Mahashivratri 2022: भगवान शिव जैसा पति क्यों चाहती हैं लड़कियां?
एक तरफ मां पार्वती हैं जो खूबसूरत वस्त्र पहनती हैं, जेवरात पहनती हैं, श्रृंगार करती हैं और दूसरी तरफ भगवान शिव हैं जो वैरागी, भस्मधारी, श्मशानवासी हैं. भगवान शिव किसी राजा की तरह नहीं रहते हैं. उनके शरीर पर ना सोना है, ना चांदी, वह तो केवल बाघ की खाल, रुद्राक्ष, सांप और भस्म धारण करते हैं.
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Mahashivratri 2022: भगवान शिव (Lord Shiva) का भोलापन सभी को अपनी ओर सम्मोहित करता है लेकिन क्या सिर्फ भोले रूप को देखकर लड़कियां महादेव जैसा वर चाहती हैं? आखिर एक लड़की किसी ऐसे व्यक्ति को अपना पति क्यों बनाना चाहेगी जो नशा करता हो, जिसे बहुत तेज गुस्सा आता हो, जो पहाड़ों पर रहता है, जो विष पीता हो, जो अपने ही बेटे का सिर धड़ से अलग कर दे, जो सारी जिम्मेदारी पत्नी पर छोड़ कहीं दूर सालों के लिए निकल जाता हो...
एक तरफ मां पार्वती हैं जो खूबसूरत वस्त्र पहनती हैं, जेवरात पहनती हैं, श्रृंगार करती हैं और दूसरी तरफ भगवान शिव हैं जो वैरागी, भस्मधारी, श्मशानवासी हैं. भगवान शिव किसी राजा की तरह नहीं रहते हैं. उनके शरीर पर ना सोना है, ना चांदी, वह तो केवल बाघ की खाल, रुद्राक्ष, सांप और भस्म धारण करते हैं. भगवान शिव के के अंदर सांसारिकता का प्रपंच भी नहीं है. वे जंगली फूलों से सजे, ध्यान में मग्न, भांग पीकर वीणावादन करने वाले हैं.
भगवान शिव का संपूर्ण प्रेम सिर्फ मां पार्वती के लिए है, किसी और की तरफ उनकी दृष्टि कभी नहीं जाती
किसी भी लड़की के माता-पिता अपनी बेटी के लिए ऐसा वर देखना चाहते हैं जिसके पास छोटा सा ही सही अपना घर हो, जो अच्छे कपड़े पहनता हो, अच्छा खाता हो, जिसकी संगत अच्छी हो, जो अच्छा दिखता हो, जो अच्छा कमाता हो, जो व्यवाहिर हो, जो बेटी पर गुस्सा न करे, जो बेटी को दुनिया के सारे ऐशो-आराम दे, जो बेटी के रूप और गुण से मिलता-जुलता हो...लेकिन शिव तो इन सारी बातों से परे हैं फिर भी पति के रूप में कोई लड़की भगवान राम और भगवान कृष्ण की कामना नहीं करती.
लोग कहते हैं कि बेटा हो तो श्री राम जैसा, प्रेमी हो तो श्री कृष्ण जैसा और पति हो तो भगवान शिव जैसे....शादियों में भी मांगलिक कार्यक्रम में भगवान शिव के गीत गाए जाते हैं. भगवान शिव जैसा पति पाने के लिए सनातन काल से युवतियां श्रावण सोमवार का व्रत करती आई हैं. शिव की गृहस्थी में रुचि नहीं है लेकिन जब वे सती को खो देते हैं तो वह पूरी सृष्टि का विनाश करने निकल पड़ते हैं.
मोनिका एक मॉडर्न वुमेन हैं जो मेकअप इंडस्ट्री में काम करती हैं. वे खुद 16 सोमवार का व्रत कर चुकी हैं. एक सामान्य लड़की के नजरिए के हिसाब से मोनिका का कहना है कि शिव बहुत भोले है, दयालु है और उतने ही सरल भी....उनमें कुछ दिखावा नहीं है जबकि वे देवो के देव महादेव हैं.
शिवरात्रि पर कुंवारी लड़कियां शिव सा मनचाहा पति मांगती हैं तो शादीशुदा औरतों पार्वती सा अखंड अहिबात मांगती हैं. शिवरात्रि प्रेम की परिणति है और शिव के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन उनके विवाह का उत्सव ही है. समय चाहे कितना भी बदल जाए, पति या प्रेमी के तौर पर शिव की प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होगी. शिव हमेशा हर युग में स्त्रियों के लिए काम्य रहे हैं.
शिव का प्रेम सरल है और सहज है. उनमें समर्पण के साथ सम्मान भी है. शिव प्रथम पुरुष हैं लेकिन उनके किसी भी रूप में पुरुष वाला अहंकार नहीं झलकता. वे भांग का नशा करते हैं लेकिन कभी अपनी मर्यादा पार नहीं की, कभी नशे में किसी स्त्री का अपमान नहीं किया. शिव के अंदक जरा सा भी मेल ईगो नहीं झलकता.
शिवपुराण के अनुसार, सती के पिता दक्ष से अपमानित होने के बाद भी पुरुषों वाला अहंकार उनके दाम्पत्य में कड़वाहट नहीं ला पाया. अपने लिए न्योता नहीं आने पर भी उन्होंने सती के मायके जाने की जिद को सहजता से सम्मान किया. हालांकि आज के जमाने के किसी पति को उसके ससुराल की कोई भी बात जरा सी भी चुभ जाए तो वो सबसे पहले अपनी पत्नी का मायका जाना ही बंद कर दे.
शिव अपनी पत्नी पार्वती से इतना प्रेम करते हैं कि उनसे हमेशा संवाद करते दिखते हैं. सनातन धर्म के ज्यादातर पुराण और व्रतों की कहानियों में शिव पार्वती को कथा सुना रहे हैं. जो पुराण या व्रत कथा बनती है. वे ऐसे पति हैं जो अपनी पत्नी को सबसे अधिक समय देते हैं. भगवान शिव का पत्नी के लिए प्रेम किसी तीसरे के सोचने-समझने की परवाह नहीं करता, लेकिन जब भी पत्नी को कोई चोट पहुंचती है, तब उनके क्रोध में सृष्टि को खत्म कर देने का ताप आ जाता है.
शिव हमेशा पार्वती को स्वतंत्र रखते हैं. पार्वती अपने फैसले खुद लेती हैं. शिव अपनी पत्नी का सहारा नहीं बनते बल्कि उनका साथ देते हैं. शिव एक ऐसे देवता हैं जो अपनी पत्नी को अपने से पीछे नहीं बल्कि बराबर रखते हैं. महाकाव्यों में कहा गया है कि भगवान शिव से ज्यादा अपनी पत्नी का ख्याल रखने वाले कोई दूसरे देवता नहीं हैं. शिव जितना अपनी पत्नी को प्रेम करते हैं उतना प्रेम कोई देवता अपनी पत्नी से नहीं करता.
मां पार्वती जब महाकाली का रूप धारण करती हैं तो शिव अपनी पत्नी का गुस्सा खत्म करने के लिए उनके पैरों के नीचे आ जाते हैं. इसे नारीवाद का सबसे पहला उद्घोष माना जा सकता है. शिव अपनी पत्नी पार्वती को हमेशा बराबरी का आसन देते हैं. पति और पत्नी के बीच बराबरी का यह भाव किसी भी महिला को अच्छा लगता है. शिव न अपने प्रेम का हर्ष छिपाना जानते हैं, न अपने विरह का शोक.
कोई स्त्री जब किसी से प्रेम करती है तो अपना सर्वस्व लुटा देती है और इसलिए वह भगवान शिव जैसे पति की कामना करती है क्योंकि शिव शक्ति के प्रति अपने प्रेम में खुद को खाली कर देते हैं. कहा जाता है कि मां पार्वती का हाथ मांगने शिव, उनके पिता हिमालय के दरबार में सुनट नर्तक का रूप धरकर पहुंच गए थे.
हाथों में डमरू लिए, अपने नृत्य से हिमालय को प्रसन्न कर जब शिव से जब कुछ मांगने को कहा गया, तब उन्होंने पार्वती का हाथ उनसे मांगा था. कोई भी लड़की यह चाहती है कि वह जिस पुरुष से प्रेम करे वह दुनिया के सामने उसे अपनाने की और पिता से हाथ मांगने की हिम्मत रखता हो.
शिव के संसर्ग में पार्वती के पास कुछ ऐसा है, जिसे हासिल कर पाना आधुनिक समाज की औरतों के लिए आज भी बड़ी चुनौती है. उनके पास अपना अधिकार है. माता पार्वती के पास मां लक्ष्मी जैसा धन भले न हो लेकिन जब शिव तप के लिए परिवार छोड़ सालों दूर रहते हैं तो उनके सेवक, मित्रगण और परिवार के भरण की सारी जिम्मेदारी माता पार्वती पर सकुशल निभाती हैं. शिव को पता है कि उनके दूर जाने पर पार्वती उदास हो सकती हैं इसलिए तो वे उनके मनोरंजन की व्यवस्था के लिए 64 कलाएं, चतुरंग, चौसर, संगीत, वाद्य आदि का निर्माण करते हैं.
माना जाता है कि चौसर खेलने की शुरुआत शिव और पार्वती ने ही की. इससे पता चलता है कि गृहस्थ जीवन में स्वस्थ रिश्ते के लिए कर्तत्व निभाने के साथ-साथ एक साथ समय बिताना और मनोरंजन करना कितना जरूरी है. भगवान शिव अपने स्त्रीत्व को छूने से भी नहीं डरते हैं. अर्धनारीश्वर के रूप में आधा हिस्सा मां पार्वती का और आधा हिस्सा उनका रहता है.
महिलाओं को यह बात बहुत आकर्षित करती है कि भगवान शिव का संपूर्ण प्रेम सिर्फ मां पार्वती के लिए है, किसी और की तरफ उनकी दृष्टि कभी नहीं जाती. की कामना लड़कियां आज भी करती हैं. जब शिव सती को खो देते हैं तो वह पूरी सृष्टि का विनाश करने के लिए निकल पड़ते हैं.
शिव को माता पार्वती के पुत्र गणेश की जानकारी नहीं थी, क्योंकि पुत्र के रूप में गणेश के सृजन का फैसला पार्वती ने अकेले ही लिया था. उस वक्त शिव तपस्या में लीन थे लेकिन लौटने पर शिव ने गणेश को सहज तरीके से अपनाया. वो भी अपनी पत्नी से बिना कोई प्रश्न किए, बिना किसी संदेह किए क्योंकि पार्वती का हर निश्चय शिव को मान्य है.
शिव में क्षमा की शीतलता है. तभी तो बार-बार अलग होने के बाद भी शिव और पार्वती ने एक-दूसरे को पा ही लिया...मां पावर्ती शिव की अनुगामिनी नहीं, अर्धांगिनी हैं. शिव में ऐसी तमाम बातें हैं जिनके बारे में जिना लिखा जाए कम हैं. शिव गृहस्थ जीवन के अराध्य हैं, शिव का परिवार है, इसलिए हर महिला देवो के देव महादेव जैसे इंसान को पति के रूप में पाना चाहती है.
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