नमाज अदा करने वाले हाथ बप्पा की मूर्ति सजाएं तो हैरानी तो होगी ही
अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति गणपति की मूर्तियां बनाकर अपनी रोटी कमा रहा है तो इसमें गलत क्या है. इससे कैसे इसलाम खतरे में पड़ सकता है. इससे कैसे वो मुस्लिम व्यक्ति काफिर हो सकता है. देखिए कैसे एक वीडियो पर कट्टरपंथी ज्ञान देने लग गए.
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गणेशोत्सव पर हर तरफ गणपति बप्पा मोरया की जयकार जयकार है. ये भले ही 10 दिन तक चलन वाला उत्सव है लेकिन इस एक त्योहार के साथ न जाने कितने ही लोगों की रोजी-रोटी चलती है. खासकर मूर्ति बनाने वाले लोगों की. पर भगवान गणेश की मूर्ति खरीदते वक्त क्या लोग ये सोचते भी हैं कि इसे तराशने वाले हाथ किसके थे? किसी हिंदू के या किसी मुस्लिम के?
एक विज्ञापन इन दिनों काफी वायरल हो रहा है, जिसे बनाया ही इसलिए गया है कि लोग भारत में धर्म के नाम पर हो रही राजनीति से ध्यान हटाकर सांप्रदायिक सौहार्द्र की तरफ भी देख सकें. ये वीडियो देखिए और समझिए कि त्योहार के मायने, ईश्वर की भक्ति और हमारे धर्म किस तरह आपसे में जुड़े हुए हैं. इससे खूबसूरत वीडियो आपने देखा ही नहीं होगा.
इस वीडियो ने तो इबादत के मायने समझा दिए. और एक बात ये भी कि इंसान की भावनाएं और उसका कर्म ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. इस बात के कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसने सिर पर टोपी लगा रखी है या नहीं.
क्या गलत है अगर कोई मुस्लिम भगवान की मूर्ति बनाए
इस वीडियो पर लोगों ने ढ़ेरों प्रतिक्रियाएं दीं. जो लोग धर्म से ज्यादा इंसान को अहमियत देते हैं उनको ये वीडियो बहुत पसंद आया और इसके संदेश को उन्होंने समझा भी. लेकिन इंसान को कम और धर्म को ज्यादा अहमियत देने वाले लोगों को इस खूबसूरत वीडियो में भी खामियां नजर आने लगीं. उन्होंने इस वीडियो के माध्यम से दी जाने वाली सीख को खारिज कर दिया. बहुतों ने तो ये भी कहा कि ऐसा सिर्फ टीवी और फिल्मों में ही दिखाई देता है, जबकि असल में ऐसा होता ही नहीं है.
सोशल मीडिया पर इस तरह की प्रतिक्रियाएं आईं कि एक बार को लगा कि विज्ञापन बनाने वाले की मेहनत जाया हो गई.
Decorating a fake idol and calling it ibadat* is shirk! The unpardonable sin. Allah is the god and only namaz is the ibadat.
— Al-Bilal ???? (@chaiholic69) September 14, 2018
That is also not allowed. Just love. Even religion has it funda. Even ur’s will have. Which can’t be broken. Rest u all know what is happening around.
— suhail majeed (@suhailmajeed) September 14, 2018
https://t.co/XwNB5LiGo5नहीं!#हिन्दु बाप दादाओं के समय से चली आ रही केवल ‘रोज़गार है’!पीढ़ी-दर-पीढ़ी श्रमिक कार्य-खेती,सूत कातनाकढ़ाई-बुनाई,ग़लीचे,मिट्टी-पीतल ताम्बे के बर्तन/मूर्ति,वाद्य यन्त्र बनाने का काम करते आए हैं!#हिंदुओं को बुतपरस्त कहने वाले मूर्ति की इबादत करेंगे?
— Meenakshi Sharan (@meenakshisharan) September 15, 2018
क्यों हमारे देश में सब कुछ बेचने के लिए लोगो के इमोशन्स का इस्तेमाल किया जाता है?
— Sorabh (@montuSorabh081) September 14, 2018
पैगाम अच्छा है, बहुत अच्छी बात कही गई है इस विडियो द्वारा। लेकिन ऐसी सोच रखने वाले सही मायनों में कितने मुसलमान हैं ? ईमानदारी से बताइएगा। बदकिस्मती से शायद 1000 में से कोई एक होगा। पैगाम अच्छा है लेकिन विश्वास करने योग्य नहीं। माफ किजीएगा। cc @RubikaLiyaquat
— ???? तन्हा आनन्द ???? (@Tanhaanand) September 14, 2018
लेकिन निसंदेह इसकी तारीफ करने वाले लोग ज्यादा थे. लेकिन इन सबके बीच जो बात दिल पर लगी वो ये कि क्या ऐसा सिर्फ टीवी पर ही दिखाई देता है. क्या असल में जीवन इससे अलग है, क्या सच में ये भावनाएं धोखा है? तो जवाब आया- 'नहीं'.
इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि मूर्ति बनाने वाले हाथ किसके हैं
सच्चाई के बहुत करीब है ये वीडियो
जिन लोगों ने वीडियो देखा और कहा कि ऐसा असल जिंदगी में नहीं होता, उन्होंने वाडियो के अंत में लिखी लाइन नहीं पढ़ी. उसमें लिखा था inspired by a true story. यानी सच्ची घटना से प्रेरित. इसलिए उस सच्चाई को जान लेना सभी के लिए जरूरी है. जो सच होते हुए भी झूठ ज्यादा नजर आती है. ऐसे एक नहीं सैकड़ों उदाहरण हैं, जहां त्योहार किसी का भी हो लेकिन हिंदू और मुस्लि संग दिखाई देते हैं. और बात जब गणेशोत्सव की हो तो यहां इन लोगों का जिक्र करना जरूरी हो जाता है.
कर्नाटक के चिकोड़ी में गणेशोत्सव इस मुस्लिम परिवार के बिना पूरा ही नहीं होता. अला बख्श का परिवार पिछली तीन पीढ़ियों से गणेश भगवान की मूर्तियां बनाता आ रहा है.
भयंदर के रहने वाले 38 वर्षीय मोहम्मद शेख पिछले 20 सालों से गणपति की मूर्तियां बना रहे हैं. हर साल अने कारखाने में ये करीब 200 गणपति बनाते हैं. और उसका मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं बल्कि इसलिए बनाते हैं कि उन्हें ये करना पसंद है.
सूरत के रहने वाले इकबाल कुरैशी भी भगवान गणेश की मूर्तियां बना रहे हैं. वो क्या संदेश देते हैं आप भी सुनिए-
ये है भारत की गंगा जमुनी तहज़ीब
इस्लाम में मूर्ति पूजा करने वाले को काफिर कहा जाता है. इसलिए मुस्लिम धर्म के लोग मूर्ति पूजा नहीं करते. लेकिन बहुत से मुस्लिम ऐसे हैं जो हर साल गणपति अपने घर लाते हैं और उनकी पूजा करते हैं.
नागपुर में रहने वाली नूरजहां खान पिछले 6 सालों से गणेशोत्सव पर अपने घर में गणपति लाती हैं और उनका पूरा परिवार उनकी पूजा करता है. नूरजहां का कहना है वो सभी धर्मों को मानती हैं और उन्हें इज्जत देती हैं.
अहमदाबाद के असलम भी पिछले 5 सालों से भाईचारे और सदभाव से रहने की मिसला पेश कर रहे हैं. मुस्लिम लोगों को इस तरह गणेशोत्सव मनाते आपने पहले कभी नहीं देखा होगा.
ये बात अचरज में डालती है कि 38 सालों से सांगली के गोटखिंड मस्जिद में गणेशोत्सव मनाया जाता है. यहां हिंदू-मुस्लिम मिलकर गणेशोत्सव मनाते हैं. पिछले साल जब बकरीद और गणेशोत्सव एकसाथ आया था तो यहां कें मुस्लिम समाज के लोगों ने सिर्फ नमाज अदा करके ईद मनायी थी और गणेश विसर्जन के बाद बकरीद मनाई गई.
इन लोगों को आप नहीं जानते लेकिन सलमान खान को तो सब जानते हैं. सलमान खान के घर भी हर साल गणपति बैठाए जाते हैं. और हर साल लो बड़े धूम-धाम से गणपति विसर्जन करते हैं. इसे पब्लिसिटी नहीं भारत की गंगा जमुनी तहज़ीब कहते हैं.
सलमान खान हर साल गणपति घर लाते हैं
तो ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जो ये बताने के लिए काफी हैं कि कौमी एकता की मिसाल जो फिल्मों और टीवी पर दिखाई देती है वो झूठी नहीं होती, बल्कि असल जीवन के लोगों से ही प्रेरित होती है. जिस तरह कला का कोई धर्म नहीं होता उसी तरह रोटी का भी कोई धर्म नहीं होता. और अगर गणपति की मूर्तियां बनाकर कोई मुस्लिम अपनी रोटी कमा रहा है तो इसमें गलत क्या है. इससे कैसे इसलाम खतरे में पड़ सकता है. इससे कैसे वो मुस्लिम व्यक्ति काफिर हो सकता है. वो महज एक इंसान है जो मेहनत कर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहा है. इसे इबादत नहीं तो और क्या कहेंगे..
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