बसंत पंचमी का महत्व जो किसी वैलेंटाइन से कम नहीं है
बसंत पंचमी के दिन पीला रंग पहनने और मां सरस्वती की पूजा करने का कारण भी जान लीजिए. ये दिन सिर्फ शिक्षा नहीं बल्कि प्यार का प्रतीक भी है.
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फरवरी आया और एक तरफ वैलेंटाइन डे की धूम मचने लगी, लेकिन इसी बीच एक और त्योहार है जो मान्यताओं के हिसाब से न सिर्फ इस महीने को खास बनाता है बल्कि पौराणिक महत्व भी रखता है. ये है बसंत पंचमी. हालांकि, पिछले दिनों इस त्योहार को लेकर काफी विवाद हुआ है धर्म निरपेक्षता की दुहाई देते हुए कई जगह बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा पर रोक लगाई गई है.
मां सरस्वती की पूजा का ये त्योहार वैसे तो बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन कई बार इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है. खेतों में सरसों के पकने पर मनाया जाने वाला ये त्योहार न सिर्फ खेतों की फसल का बल्कि आने वाले मौसम का भी संकेत मिलता है. हवा में हल्की गर्माहट आ जाती है. ये पूरे देश में मनाया जाता है. बसंत पंचमी को दक्षिण भारत में विद्यारंभ पर्व कहते हैं. आंद्र प्रदेश के बासर सरस्वती मंदिर में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं.
बसंत पंचमी माघ महीने (बसंत) से शुरू होने के पांचवे दिन मनाई जाती है. इस साल ये 10 फरवरी को पड़ने वाली है. इस दिन कई जगह बच्चों को पढ़ने-लिखने के लिए पहला शब्द सिखाया जाता है. हर तरह की कला और शिक्षा का जश्न मनाने का दिन है ये.
पौराणिक कथाओं के अनुसार इसलिए मनाई जाती है बसंत पंचमी-
1. श्रीकृष्णा का वरदान था बसंत पंचमी का आगमन-
कुछ लोककथाओं के अनुसार श्री कृष्ण ने मां सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि उनकी पूजा होगी और इसी के बाद सबसे पहले सरस्वती की पूजा खुद श्री कृष्ण ने की थी. कथा के अनुसार जब सरस्वती ने पहली बार कृष्ण को देखा तो उसपर मोहित हो गईं और उन्हें पति के रूप में पाने की इच्छा करने लगीं. परंतु श्रीकृष्ण राधा के प्रति समर्पित थे और इसलिए उन्होंने सरस्वती को वरदान दिया कि ज्ञान की इच्छा रखने वाले हर व्यक्ति को माघ माह की शुक्ल पंचमी को सरस्वती का पूजन करना होगा. इसके बाद खुद कृष्ण ने सबसे पहले सरस्वती की पूजा की थी. सृष्टि निर्माण के लिए मूल प्रकृति के पांच रूपों में से सरस्वती एक है, जो वाणी, बुद्धि, विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है.
बसंत पंचमी में मां सरस्वती की पूजा सबसे पहले कृष्ण ने की थी.
2. ब्रह्मा ने सृष्टी की रचना के बाद सरस्वती की रचना की-
एक पौराणिक कथा के अनुसार बसंत पंचमी के दिन ही सरस्वती की रचना हुई थी. ब्रह्मा ने सृष्टी की रचना की और उन्हें लगा कि उनकी रचना में कुछ कमी रह गई. इसलिए उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का और सरस्वती पैदा हुईं. सरस्वती के चार हाथ थे जिसमें से एक में पुस्तक, दूसरे में वीणा, तीसमें में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था. ब्रह्मा ने सरस्वती को वीणा बजाने को कहा और पूरी दुनिया में स्वर आ गए. दुनिया पूरी हो गई और क्योंकि सरस्वती ने ब्रह्मा के साथ सृष्टी की रचना करने में मदद की थी इसलिए सरस्वती की पूजा की जाती है.
3. कामदेव को मिली थी श्राप से मुक्ति-
एक अन्य कथा ये बताती है कि असल में ये दिन श्रृंगार रस से जुड़ा हुआ है जो प्रेम का प्रतीक भी है. लोककथा कहती है कि कामदेव की पत्नी रति ने कठोर तपस्या कर अपने पति को वापस पाया था. भगवान शिव ने क्रोध में आकर कामदेव को राख बना दिया था फिर रति ने 40 दिन तपस्या की थी और बसंत पंचमी के दिन ही शिव ने कामदेव को वापस जीवन दिया था. इसलिए बसंत पंचमी को प्रेम का दिन भी माना जाता है.
आखिर क्या है बसंत पंचमी के दिन पीला पहनने का राज?
बसंत पंचमी के दिन पीला पहनने के दो अहम कारण हैं. पहला ये कि पीले रंग को बहुत शुभ माना जाता है. पीले रंग को ज्ञान का रंग भी माना जाता है. साथ ही ये ध्यान का रंग भी है. योग करते समय पीले रंग को महत्व दिया जाता है. विष्णु, कृष्ण और गणेश के वस्त्रों का रंग भी पीला है और इसीलिए पीला रंग अहम है.
दूसरा कारण ये है कि इस मौसम में सरसों की फसल पककर तैयार रहती है और खेत पूरी तरह से पीले दिखने लगते हैं. यही कारण है कि बसंत पंचमी के दिन पीला पहना जाता है.
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बसंत पंचमी को लेकर एक और बात है जो शायद लोगों को न पता हो, बसंत पंचमी सिर्फ हिंदुओं का नहीं बल्कि मुसलमानों का भी त्योहार है. हर साल बसंत पंचमी के दिन दिल्ली स्थित निजामुद्दीन दरगाह में सूफी बसंत मनाया जाता है. पीले रंग का थोड़ा अलग रूप यानी 'संदली' भी कहते हैं. दरअसल, इस त्योहार की कहानी निजामुद्दीन औलिया के समय की है ( 1238 से 1325) और उतनी ही पुरानी. औलिया के कोई संतान नहीं थी, लेकिन वो अपनी बहन के बेटे ताकिउद्दीन नूह से बहुत प्यार करते थे. पर एक बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गई. नूह की मृत्यु के बाद निजामुद्दीन औलिया बेहद निराश रहने लगे.
उनकी उदासी हजरत आमिर खुसरो से देखी नहीं गई. वो औलिया को एक बार फिर हंसता हुआ देखना चाहते थे. खुसरो ने देखा कि गांव की महिलाएं पीले रंग के वस्त्र पहन, हांथ में सरसों के फूल लिए नाचते-गाते जा रही थीं. तब निजामुद्दीन औलिया को खुश करने की तरकीब खुसरो को सूझी.
खुसरो ने एक महिला से पूछा कि वो ऐसे सजकर कहां जा रही है तो महिला ने जवाब दिया कि आज खास दिन है और वो पूजा करने जा रही हैं. खुसरो ने पूछा कि क्या इससे उनका भगवान खुश होगा, तो महिला ने कहा हां. खुसरो तुरंत पीली साड़ी पहनकर और सरसों के फूल ले औलिया के सामने पहुंच गए. और गाना गाने लगे 'सकल बन फूल रही सरसों'.
खुसरो को ऐसे वस्त्रों में नाचते-गाते देख औलिया मुस्कुरा दिए और तब से इस दिन निजामुद्दीन दरगाह में बसंत पंचमी मनाई जाने लगी.
'Sufi Basant' celebrated at Delhi's Nizamuddin DargahRead @ANI story | https://t.co/bD3ysdfZTd pic.twitter.com/NbpdQQ0Ya5
— ANI Digital (@ani_digital) January 22, 2018
इस दिन लोग सुबह से ही मां सरस्वती का पूजन करने लगते हैं. सरस्वती मंत्र का जाप होता है. अपनी किताबों की पूजा होती है, घर में स्वादिष्ट प्रसाद बनाया जाता है और नए काम की शुरुआत भी की जाती है. देश के अलग-अलग हिस्सों में इस त्योहार को मनाने के अलग-अलग तरीके हैं. शादी, मंगनी, शिक्षा, गृहप्रवेश आदि के लिए इस दिन को बहुत ज्यादा शुभ माना जाता है.
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