रंग रूप और मोटापा अपनी जगह, काजोल अगर कामयाब हैं तो वजह उनकी मेहनत है!
बॉडी शेम करने वालों पर एक्टर काजोल ने अपना पक्ष रखा है.और तमाम बातें की हैं. बाकी काजोल आज सिर्फ इसलिए एक मुकाम पर हैं क्योंकि उन्होंने इधर उधर की बातों पर काम नहीं दिए और फोकस सिर्फ काम पर रखा.
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साल 1992 पहली बार रुपहले पर्दे पर फैंस को काजोल के दर्शन हुए थे. फिल्म रिलीज हुई बात फिर आई गयी हो गयी. इसके बाद 1993 में आई फिल्म बाजीगर. फिल्म सुपर डुपर हिट थी. यूं तो फिल्म की यूएसपी शाहरुख़ खान, शिल्पा शेट्टी, दिलीप ताहिल और राखी जैसे लोग थे. लेकिन इस फिल्म के जरिये काजोल को भी खूब लाइम लाइट मिली और उनके काम की खूब तारीफ हुई. भले ही नेपोटिज्म के बल पर काजोल इंडस्ट्री में जगह बनाने में कामयाब हुई हों. लेकिन जब हम उनकी फिल्मों को देखते हैं और उनके काम का अवलोकन करते हैं तो मिलता है कि, शुरूआती दौर में काजोल भले ही इंडस्ट्री में छाए भाई भतीजावाद के दम पर फ़िल्में पाने में कामयाब हुई हों. मगर काजोल के मामले में अलग ये रहा कि उनकी कोई भी फिल्म रही हो, उसमें काजोल की मेहनत नजर आती है. यानी काजोल इंडस्ट्री की उन चुनिंदा एक्टर्स में हैं जो अपनी गलतियों से सबक लेती हैं और अपनी एक्टिंग से हर बार दर्शकों को कुछ नया परोसती हैं.
काजोल के विषय में कोई कुछ कह ले लेकिन उनकी मेहनत से इंकार नहीं किया जा सकता
दरअसल काजोल ने अभी हाल ही में एक इंटरव्यू में अपनी प्रोफेशनल लाइफ के बारे में खुलकर बात की.काजोल, जिन्हें आखिरी बार सलाम वेंकी में देखा गया था, ने खुलासा किया है कि अपने करियर के शुरूआती दौर में उन्हें किस तरह बॉडी शेम किया गया था. तब काजोल के प्रति आलोचनाओं का लेवल क्या था इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि उन्हें तब न केवल मोटी-कहा गया बल्कि त्वचा के रंग के लिए भी उन्हें खूब ट्रोल किया गया.
ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे को दिए गए एक इंटरव्यू में काजोल ने बताया कि कैसे तब लोगों ने उनको लेकर राय बना ली थी. उस दौर में कहा गया था कि ये सांवली है, मोटी है और हर वक़्त चश्मा लगाती है. काजोल ने अपने इंटरव्यू में इस बात का भी खुलासा किया कि कभी भी उन्हें इन चीजों का कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. उन्हें पता था कि वो कूल है, स्मार्ट हैं और दूसरों से कहीं ज्यादा बेहतर हैं.
काजोल ने ये भी कहा कि अपने खिलाफ हुई तमाम नकारात्मक बातों को सदा उन्होंने अपने तक सीमित रखा और सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर फोकस किया. वाक़ई ये सच है कि ये सिर्फ काजोल का काम ही था जिसने न केवल विरोधियों का मुंह बंद किया. बल्कि जो उन्हें एक खास मुकाम तक ले गया.
शुरुआत से लेकर आज तक, काजोल कभी बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी न ही उनमें कुछ ऐसा था जो अतरंगा या अनोखा हो. काजोल को देखें तो इसे उनकी क्वालिटी ही कहा जाएगा कि कभी उनको देखकर ऐसा नहीं महसूस हुआ कि वो किसी दूसरी दुनिया से आई हैं. चाहे वो रंग रूप रहा हो या फिर स्किन कलर, काजोल को जब जब हमने स्क्रीन पर देखा तो वो हमें अपने बीच की लगीं.
बाकी काजोल के विषय में एक अच्छी बात ये भी रही कि जब भी बात खुद में सुधार की आई काजोल ने किसी सर्जरी को नहीं चुना न ही उन्होंने हित होने के लिए छोटे कपड़ों को तरजीह दी. काजोल ने खुद पर मेहनत की. हर फिल्म के साथ अपनी एक्टिंग और डायलॉग डिलीवरी में सुधार किया जिसका नतीजा ये निकला कि एक उम्दा एक्टर के रूप में आज हम काजोल को अपने सामने देख रहे हैं.
भले ही काजोल नेपोटिज्म के दम पर इंडस्ट्री में आई हों लेकिन अगर आज इतने बरसों बाद वो इंडस्ट्री में टिकी हैं तो इसका कारण बस यही है कि उन्होंने हमेशा उस चीज पर ध्यान दिया जो एक एक्टर की पहचान है. यूं तो काजोल के विषय में कई बातें हो सकती हैं लेकिन जब हम एक एक्टर के रूप में उन्हें देखते हैं तो वो हमें एक कम्प्लीट पॅकेज के रूप में नजर आती हैं.
जाते जाते हम एक बात जरूर कहना चाहेंगे कि इतने लंबे वक़्त तक इंडस्ट्री में टिकी रहने वाली काजोल ने हमें संदेश यही दिया है कि अगर हमें आगे आना है तो उसका जरिया रंग, रूप, बोली, भाषा न होकर काम है. अगर इंसान अपने काम में आगे होगा तो दुनिया न चाहते हुए भी उसे सलामी देगी.
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