चोलों के बृहदेश्वर मंदिर को मराठों ने भी संवारा, DNA चेक करने वालों जरा तंजौर घूम जाओ!
तंजौर चोलों के अलावा कई और हिंदू साम्राज्य के अधीन भी रहा जिसमें मराठे यहां के आख़िरी राजा थे. सभी हिंदू राजाओं ने बृहदेश्वर का संरक्षण ही किया. मलिक काफिर जैसे विदेशी आक्रमणकारी के दमन को भी झेला. देसी राजाओं का संरक्षण और विदेशी हमले बताने के लिए काफी हैं कि चोलों का डीएनए क्या था?
-
Total Shares
पोन्नियिन सेलवन 1 ने पता नहीं क्या झकझोर दिया कि तमिलनाडु में पेरियार के पाखंडी चेले बौखला से गए हैं. एक ने कहा- चोल हिंदू नहीं थे. दूसरे ने भी यही कहा और तीसरे ने भी यही कहा. लगभग पेरियार के सभी पाखंडी चेले यही 'दुराचार' दोहराते नजर आ रहे हैं- "चोल, शैव थे. लेकिन हिंदू नहीं थे." क्या मजाक है? पाखंड पर टिकी पाखंडी राजनीति और उसकी सत्ताओं के पाए हिले हुए हैं. चोलों का डीएनए चेक किया जा रहा है. दुर्भाग्य से राज राजा चोल का कोई बाल, कोई कोशिका, अस्थि या अवशेष हजार साल बाद खोजना मुश्किल है. अब सवाल है कि डीएनए चेक करने वालों की चुल्ल कैसे शांत की जाए? लैब का विकल्प तो असंभव है. कोई बात नहीं. चोल पुत्रों ने समाधान छोड़ रखा है, जिसे मराठा पुत्रों ने और ग्रहणीय, सहज और सरल बना दिया है.
तंजौर (तंजावुर) दिल्ली से करीब 2500 किमी दूर है. और मराठों के पुणे से यह दूरी 1240 किमी है. बाकी पाखंड में पगलाए पेरियार के तमाम चेलों को चाहिए कि अपने शहर से तंजौर की दूरी गूगल करें और सुविधाजनक वायु-थल मार्ग से वहां पहुंच जाए. पेरियार के पाखंडी चेलों को बस यह पुख्ता करना होगा कि कहीं मंदिर जाने की वजह से उनका मौजूदा मजहब (इस्लाम, ईसाइयत या और जो भी हो) आड़े ना आए. कमल हासन के लिए दिक्कत की बात नहीं होनी चाहिए. उन्हें हमेशा से दोतरफा प्रैक्टिस की आदत रही है. तंजौर में राज राजा चोल का बनवाया वृहदेश्वर मंदिर है. यह मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित हजार साल पुराना मंदिर है. लेकिन इस मंदिर में भगवान शिव के अलावा हिंदुओं के पूजनीय अन्य देवताओं का भी जिक्र यहीं मिलेगा. पार्वती, गणेश और सुब्रमण्यम को छोडिए. यहां ब्रह्मा, विष्णु, राम और कृष्ण का भी संदर्भ है.
मणिरत्नम की फिल्म PS1 का दृश्य.
बृहदेश्वर परिसर पेरियार के पाखंडी चेलों का समूचा इतिहास-वर्तमान बेनकाब करता है
पेरियार के पाखंडी चेलों को चोलों का डीएनए पता लगाने के लिए डीएनए और लैब जाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. बशर्ते वे मंदिर गए हों, उसे निहारा हो. अब मंदिर में गए ना हों तो उनकी अज्ञानता समझी जा सकती है. बावजूद कि यहां ब्रह्मा, विष्णु, राम और कृष्ण नहीं भी रहते तो भी फर्क नहीं पड़ने वाला था. हिंदुत्व तो एक अम्ब्रेला कॉन्सेप्ट पर है जिसमें लाखों जनजातियों के असंख्य देवताओं का एकीकरण है. वह देवता जो इसी ब्रह्माण्ड और भूमि के हैं. इनमें हिरण्यगर्भा (समुद्र से पैदा हुए) हैं, गर्भा (मां के गर्भ से जन्म लेने वाले) भी हैं और ऐसे भी देवता हैं जिन्होंने बिना किसी गर्भ से जन्म नहीं लिया. यानि जिनका अस्तित्व अनादि और अनंत है. जैसे शिव. हिंदुत्व की तमाम कहानियां चित्रकला के रूप में अभी भी बृहदेश्वर मंदिर की दीवारों पर हजार साल से उत्कीर्ण हैं.
भारत का डीएनए चेक करने वालों के लिए यह मंदिर एक अद्भुत जगह है. सबसे लंबे वक्त तक तंजौर पर चोलों का शासन रहा. वहां की लगभग हर चीज पर उनकी स्पष्ट छाप नजर आती है. 13वीं शताब्दी के बाद चोलों का साम्राज्य कमजोर पड़ा. पांड्य ने उसे जीत लिया. पांड्यों ने बृहदेश्वर जीतने के बाद उसे नष्ट नहीं किया. उलटे उसे और समृद्ध किया. हालांकि मालिक काफूर के रूप में तंजौर पर विदेशी आक्रमणकारियों का साया भी पड़ा. उसने तोड़फोड़ भी मचाई. लेकिन दक्षिण के वीर पांड्यों ने फिर से ताकत जुटाई और तंजौर को स्वतंत्र करा लिया. पांड्यों के अलावा यह कुछ समय के लिए विजयनगर साम्राज्य का भी हिस्सा रहा. लेकिन चोलों के बाद का ज्यादातर समय अस्त-व्यस्त ही नजर आता है. 1674 में जब तंजौर पर मराठों का विजय हुआ यह लंबे वक्त तक स्थायी और सम्पन्न राज्य बना रहा और विदेशी आक्रमणकारियों के साए से मुक्त रहा.
बृहदेश्वर सिर्फ मंदिर भर नहीं, शिव के अखंड भारत की निशानी भी है
तंजौर के पहले मराठा राजा शिवाजी महाराज के सौतेले भाई वेंकाजी भोंसले थे. 1957 की गदर से पहले भारत की सत्ता पर अंग्रेजों के काबिज होने से पहले तंजौर पूरी तरह से मराठों की निगरानी में विदेशी हमलावरों से सुरक्षित रहा. बृहदेश्वर मंदिर में चोलों के अलावा उन सभी हिंदू राजाओं ने निर्माण कार्य और रखरखाव करवाया. पांड्यो ने भी यहां मंदिर मंडप का निर्माण करवाया. मराठों ने भी बृहदेश्वर परिसर में भगवान गणेश के विशाल मंदिर का निर्माण करवाया. गणेश भगवान शिव और पार्वती के पुत्र थे. यहां चोलों के साथ मराठों के भी शिलालेख और उनके निर्माण कार्य का जिक्र मिलता है. बृहदेश्वर को देखकर लगता है कि चोलों, मराठों और दक्षिण के तमाम साम्राज्यों का डीएनए एक था. क्या अब भी बताने की आवश्यकता है कि चोलों का डीएनए क्या था? किसी ने भी अपने पूर्ववर्ती शासकों के निर्माण को नहीं बदला. उसे मिटाया नहीं. बल्कि उसे संशोधित और संरक्षित किया.
बृहदेश्वर मंदिर की खूबियों के बारे में यहां विस्तृत जानकारी हासिल कर सकते हैं:-
जिनकी राजनीति भारत को विभाजित करने वाली भावना पर टिकी है- वे हजारों साल बाद उस इतिहास को बदलना चाहते हैं जो आज भी प्रस्तरों पर अमित रूप में दर्ज है. बृहदेश्वर एक नमूना भर है. दक्षिण में चोलों के बनवाए ऐसे ना जाने कितने उदाहरण हैं जो उनका ही नहीं समूचे देश का डीएनए बताने के लिए पर्याप्त हैं. वह भी लैब में बिना किसी सैम्पल टेस्ट के. बृहदेश्वर मंदिर 13 मंजिला है. इसे बिना नींव खोदे इंटरलॉकिंग तकनीक से बनाया गया है. यहां भगवान शिव का एक विशाल लिंगम है. नंदी की भी विशाल प्रतिमा है. मंदिर कम्पाउंड में करीब 250 अन्य शिवलिंग भी हैं और वहां दीवारों पर पुराणों की कथाओं का चित्रांकन किया गया है. मजेदार यह है कि हजारों साल बीतने के बावजूद विशाल मंदिर के आर्किटेक्चर पर कोई असर नहीं पड़ा है. यह तनिक भी नहीं झुका है. जबकि दुनिया की तमाम बड़ी इमारतें झुक गई हैं जो बृहदेश्वर के बाद बनीं. आज की तारीख में उनका रखरखाव चिंता का विषय है. बृहदेश्वर मंदिर में आज भी लिंगम का दर्शन पूजन होता है.
और यह भी कि जबतक बृहदेश्वर रहेगा, भारत अखंड रहेगा. उसे खंड खंड करने की कोई योजना कारगर नहीं होगी. समाजवादी राममनोहर लोहिया ने यूं ही नहीं लिखा था- यह देश शिव, राम और कृष्ण से पूर्ण होता है.
आपकी राय