Maha Shivratri 2020: जानिए भारत में तलाक की दर कम क्यों है?
Maha Shivratri: विवाह के बाद उनके पति कभी बड़े शांत रहते हैं, कभी बड़े कामुक, कभी बड़े गुस्से में. ऐसे में अपने पति के अलग अलग रूपों को देख कर वे स्त्रियां हैरान या परेशान नहीं रहती, की ये उनके पति अलग -अलग रूप क्यों दिखा रहे हैं. वो शिव के अलग-अलग रूप बचपन से देखती-समझती आई है.
-
Total Shares
महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) से जुड़ी यूं तो कई कहानियां हैं, लेकिन बड़ी मान्यता यही है कि इसी रात शिव-पार्वती का विवाह (Shiva-Parvati marriage) हुआ था. भारत में विवाह की नाम की संस्था आदिकाल से बहुत मजबूत रही है. एक ओर सारा जहाँ तलाक़ और डिवोर्स जैसे शब्दों से पार पाने में नाकाम रहा है, वहीं दूसरी ओर भारतीय समाज की इस मामले में तूती बोलती रही है. अमूमन यहाँ पति-पत्नी के बीच सारी उम्र साथ रहने का वादा तसल्लीबख्श निभाया जाता है. साथ ही पति-पत्नी एक दूसरे को यह विश्वास दिलाते हैं और कामना करते हैं कि अगले-पिछले कुल सात जन्मों तक हम अलग नहीं होंगे.
पश्चिमी देशों में माना जाता है कि भारतीय समाज में महिलाएं दब्बू, डरपोक, अनपढ़, वगैरह- वगैरह हैं इसलिए वहाँ से डिवोर्स के मामले ज्यादा नहीं आते हैं. उन्हें लगता है कि उन्होंने महिलाओं को आत्मसम्मान का जो पाठ पढ़ाया है, उन्हें उनके अधिकारों से जो वाकिफ कराया, रोजगार की जो सुविधा दी है वही कारण है वहाँ होने वाले तलाकों का.
लेकिन भारतीय समाज के संदर्भ में मैं यह कतई नहीं कहूंगा कि, भारत मे तलाक़ इसलिए उतनी मात्रा में नही हो रहे हैं क्योंकि भारतीय स्त्रियां अनपढ़ हैं, नासमझ हैं या उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं है या अपने आत्मसम्मान की परवाह नहीं है. आखिरकार यही सब विषय तो तलाक़ का कारण बनते हैं. नहीं...फिर भी नहीं कहूंगा. मेरे पास कुछ और वजहें हैं.
हिंदुस्तान में स्त्रियां शिव जी जैसा पति पाने के लिए उनकी आराधना करती हैं. महाशिवरात्रि हो या सावन का सोमवार, स्त्रियां शिव जी के जैसा पति चाहती हैं इसलिए इन दिनों बड़े चाव से व्रत तथा पूजा पाठ करती हैं. जितना बेहतर परिवार और पारिवारिक जीवन वह शिव का देखती है वैसा और किसी देवता का नहीं. भारतीय स्त्रियां बहुत अच्छे से बिना बताए और समझाए समझ जाती हैं कि शिव जी की आराधना करनी हैं.
महाशिवरात्रि पर शिव जैसा पति पाने की कामना करना हमारी मान्यताओं में है. और यही बात वैवाहिक संस्था की मजबूती का आधार भी है.
विवाह के बाद उनके पति कभी बड़े शांत रहते हैं, कभी बड़े कामुक, कभी बड़े गुस्से में. ऐसे में अपने पति के अलग अलग रूपों को देख कर वे स्त्रियां हैरान या परेशान नहीं रहती, की ये उनके पति अलग -अलग रूप क्यों दिखा रहे हैं.
दरअसल भरतमुनि ने दूसरी-तीसरी शताब्दी के दौरान ही काव्यशास्त्र में बताया था कि 9 रस होते हैं और हर रस का एक स्थायी भाव जैसे - शृंगार का स्थायी रति, हास्य का हास, रौद्र का क्रोध, करुण का शोक, वीर का उत्साह आदि. जब यह बात किताबों में नही भी लिखी गयी रही होगी उसके पहले से ही इसके मूल सूत्र का भान भारतीयों को ठीक ठाक रहा होगा. आज तो हर कोई यह जानता है कि मन में परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग समय पर अलग-अलग भाव आते रहते हैं.
जबकि अन्य देशों में कल्पना की जाती है कि पति एक भाव मे रहे. और अगर भाव बदलता है तो यह उसका अपमान है. जैसे किसी महिला का पति हमेशा प्रेम और समर्पण के भाव में रहे, लेकिन उसने क्रोध में कुछ कह दे तो सम्मान को ठेस पहुंच जाती है फिर वह महिला डिवोर्स लेकर किसी एक भाव वाले व्यक्ति की तलाश में निकल जाती हैं.
लेकिन हिंदुस्तान में अलग-अलग भावों में पति को देखना स्वाभाविक माना जाता है. यहाँ एक स्त्री सोचती है- "जब भला शिव जी, जो देवों के देव महादेव हैं वो कभी भोले बाबा के रूप में तो कभी रौद्र रूप में आ जाते हैं तो ये मेरा पति तो सामान्य आदमी है गुस्सा आना कौन सी बड़ी बात है. इंसान है तो अलग-अलग भाव तो आएंगे ही, कोई बात नहीं, थोड़ी देर बाद नार्मल हो जाएंगे...etc. इसमें भला क्या आत्मसम्मान को ठेस लगवाना."
ठीक इसका उल्टा करें तो यहाँ के पति भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं. शक्ति के एक रूप लक्ष्मी की तरह वे अपनी पत्नियों को घर लाते हैं. कभी-कभार पत्नियों को पति पर गुस्सा आया तो वे दुर्गा और कालीमाता का रूप भी दिखाती आयीं हैं. फलतः पतियों का वर्ग भी इस वाले भाव को निःशर्त स्वीकार करता रहा है.
मनोभावों को हमने वैवाहिक जीवन मे सम्मान-अपमान से नहीं जोड़ा. फलतः दाम्पत्य जीवन यहाँ टिकाऊ रहे. वैसे अब हम समझदार हो गए हैं. आत्मसम्मान वाला चैप्टर अब हमारे घर के अंदर भी महत्वपूर्ण हो गया है. आज जैसे गुरु के डांटने से शिष्य और पिता के डांटने से पुत्र के आत्मसम्मान को ठेस पहुचने लगी है, उसी प्रकार फैशन की दुनिया मे बढ़ती आर्थिक जरूरतों के दबाओं के बीच जब कोई खीझ जाता है तो वह खीझ तलाक़ का कारण बन जाती है. बदलते मनोभावों का जो पाठ शिव जी पढ़ाते आ रहे हैं, अब शायद हम समझदार पढे-लिखे लोग अंधविश्वास मान बैठे हैं.
हालांकि अभी भी धार्मिकों की संख्या अधार्मिकों से ज्यादा है. पर स्वयं को पतिपरमेश्वर मानने वाला पुरुष जब अपनी पत्नी को पीटने लगे और भरे समाज में पत्नी के अपमान का बदला लेना तो दूर उल्टा उसे अपमानित करने लगे तो यह शिव का मार्ग नहीं है...यह भक्ति का मार्ग नहीं है. ऐसे पति को परमेश्वर नहीं माना जा सकता. ऐसा व्यक्ति शिव का भक्त भी नहीं हो सकता.
हमे यह ध्यान रखना होगा कि शिव जब रौद्र रूप में आते थे तो उसके दो ही कारण होते थे, या तो किसी का संहार करना होता था या तो अपनी पत्नी के अपमान का बदला. कुल मिलाकर भोले बाबा के मार्ग पर चलना है तो पूरा चलें. बाबा के प्रसाद तक सीमित न रहें.
बोलो हर हर महादेव?
नोट- तलाक़ होने और न होने के संदर्भ में यह एक पक्ष मात्र है, बाकी और भी कारण हैं जिन्हें आज के दिन के विषय की दृष्टि से अभी शामिल नहीं किया गया है.
आपकी राय