या निकलकर आता है यही फिल्म में दिखाया गया है.
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