काश ! एक फिल्म खिलजी और काफूर के प्यार पर बनती...
अलाउद्दीन खिलजी और मलिक काफूर के प्यार पर क्या कोई संजय लीला भंसाली या अनुराग कश्यप फिल्म बनाएगा ? कफूर को कैसा लगता होगा, जबकि उसका प्रेमी किसी और रानी की तारीफ करता होगा...
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एक खूबसूरत सुल्तान, गोरा, लंबा, तगड़ा, योद्धाओं सा बदन और तीखे नयन-नक्श वाला. ख़ुदा की बनाई इस दुनिया में ज़मीन के एक बहुत बड़े टुकड़े का बादशाह. ये बादशाह जब ग़ुलाम हुआ तो अपने ग़ुलाम का! दूसरा ग़ुलाम भी कम ना था- वो गोरा-चिट्टा, लंबा और प्यारा सा चेहरा, तराशे हुए नयन-नक्श, बहुत तीखे न होते हुए भी एक आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था.
इतिहासकारों ने लिखा है कि बादशाह का इश्क़ भी ऐसा था कि अपने मोहब्बत के निशानी के तौर पर वो हर वक़्त गले में ज़ुन्नार डाले घूमता था. कितना मुश्किल होगा उसका इश्क़, जब समाज रूढ़ियों पर चला करता था (आज की तरह नहीं कि फिल्म है... बस फिल्म है बोलकर आप कुछ भी कहने और दिखाने के लिए आज़ाद हो जाते हैं)!
सोचिए तब क्या हुआ होगा जब उसके प्यार के बीच धर्म आ गया होगा. एक सुल्तान के लिए उस वक्त ये ज्यादा मुश्किल समय रहता होगा. आज की तरह नहीं कि कोर्ट चले गए और घरवालों के मुंह पर कागज़ का एक टुकड़ा मार दिया. वो वक्त ज्यादा मुश्किल इसलिए होता होगा क्योंकि हर राजा या बादशाह से ये अपेक्षा रहती है कि वो खुद 'उसके' बनाए रास्ते पर चले और लोगों के लिए मिसाल कायम करे.
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सोचिए किस तरह उसका हाथ पकड़े सुल्तान अपने महल के मुंडेरों से अपनी रियाया और रियासत को चुपके से देखता होगा. चांदनी रातों में दोनों की चहलकदमी कितनी मनोरम होती होगी. कैसे वो महल में साथ साथ चलते हुए अपने साथी को सिर्फ डराने के लिए, केवल मज़ाक में या उसको छेड़ने के लिए ही कभी कभी उसका हाथ पकड़ लेते होंगे. फिर ग़ुलाम सुल्तान की इस हरकत से डर जाता होगा. उनकी तरफ गुस्से से देखता होगा. पहले तो सुल्तान के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खेल जाती होगी, फिर हालात को भांपते हुए, वो किस तरह और कितने प्यार से काफूर को मानते होंगे.
जब दोनों अंतरंग होते होंगे तब का उन दोनों का संवाद कितना रोमांचक होता होगा. कितना मुश्किल होगा सुल्तान के लिए मैदान-ए-जंग में उसके लिए टाइम निकलना. जब तमाम दुश्वारियों के बावजूद वो मिला करते होंगे उन शामों की मुलाकात कितनी रोमांटिक हुआ करती होगी. लेकिन ग़ुलाम की मनोस्थिति तब कैसी रही होगी, जब उसे पता चला होगा कि उसका साथी, उसका सुल्तान किसी राजघराने की महादेवी पर आसक्त है. कितनी पीड़ा और वेदना से वो गुजरा होगा.
सुल्तान के मुंह से बार बार महादेवी की सुंदरता की तारीफ सुनकर कैसे उसका चेहरा उतर जाया करता होगा. चेहरे का रंग फीका पड़ जाता होगा. कैसे अचानक उसके मुंह का स्वाद बदल जाया करता होगा जब सुल्तान के पीछे चलते हुए, उसे महादेवी की रमणीयता की कहानी सुननी पड़ती होगी. यही नहीं दिल में टीस होते हुए भी उसे सुल्तान की हां में हां मिलानी पड़ती होगी. इस बात का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं कि उसका जीवन कितना कठिन और अवसाद से घिरा रहा होगा.
अगर इस दृष्टिकोण पर फिल्म बनाई जाए तो अभिनय और निर्देशन दोनों आयामों के लिए ये चैलेंजिंग रहेगा. हालांकि ऐसा चैलेंज हिंदुस्तानी सिनेमा के भविष्य लिए ज्यादा अच्छा होगा और दर्शकों को भी कुछ नया देखने को मिलेगा.
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