यही रफ्तार रही तो 100 साल लगेंगे काशी को क्योटो बनने में
भारत और जापान के बीच काशी-क्योटो प्रोटोकॉल पर सहमति के एक साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन इस एक साल के दौरान जिस रफ्तार से इस प्लान पर काम चल रहा है उसे देख कर साफ कहा जा सकता है कि काशी को क्योटो बनाने का खेल एक या दो दशक का नहीं बल्कि पूरी शताब्दी तक चलेगा.
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क्या है काशी-क्योटो प्रोटोकॉल
- 30 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अाबे ने काशी-क्योटो प्रोटोकॉल पर समझौता किया.- इस समझौते के तहत दोनों देशों को इन दोनों शहरों के बीच ऐतिहासिक विरासत का संरक्षण, शहरी आधुनिकीकरण और संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग करना था.- इस समझौते के लिए बनी स्टीयरिंग कमेटी को वॉटर, वेस्ट, सीवर और ट्रांसपोर्ट मैनेजमेंट के लिए जापानी टेक्नॉलजी और मदद लेनी है.- क्योटो शहर के म्युनिसिपल डिपार्टमेंट के सहयोग से शहर के एतिहासिक विरासत को संभालना है.- क्योटो विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के बीच शोध संपर्क स्थापित करना है. काशी-क्योटो प्रोटोकॉल में दिक्कतें
- अभी तक वाराणसी से कुछ आला अधिकारियों ने महज क्योटो की यात्रा की है लेकिन उनकी बनाई पहली रिपोर्ट को रिजेक्ट किया जा चुका है और नई रिपोर्ट आना बाकी है.- काशी को क्योटो की तर्ज पर बनाने में लगे अधिकारियों को समझ नहीं आ रहा क्या करें.- इस प्लान के लिए बनी स्टेयरिंग कमेटी के पास नहीं है कोई वित्तीय अधिकार.- प्लान को लागू करने में लगी एजेंसियों के बीच काम आवंटन में आ रही दिक्कतें.- वाराणसी से क्योटो की यात्रा कर आए अधिकारियों को दोनों शहरों में नहीं मिली ज्यादा समानताएं.- वाराणसी के लोग ज्यादा बदलाव के पक्ष में नहीं हैं.- क्योटो की यात्रा पर गए आला अधिकारी का तबादला हो चुका है और नए अधिकारी को यात्रा के अनुभव की कोई जानकारी नहीं है.
काशी का अस्सी में काशीनाथ सिंह लिखते है कि बनारसी कल्चर ही सिर्फ शहर बनारस को बदलने का दम रखता है और यह शहर अपने कल्चर में बदलाव नहीं चाहता. जी, हां, अगर आप बनारस की तंग गलियों में लोगों को समझाने की कोशिश करेंगे कि उनकी की हुई गंदगी से गंगा मैली हो रही है, तो तपाक से जवाब यही मिलेगा कि मां गंगा खुद को साफ कर लेगी.
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या एक साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे के बीच हुए काशी-क्योटो प्रोटोकॉल पर हुई सहमति पर अमल नहीं किया जा सकता.
पिछले साल 30 अगस्त को दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच हुए समझौते को एक साल हो चुके हैं, और एक साल के दौरान इस प्लान को अमल में लाने की कोशिशों को देखकर तो साफ कहा जा सकता है कि एक या दो दशक नहीं, बल्कि काशी को क्योटो बनाने के सपने को साकार करने में शताब्दी भी कम पड़ सकती है.
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