एविएशन सेक्टर में ग्रोथ 14 फीसदी, तो घाटा 9 हजार करोड़ रुपये क्यों?
किंगफिशर की कंगाली, एयर इंडिया का घाटा और अब स्पाइसजेट जमींदोज. आप चौंक सकते हैं कि ये सब तब हो रहा जब एविएशन सेक्टर में ग्रोथ 14 फीसदी की है.
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किंगफिशर की कंगाली, एयर इंडिया का घाटा और अब स्पाइसजेट जमींदोज. आप चौंक सकते हैं कि ये सब तब हो रहा है जब हमारा एविएशन सेक्टर सालाना 14% की ग्रोथ दर्ज कर रहा है. दुनिया के टॉप-5 देशों में शुमार है इंडियन एविएशन इंडस्ट्री.
देश का 30 फीसदी एयर ट्रैफिक नॉन-मेट्रो शहरों से आ रहा है, जिसके कुछ सालों में 45 फीसदी तक पहुंच जाने की उम्मीद है. देश में 200 छोटे एयरपोर्ट बनाए जाने हैं. तो इस लाजवाब ग्रोथ स्टोरी में कुछ एयरलाइन कंपनियां दम क्यों तोड़ रही हैं? इस साल में ऐसी कंपनियों का कुल घाटा 9 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचने की आशंका है.
किंगफिशर एयरलाइन के बेपरवाह खर्चों, बैंक से मिले कर्ज का अनुचित उपयोग, प्रबंधन-कर्मचारियों के बीच संघर्ष पर खूब बात हो चुकी है. एयर इंडिया का बेड़ा गर्क तो सरकार की बदनीयती और पैसों की फिजूलखर्ची ने कर दिया. खूब खबरें आ चुकी हैं कि कैसे 40 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में दबी यह सरकारी एयरलाइन ने पिछले साल भी पांच हजार करोड़ का घाटा खाया. लेकिन इस सबमें स्पाइसजेट का मामला दिलचस्प है. एक ऐसी एयरलाइन, जिसे लोग किफायती और समय का पालन करने वाली मानते थे. आइए समझते हैं इसकी बर्बादी की कहानी.
अपनी ही गलतियों से धड़ाम हुआ स्पाइस जेट
पहले एक उदाहरण लेते हैं. दिल्ली से चरखी-दादरी (हरियाणा) 100 किलोंमीटर की दूरी पर है. अब अगर कोई बस वाला इस सफर को 40 रुपये में पूरा करा दे, भले ही परिवहन लागत 50 रुपए हो तो? जो भी हो साहब, बस तो मिनटों में खचाखच भर जाएगी. दूसरे बस वाले ईर्ष्या करने लगेंगे. सालभर पहले तक ऐसे ही फॉर्मूले पर चलते हुए स्पाइसजेट लोकलुभावन बन गई. 2012-13 की कमाई में 31 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई. हवाई सफर कराने वालों में उसकी हिस्सेदारी 1.1 प्रतिशत से बढ़कर 19 प्रतिशत तक पहुंच गई. इंडिगो (31%) और जेट लाइट-जेट कनेक्ट (19.6%) के बाद तीसरे नंबर पर. लेकिन जल्द ही इस कामयाबी की हवा निकल गई.
- हर महीने किसी न किसी बहाने किराए में डिस्काउंट ऑफर दिए जाते थे. पिछले साल दिवाली धमाका ऑफर लाया गया. पहले टिकट बुक कराने वालों को 1800 रुपये में सफर कराया गया. इससे कंपनी को करीब 500 करोड़ रुपये की कमाई हुई. लेकिन खर्च उससे कहीं ज्यादा.
- यात्रियों की संख्या बढ़ी तो उम्मीद थी कि निवेशक भी आकर्षित होंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कंपनी के चीफ प्रमोटर मारन बंधुओं (कलानिधी-दयानिधी) के एयरसेल-मैक्सिस डील में फंसे होने के कारण निवेशकों ने पैसा लगाना सुरक्षित नहीं समझा. दयानिधी ने पिछले साल 200 करोड़ लगाए, जो नाकाफी रहे.
- एविएशन टर्बाइन फ्यूल. किसी भी एयरलाइन का 75% खर्च इसी पर होता है. हालांकि, सभी एयरलाइन कंपनियां इसकी महंगाई से जूझ रही हैं, लेकिन घाटे में डूब रहे स्पाइसजेट के लिए यह समस्या तब और विकराल बन गई जब तेल कंपनियों ने शर्त रख दी कि स्पाइसजेट को कैश पर ही तेल दिया जाएगा.
- पिछले साल फंड की कमी होने पर प्रमोटर और मैनेजमेंट के बीच खींचतान होने लगी. ऊंची ब्याज दरों पर लोन लिए गए. घाटा कम करने के लिए कुछ उडानें रद्द हुईं. सितंबर-अक्टूबर में तो रोज 2,500 करोड़ रुपये का औसत नुकसान हो रहा था. कंपनी ने किराया 5% बढ़ाया, इससे कमाई 12% बढ़ी लेकिन खर्चे 24% बढ़ गए.
- साल 2014 की शुरुआत से कंपनी दुष्चक्र में फंस गई. जितनी उड़ानें बढ़ रही थीं, उतना ही घाटा. कंपनी इंतजार करती रही कि कोई विदेशी फरिश्ता निवेश की सौगात लाएगा, लेकिन जब तक ऐसी कोई खबर आती, उससे पहले ही बाजार में यह बात फैल गई कि स्पाइसजेट भी किंगफिशर के हश्र को प्राप्त हो गई है.
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