पाकिस्तान के हिंदू शवों को दफनाते क्यों हैं ?
पाकिस्तान में रहने वाले 80 प्रतिशत हिंदू यानी करीब करीब 70 लाख लोग शवों को जलाते नहीं बल्कि दफन करते हैं. वजह वो नहीं जो दिखाई और समझाई जा रही है, असल वजह अब जान लीजिए...
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मृत्यु जीवन का सत्य है, और इस सत्य को इसके आखिरी पड़ाव तक पहुंचाने के लिए हर धर्म के लोग अपनी परंपराओं को ध्यान में रखते हुए ही कर्म कांड करते हैं. हिंदू शव को मृत्यु के बाद जलाने में यकीन रखते हैं और मुस्लिम दफनाने में.
लेकिन पाकिस्तान में रहने वाले ज्यादातर हिंदू शवों को जलाते नहीं बल्कि दफनाते हैं. अपनी परंपराओं के साथ इतना बड़ा समझौता करना शायद किसी को भी अजीब लगे. लोग ये भी कह सकते हैं कि पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देश में तो ऐसा करना मजबूरी हो सकता है, लेकिन वजह कुछ और ही है.
सूने पड़े हैं श्मशान घाट-
कराची एक बड़ा शहर है. हिंदुओं के लिए ये सबसे बड़ा श्मशान घाट यहीं लयारी में है. लेकिन एक सदी से भी ज्यादा पुराना ये श्मशान घाट अंग्रेजों के जमाने में बनवाया गया था और ये करीब 22 एकड़ में फैला हुआ है. लेकिन इस श्मशान घाट में मौत जैसा ही सन्नाटा पसरा हुआ है. आवाजों के नाम पर कौओं, कबूतरों और चिड़ियों की आवाजें ही बाकी रह गई हैं, यहां अब कोई क्रिया कर्म नहीं होता.
कराची का सबसे बड़ा श्मशान घाट
यहांं अब शायद ही कोई आता है
क्यों शवों को नहीं जलाते हिंदू-
पाकिस्तान में रहने वाले 80 प्रतिशत हिंदू यानी करीब करीब 70 लाख हिंदू शवों को जलाते नहीं बल्कि दफन करते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि हिंदू आबादी का एक बड़ा हिस्सा नीची जाति या फिर दलितों का है. ये परिवार दक्षिणी सिंध में रहते हैं और गरीब हैं.
क्रिया कर्म में करीब 8 हज़ार से 15 हज़ार का खर्च आ सकता है, क्योंकि इसके लिए लकड़ी, नारियल, घी, अगरबत्ती, मेवे आदि का इंतज़ाम करना होता है. सिंध के एक पंडित महाराज निहालचंद ज्ञानचंदानी का कहना है 'दलित हिंदुओं का एक बड़ा हिस्सा थार रेगिस्तान से आता है. इस रेगिस्तान में सूखे का इतिहास रहा है. 1899 में यहां ऐसा सूखा पड़ा कि भूख और बीमारी से आए दिन लोगों की मौतें होने लगीं, ऐसे में हर व्यक्ति के अंतिम संस्कार का इंतजाम करना बहुत महंगा और मुश्किल था, इसलिए लोग शवों को जलाने के बजाए दफनाने लग गए. और तभी से अब तक ऐसा करते आ रहे हैं.'
ये हैं हिंदुओं की कब्रें
लेकिन क्रिया कर्म करना हिंदू आस्था का अहम हिस्सा रहा है. हिंदू धर्म में माना जाता है कि शरीर 5 तत्वों से मिलकर बना होता है- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश. जब व्यक्ति की मृत्यु होती है तो पांचों तत्वों में बना शरीर वापस इन्हीं तत्वों में विलीन हो जाता है. आत्म आकाश में चली जाती है, शरीर अग्नि में जाता है और धुंआ वायु में मिल जाता है और राख को पानी में प्रवाहित किया जाता है.
हिंदुओं के कब्रिस्तान का एक दृश्य
लेकिन ऐसी स्थिति में कि परंपरा भी न टूटे, तो लोग शरीर को दफनाने से पहले शरीर का एक छोटा हिस्सा जैसे हाथ या पैर को अगरबत्ती की मदद से जलाते हैं और बाकी शरीर दफना देते हैं.
अलग होता है दफनाने का तरीका
हिंदू जब शव को दफनाते हैं तो उनका तरीका जरा अलग होता है. जैसे बहुत से हिंदू शवों को बैठने की मुद्रा में दफनाते हैं. घरवाले शव को कमल की मुद्रा यानी आलथी-पालथी लगाकर बैठाते हैं क्योंकि इसी मुद्रा को ध्यान मुद्रा कहा जाता है. और इसके लिए शरीर की लंबाई जितनी कब्र खोदने के बजाए सिर्फ गोल गड्ढ़ा खोदा जाता है और उसके ऊपर शंकु के आकार की समाधि बना दी जाती है.
कुछ समय पहले, ऐसी खबरें भी फैलीं कि पाकिस्तान में हिंदुओं को शवों को दफनाने के लिए मजबूर किया जाता है, क्योंकि वहां लोगों के लिए श्मशान घाट उपलब्ध नहीं हैं और उन्हें वहां धार्मिक कर्मकांड करने नहीं दिए जाते. लेकिन वहां के स्थानीय लोग इन बातों को सिरे से खारिज करते हैं. लयारी के ही एक युवा हिंदू नेता अशोक कुमार का कहना है कि 'पाकिस्तानी सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है. शवों को दफनाने की प्रथा को हम ही ने चुना है. और इसके लिए सिंध की सरकार ने हमारे कब्रिस्तानों के लिए हमें और जमीन भी उपलब्ध कराई है.'
तो पाकिस्तान में किसी हिंदू को शव जलाने के बजाए दफनाने पर कोई जोर जबरदस्ती नहीं का जाती बल्कि ये तो उनकी अपनी मर्जी है जो परिस्थितियों के द्वारा परंपरा बन गई है.
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