सबरीमला दर्शन: 41 दिन का कठिन व्रत माहवारी वाली महिलाओं के लिए नहीं है
आखिर ऐसा क्या है सबरीमला मंदिर में कि लोग इसे लेकर इतना सख्त रवैया अपनाए हुए हैं. क्यों सिर्फ पुरुष ही इस मंदिर में पूजा कर सकते हैं और महिलाओं का प्रवेश वर्जित है.
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सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए सबरीमला के दरवाजे खुलवा भी दिए लेकिन मान्यताओं के आगे कानून की भी नहीं चल सकी. भक्तों का विरोध और गुस्सा इस कदर हावी रहा कि एक भी महिला को अभी तक मंदिर में प्रवेश नहीं कराया जा सका. इतिहास में ये पहली बार हुआ है कि एक इतिहास बनते-बनते रह गया हो. आखिर ऐसा क्या है इस मंदिर में कि लोग इसे लेकर इतना सख्त रवैया अपनाए हुए हैं. क्यों सिर्फ पुरुष ही इस मंदिर में पूजा कर सकते हैं और महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. महिलाएं जो अपने पूजा-पाठ को लेकर इतनी संतुलित और अनुशासित रहती हैं, वो अयप्पा के इस मंदिर में पूजा नहीं कर सकतीं.
आज जान लेते हैं सबरीमला के बारे में वो सब कुछ, जिसके लिए भक्त इतना संघर्ष कर रहे हैं.
कहां है सबरीमला मंदिर
करेल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से करीब 175 किलोमीटर की दूर स्थित है पंपा क्षेत्र. पंपा से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर लंबी पर्वत श्रृंखला और घने जंगल हैं. इसी वन क्षेत्र में स्थित है सबरीमला मंदिर. इस मंदिर का असली नाम सबरिमलय है. यह पत्तनमत्तिट्टा जिले के अंतर्गत आता है. पंपा से सबरीमला मंदिर तक की यात्रा पैदल करनी होती है. यह मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है. मंदिर तक पहुंचने के लिए 18 पवित्र सीढ़ियों को पार करना होता है. इन सीढियों के अलग-अलग अर्थ भी हैं- पहली पांच सीढियों को मनुष्य की पांच इन्द्रियों से जोड़ा गया है. इसके बाद वाली 8 सीढ़ियों को मानवीय भावनाओं से और अगली तीन सीढियों को मानवीय गुण और आखिर दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक माना गया है.
अयप्पा के लिए हर कोई बराबर है
समानता का प्रतीक माना जाता है ये मंदिर
मक्का-मदीना के बाद यह दुनिया का दूसरा ऐसा तीर्थ माना जाता है, जहां हर साल करोड़ों श्रद्धालु आते हैं. दक्षिणी मान्यता के अनुसार भगवान अयप्पा स्वामी को ब्रह्मचारी माना गया है, इसी वजह से मंदिर में उन महिलाओं का प्रवेश वर्जित था जो रजस्वला हो सकती थीं. सिर्फ इस बात को नजरअंदाज कर दिया जाए तो इस मंदिर में सभी जातियों के पुरुष और महिलाएं(10 - 50 उम्र की नहीं) दर्शन कर सकते हैं. यहां आने वाले सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं. जहां काला रंग दुनिया की सारी खुशियों के त्याग को दिखाता है वहीं ये भी बताता है कि किसी भी जाति के होने के बाद भी अयप्पा के सामने सभी बराबर हैं.
मंदिर का पौराणिक महत्व
यह मंदिर अय्यपन देव या अयप्पा को समर्पित है. कंब रामायण, महाभागवत के अष्टम स्कंद और स्कंद पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों में शिशु शास्ता का उल्लेख मिलता है, अय्यपन उसी के अवतार माने जाते हैं. शास्ता का जन्म भगवन विष्णु की अवतार मोहिनी और शिव के समागम से माना जाता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है. इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है. हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा. इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है.
कैसे हुआ मंदिर निर्माण
सबरीमला मंदिर को भगवान परशुराम से भी जोड़कर देखा जाता है. माना जाता है कि भगवान परशुराम ने अय्यपन पूजा के लिए सबरीमला में मूर्ति की स्थापना की थी. कई विद्वान इसे राम भक्त शबरी से भी जोड़कर देखते हैं. वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि 700 से 800 साल पहले शैव और वैष्णव संप्रदाय के लोगों के बीच मतभेद बहुत बढ़ गए थे, तब उन मतभेदों को दूर कर धार्मिक सद्भाव बढ़ाने के उद्देश्य से अयप्पन की परिकल्पना की गई थी. इसमें सभी पंथ के लोग आ सकते थे.
नवंबर से जनवरी तक ही खुलता है मंदिर
कब होते हैं दर्शन-
मंडल काल या मंडल मासम सबरीमला मंदिर को समर्पित समय होता है जो 41 दिनों का होता है. इस दौरान भक्त कठिन व्रत का पालन करते हैं, 41 दिन के मंडल काल के बाद 3 दिनों के लिए मंदिर बंद किया जाता है और चौथे दिन दर्शन के लिए खोला जाता है. ये मंदिर श्रद्धालुओं के लिए साल में सिर्फ नवंबर से जनवरी तक खुलता है. और मकरसंक्रांति तक दर्शन किए जाते हैं इसके बाद मंदर के पट बंद कर दिए जाते हैं.
कठिन व्रत का पालन करते हैं दर्शन करने वाले-
चूंकि इस मंदिर में 10 से 50 वर्ष तक की महिलाएं नहीं जा सकतीं इसलिए दर्शन करने वालों में पुरुषों की संख्या सबसे ज्यादा होती है. जो भी श्रद्धालु यहां आता है उसे यहां आने से पहले 41 दिनों का कठिन व्रत करना होता है. इसे दीक्षा या तप भी कहा जाता है. सबरीमला जाने वाले व्यक्ति को-
* समस्त लौकिक बंधनों से मुक्त होकर ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी है.
* सुबह उठकर और रात को सोने से पहले, दिन में दो बार नहाना जरूरी है. पानी गर्म नहीं होना चाहिए और सिर धोकर नहाना होता है. शुद्धता सबसे जरूरी है. नहाने से पहले कुछ नहीं खा सकते.
* खुश्बू का इस्तेमाल किसी भी तरह से नहीं होता. घर में बनी हुई चीजें ही इस्तेमाल की जाती हैं.
* खाना घर का बना ही खाया जाता है जिसे खुद अलग बर्तनों में बनाया जाता है. भोजन शाकाहारी ही करना चाहिए. दिन में पूरा खाना और रात को हल्का खाना और फल.
* जमीन पर ही सोना होता है. चादर या कंबल का इस्तेमाल कर सकते हैं.
* इस दौरान दाढ़ी या बाल नहीं कटवाए जाते.
* फिल्मों या मनोरंजन से दूर रहना होता है. अयप्पा के भजन और भक्ति गीत ही सुन सकते हैं. मन में अयप्पा का पाठ करते रहना होता है.
* हिंसा, बहस, विवाद से दूर रहना होता है. अश्लील शब्दों का इस्तेमाल नहीं होता.
* जीवन को बहुत ही सादगी से जीना होता है. घर में पूजा करें तो भी सादगी से, अमीरी नहीं दिखानी होती क्योंकि अयप्पा के लिए सब बराबर हैं.
* मन में सिर्फ श्रद्धा का भाव होना चाहिए. खुद को शांत रखने के लिए ध्यान लगाना होता है.
काले कपड़े पहनने होते हैं
* नंगे पैर रहना चाहिए. चप्पल जूतों का उपयोग न करें तो अच्छा होता है.
* पहली बार दर्शन को जाने वाले लोगों को कन्नीस्वामी कहा जाता है, जिन्हें काले कपड़े और मुण्डू धोती पहननी होती है. एक यात्रा के बाद गहरे नीले या नारंगी रंग के कपड़े पहन सकते हैं.
* इस दौरान कोई भी गलत काम नहीं करना चाहिए. जैसे- घूस लेना, हिंसा से जुड़ा कोई काम, गाली गलौज आदि.
* सिगरेट, शराब, तंबाकू या पान मसाला को हाथ तक नहीं लगाना.
* इस दौरान किसी की मृत्यु से जुड़े संस्कारों में नहीं जाते. साथ में तुल्सी का पत्ता रखते हैं जिससे खुद को शुद्ध कर सकें.
* महिलाओं से दूरी बनाकर रखनी होती है. किसी भी तरह के भावनात्मक बंधनों से खुद को मुक्त करना होता है.
* घर में प्रवेश करने से पहले पैर धोने होते हैं.
* गले में तुलसी या रुद्राक्ष की माला रखनी होती है. यात्रा या व्रत पूरा होने के बाद ही अयप्पा मंदिर के गुरुस्वामी ही वो माला उतारते हैं.
* शाम को पूजा करनी होती है और मंदिर जाना जरूरी है.
* यात्रा पूरी होने तक उन्हें अपने माथे पर चंदन का लेप लगाए रखना जरूरी होता है.
* मंदिर यात्रा के दौरान उन्हें सिर पर इरुमुडी रखनी होती है यानी दो थैलियां और एक थैला. एक में घी से भरा हुआ नारियल व पूजा सामग्री होती है तथा दूसरे में भोजन सामग्री. ये लेकर उन्हें शबरी पीठ की परिक्रमा भी करनी होती है, तब जाकर अठारह सीढियों से होकर मंदिर में प्रवेश मिलता है.
* श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं. पोटली नैवेद्य से भरी होती है.
कहते हैं जो कोई भक्त 41के इस व्रत को करके यात्रा पूरी करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है.
ये 41 दिन के नियम मंदिर की प्राचीन मान्यताओं के अनुसार बनाए गए हैं. जिसे दर्शन करने वालों को पालन करना ही होता है. लेकिन महिलाओं का मासिक धर्म चक्र 28 दिन का होता है इसलिए वो किसी भी तरह 41 दिनों का ये व्रत नहीं कर सकतीं, क्योंकि मान्यताओं के हिसाब से महिलाएं मासिक की वजह से अपवित्र हो जाती हैं और मंदिर में आने के योग्य नहीं होती. बच्चे, पुरुष और रजोनिवृत्ति महिलाएं ये व्रत कर सकते हैं इसलिए उनके मंदिर जाने पर कोई रोक-टोक नहीं है.
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