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Updated: 21 दिसम्बर, 2022 10:59 PM
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कुछ सालों से यशराज फिल्म्स और शाहरुख खान की हालत एक जैसी है. दोनों एक अदद कामयाबी के लिए तरस गए हैं. अब तक जिन फ़ॉर्मूलों से यशराज और शाहरुख की फिल्मों पर टिकट खिड़की के बाहर दर्शकों की कतार लग जाती थी, पैसों की बारिश होती थी, अब फ़िल्में एक-एक कर धराशायी हो रहीं. दोनों की पिछली कुछेक फिल्मों को केस स्टडी के तौर पर लिया जा सकता है. बावजूद कि हर फिल्म में कोई ना कोई बड़ा प्रयोग और यूनिक पीआर हथकंडा अपनाया गया, लेकिन शायद समय का पहिया यूं घूम चुका है कि कामयाबी दोबारा वापस आने का नाम नहीं ले रही. इस बार दोनों साथ मिलकर ज्यादा आक्रामक प्रयास कर रहे हैं. पठान असल में यशराज फिल्म्स के बैनर तले ही बनी है. और लाइमलाइट में वन एंड वनली शाहरुख ही हैं. कहने को फिल्म में शाहरुख के साथ दीपिका पादुकोण, जॉन अब्राहम समेत दर्जन भर तमाम छोटे-बड़े कलाकार हैं. पर किसी का होना ना होना मायने नहीं रखता. अब तो यह लगभग साफ हो गया कि बाकी लोग फिलर की तरह हैं. शाहरुख को अपनी क्षमता लगाकर कामयाब कराने आए हैं और उन्हें इसका श्रेय भी नहीं चाहिए.

इसे पठान के गाने बेशरम रंग से भी समझना मुश्किल नहीं है. बेशरम गाना असल में दीपिका पादुकोण पर फिल्माया गया है. इसे शिल्पा ने गाया है. धुन विशाल शेखर ने दिया है. बिकिनी में दीपिका के तेवर ने पर्याप्त हंगामा मचा दिया है. उन्होंने बहुत उत्तेजक डांस किया है. कुछ को पसंद आया और कई लोगों को यह पसंद नहीं आ रहा. बॉलीवुड बायकॉट गैंग तो जबरदस्त विरोध कर रहा है. लोग कला के नाम पर व्यर्थ की फूहड़ता फैलाने का आरोप लगा रहे हैं. मजेदार यह है कि गाने को लेकर दीपिका, शिल्पा या विशाल शेखर की चर्चा नहीं के बराबर है. पोस्टर की तरह नजर आ रहे शाहरुख का ही नाम जपा जा रहा है. समझना मुश्किल नहीं कि यह किस वजह से है. कुछ पक्षों को छोड़ दिया जाए तो फिल्म का विरोध लगभग सभी धड़े कर रहे हैं. सोशलिस्ट, लेफ्टिस्ट, अम्बेडकराइट सभी. और सबके पास विरोध के अपने अपने तर्क हैं. कहने का मतलब यह है कि पठान का विरोध करने वालों में ऐसे लोग भी हैं जो आमतौर पर नरेंद्र मोदी का सार्वजनिक विरोध करते दिखते हैं. आइए देखते हैं उनके मुद्दे क्या हैं.

pathaanपठान का ऐतिहासिक विरोध हो तरह है. फिल्म का भविष्य बहुत मुश्किल में नजर आ रहा है.

1. पठान का टाइटल जातिवादी है इसे हटाओ

मोदी की राजनीति का विरोध करने वाली विचारधारा के एक वर्ग को फिल्म का टाइटल बिल्कुल पसंद नहीं आया है. कई लोग पठान की तीखी आलोचना करते हुए कह रहे हैं कि सेंसर बोर्ड को फिल्म का टाइटल बदलवा देना चाहिए. संविधान पर आधारित देश का लोकतंत्र किसी भी तरह की जातीय श्रेष्ठता को ख़त्म करने की दिशा में प्रयास कर रहा है. और कुछ लोग जाति धर्म के गुमान से बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं. तमाम सवाल कर रहे हैं यह पठान है कौन?

कुछ ओपिनियन मेकर्स का कहना है कि दुनिया के जिन इलाकों में पठान हैं उनकी गिनती सबसे पिछड़े और बर्बर इलाकों में है. वहां महिलाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है. वे भेड़ बकरियों से भी बदतर हैं. भयावह अशिक्षा और गरीबी में धंसे लोग. गर्व करने के लिए क्या है इतिहास में बर्बरता के सिवा. हकीकत में आज तक कोई इतना एडवांस नहीं दिखा जितना बेशरम रंग में शाहरुख नजर आ रहे हैं. लोग पूछ रहे कि किस विरोधाभास को झुठलाने के लिए शाहरुख 100 करोड़ लेकर यह सब करने आए हैं.

2. दबे कुचले समाज को अय्याशी के विजुअल से चिढ़ाया जा रहा

एक लॉबी ने और भी दिलचस्प सवाल उठाए. लिखा जा रहा कि सामाजिक व्यवहार (खानपान रहन सहन) आर्थिक वजहों से तय होती हैं. असल में किसी की सामाजिकी भी बहुत हद तक उसकी आर्थिक पृष्ठभूमि से निर्धारित होती है. समाज में उन्हीं व्यवहारों को सामूहिक मान्यता मिलती है जिसे अलग-अलग आर्थिक क्षमता के लोग स्वीकार कर सकें. अब दिहाड़ी मजदूरी करने वाला व्यक्ति अपनी पार्टनर के साथ बिकिनी में धूप नहीं सेंक सकता. उसके पास ना तो पैसा है और ना ही समय. वह सामाजिक न्याय पाने के लिए रात दिन जुता हुआ है. यह कोई रईस ही कर सकता है. समझ नहीं आता कि समाज में अराजकता को चरम पर पहुंचाने वाले ऐसे अय्याश करतब क्यों महिमामंडित किए जा रहे हैं. मुट्ठीभर लोगों की संस्कृति समाज की संस्कृति नहीं हो सकती. भारतीय समाज अपनी गति से बदल रहा है. लेकिन कुछ लोग उसकी गति को प्रभावित करना चाहते हैं.

भारतीय समाज में व्यापक रोमांस का रूप रंग अभी भी वही है जो पुष्पा: द राइज में अल्लू अर्जुन और रश्मिका मंदाना की केमिस्ट्री में दिखता है. कांतारा में भी ऋषभ शेट्टी और सप्तमी गौड़ा के बीच है. दोनों फिल्मों में कम इंटीमेट सीन्स नहीं हैं. लेकिन वे स्वाभाविक हैं तो असहज नहीं करते. पठान में मादकता का फूहड़ इस्तेमाल हुआ है. सेंसर ने भला ऐसे गाने को पास कैसे कर दिया. मोदी सरकार ध्रुवीकरण कर रही है.

3. सिर्फ गोरी चमड़ी और तीखी नाक वाले हीरो नहीं चाहिए

कई लोगों ने फिल्म इंडस्ट्री पर मुल्तानी, पेशावरी और पंजाबी मूल के लोगों के काबिज रहने पर सवाल उठाया. लोग कहते नजर आ रहे कि हीरो हीरोइन का मतलब गोरा चिट्टा चेहरा, ऊँचा कद, तीखी नुकीली नाक भर नहीं है. बॉलीवुड को विविधता लानी चाहिए. काले गेहुए रंग के लोगों और चपटी गोल नाक वालों में कोई बुराई नहीं. सिक्स पैक एब्स ना भी हों, मगर मोटे ताजे ऋषभ शेट्टी कांतारा बना सकते हैं, कम भी सकते हैं तो यशराज फिल्म्स को अपनी हर कहानी में पंजाबी मूल के नायक ही क्यों चाहिए? कई लोगों ने कहा कि बॉलीवुड में डायवर्सिटी हो इसके लिए पठान को फ्लॉप कराना जरूरी है. एक फ्लॉप हीरो को पैसे और कनेक्शन की ताकत पर कितने दिनों तक झेला जा सकता है. नए लोगों को मौका मिले इसके लिए पठान का पिटना जरूरी है.

4.बॉलीवुड के पास दिखाने को कुछ बचा नहीं तो यौन कुंठा के सहारे कारोबार करना चाहते हैं

कई लोगों ने यहां तक आरोप लगाए कि शाहरुख जैसे 100 करोड़ी सितारों के दबाव में परेशान बॉलीवुड के पास अब कुछ दिखाने सुनाने को बचा नहीं है. वह फिल्मों को पैसे, राजनीतिक ताकत और पीआर के जरिए हिट करवाना चाहता है. पहले पठान के टीजर और फिर बेशरम रंग ने साफ कर दिया कि यशराज और शाहरुख खान सॉफ्ट पोर्न परोसकर कामयाबी खरीदना चाहते हैं. बॉलीवुड इसी तरह के मसालेदार ट्रिक्स पर फ़िल्में बनाने का आदि रहा है. थोड़ा सा एक्शन, बोल्ड इंटीमेट सीन, सिनेमा के जरिए किसी कंट्रोवर्सी को हवा देकर सुर्खियां बटोरना- नाना प्रकार के मसालों में खिचड़ी बना देती है. ना तो ढंग की कोई कहानी होती है ना एक्टिंग.

इंटरनेट के दौर में अब ये फ़ॉर्मूले काम नहीं करते. पठान में जो दिखाएंगे उससे कहीं ज्यादा बढ़िया चीजें तो लोगों को रील्स में बिना पैसे खर्च किए मिल ही जाती हैं. फिर कोई क्यों पठान देखने जाए. जहां तक किसी महिला या पुरुष की देह देखने का सवाल है तो ओटीटी पर लोगों को वह भी अच्छे से देखने को मिल रहा है. अब तो सीधे पोर्न ही लोगों की एक्सेस में है. इस दौर में लोगों के फोन पर दुनियाभर के सारे कॉन्टेंट उपलब्ध हैं. कोई क्यों एक 57 साल के बूढ़े एक्टर की छिली हुई छाती देखने क्यों जाएगा?

लोग बहुत सख्त होकर कह रहे कि शाहरुख को बतौर एक्टर अब रिटायर हो जाना चाहिए.

5. भगवा रंग सनातन की पहचान, शाहरुख ने 'बेशरम' बनाकर अपमान किया

कुछ अंबेडकराइट कहते नजर आ रहे कि भगवा रंग भारतीय परंपरा में बहुत पवित्र रंग है. यह भगवान बुद्ध का रंग है. इसे तपस्वी के रंग के रूप में भी जाना जाता है. भिक्खू, संत, महात्मा इसी रंग के वस्त्र पहनते हैं. भगवा रंग बौद्ध जैन समेत भारत की समस्त सनातन व्यवस्था में एक जैसा प्रतिष्ठित है. कपड़े किसी भी रंग के हो सकते हैं. लेकिन बेशरम रंग घाने में जिस तरह कुछ रंगों से बचा गया है और कुछ रंगों को फोकस किया गया है उससे मेकर्स की भावनाएं पता चलती हैं. बॉलीवुड की सभी फिल्मों में कुलियों के बिल्ले का नंबर हमेशा 786 रखा गया. और उसके जरिए क्या स्थापनाएं की गई यह बताने की जरूरत नहीं. लोगों ने आपत्ति भी नहीं किया. या तो तटस्थ रहिए और तटस्थ नहीं रह सकते तो इसका मतलब यह नहीं है कि किसी का अपमान करेंगे.

लोगों ने यहां तक कहा कि अब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका अहै और पठान को सबक सिखाना जरूरी है.

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