यदि हम कमजोर लड़ाके हैं, तो इसमें बुरा क्या है?
भारत से 23 युवक ISIS की ओर से लड़ने गए थे. इनमें से 6 मारे गए. अब खबर आई है कि ISIS भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश से गए युवाओं को अरबों के मुकाबले कमजोर योद्धा मानता है.
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यदि ऐसा है, तो सच भी है. क्योंकि इसकी वजह है. लेकिन इस सच से शर्मिंदा होने की कोई वजह नहीं है...
1. प्रकृति ने इतना दिया कि लड़ना ही नहीं पड़ा
गंगा-यमुना के मैदानों में हमारी सभ्यता फली-फूली. यहां जमीन इतनी उपजाऊ थी कि खाने-पीने के लिए कुछ खास जद्दोजहद नहीं करना पड़ी. इसके उलट रेगिस्तान में पले-बढ़े अरब एक-दूसरे के कबीलों पर हमले खाने-पीने का सामान लूटने के लिए ही किया करते थे. जहां पानी की एक एक बूंद के लिए संघर्ष हो, वहां की जेनरेशन को तो श्रेष्ठ लड़ाका होना भी चाहिए.
2. भूगोल ने बचाए रखा
यदि कोई हमला करता, तब तो लड़ने की बात आती. उत्तर में हिमालय और दक्षिण में समुद्र ने बचाए रखा. पश्चिम की ओर से हमले हुए भी तो थोड़े-बहुत प्रतिकार के बाद हमलावरों की हुकुमत मान ली गई. दूसरों की सत्ता के अधीन रहने के आदी रहे हैं.
3. बेहद संतोषी हैं
अब मिजाज पर नजर डालिए. यदि घर में बिजली नहीं है, तो सिर्फ इतनी जहमत उठाते हैं कि पड़ोस में झांक लें. यदि वहां भी बिजली नहीं है तो संतोष हो जाता है कि समस्या सबकी है अब चिंता करने की जरूरत नहीं. यदि इतना संतोष है हमारी प्रवृत्ति में तो हम क्यों जाएंगे किसी से झगड़ा करने.
4. जो रिस्क लेते हैं वो लड़ते नहीं
लड़ाई करने वालों के लिए पहली शर्त यही है, रिस्क. हमारे देश में रिस्क सिर्फ कारोबारी लेते हैं. पैसा कमाने के लिए. जबकि यूरोपीय सौदागरों ने पैसा कमाने के लिए दुनिया में युद्ध लड़े. दूसरे देशों को गुलाम बनाया. हम ऐसा कर ही नहीं सकते. मानवता से भरे हुए.
5. परिवार का डर दूर करता है झगड़े से
अरब, यूरोप या अमेरिका में किसी को अपराध करना है तो उसे संकोच करने की कोई जरूरत नहीं है. सामाजिक ताना बाना है. भारतीय उपमहाद्वीप में मामला उलटा है. गलती करना तो दूर, पहले ये ख्याल आने लगता है कि पापा क्या कहेंगे, मम्मी क्या सोचेंगी. बहन का क्या होगा, रिश्तेदारों को क्या मुंह दिखाएंगे.
6. कद काठी की तुलना करना ठीक नहीं
शायद यह आम धारणा है कि हमारी कद काठी अरबों या यूरोपीय देशों में रहने वालों जैसी नहीं है. लेकिन लड़ाई का कद काठी से कोई लेना देना नहीं है. चीन को लेकर क्या हम ऐसा सोच सकते हैं?
7. अच्छे लड़ाके न सही, सबसे अच्छे सोल्जर तो हैं
हम आक्रमणकारी कभी नहीं रहे. इतिहास में ऐसा कोई प्रसंग नहीं मिलता है जिसमें किसी भारतीय उपमहाद्वीप के राजा ने समुद्र को पार करके वहां राज किया हो. तो आगे होकर लड़ना भले न आए हमें, लेकिन हुक्म मानना तो खूब आता है. अनुशासनप्रिय. इसीलिए भारतीय सेना को दुनिया की सबसे अनुशासित सेना कहा जाता है.
खैर, ISIS के सरगना हम भारतीय उपमहाद्वीप वालों का परफॉर्मेंस चाहे जैसे परखें. लेकिन, यह सच है कि हम भारतीय उपमहाद्वीप के लोग आगे बढ़कर हमला करने वाले लड़ाके नहीं बन सकते. किसी अनजान का गला नहीं काट सकते. हो सकता है कि ऐसा करते किसी को देखें तो उबकाई आ जाए. तो ये मान लीजिए हम लड़ाके नहीं हैं. और हमें लड़ना भी नहीं चाहिए. क्यों लड़ें? लड़ना कोई अच्छी बात है?
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