सबसे बड़ा साइबर हमला: Cosmos Bank कांड बताता है कि हमारा रुपया खतरे में है
हैकर्स ने कॉसमोस को-ऑपरेटिव बैंक से करीब 94 करोड़ रुपए चुरा लिए हैं. साइबर हमले के जरिए ये देश की सबसे बड़ी चोरी है. इसमें एक हिस्सा SWIFT ट्रांजेक्शन का भी है. वही SWIFT जिसकी मदद से नीरव मोदी ने पीएनबी को चपत लगाई थी.
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जहां हम अपने पैसे सुरक्षा के लिए रखते हैं, इन दिनों उसी पर सबसे बड़ा संकट मंडरा रहा है. पीएनबी के करीब 12,000 करोड़ लेकर भागे नीरव मोदी और मेहुल चौकसी अभी तक सरकार की गिरफ्त में नहीं आए हैं ना ही बैंक अपने कर्जे से उबर पाया है. इसी बीच हैकर्स ने कॉसमोस को-ऑपरेटिव बैंक (Cosmos Bank) से करीब 94 करोड़ रुपए चुरा लिए हैं. आपको बता दें कि साइबर हमले के जरिए ये देश की सबसे बड़ी चोरी है. और भी हैरानी की बात ये है कि इस चोरी में एक छोटा हिस्सा SWIFT ट्रांजेक्शन का भी है. जी हां, वही SWIFT ट्रांजेक्शन, जिसकी मदद से नीरव मोदी और मेहुल चौकसी पीएनबी को चपत लगा कर चंपत हो गए. इतना बड़ा घोटाला होने के बावजूद ऐसा लगता है मानो सरकार और रिजर्व बैंक की नींद नहीं टूटी थी और अब हैकिंग की ये घटना भूकंप के उस झटके जैसी है, जो गहरी नींद में सोते हुए अचानक महसूस हो और नींद उड़ा कर चला जाए. स्विफ्ट से किसी को फायदा हो ना हो, लेकिन बैंकों को नुकसान खूब हो रहा है. पहले पीएनबी इसका शिकार बना था और अब कॉसमोस को-ऑपरेटिव बैंक हैकर्स के हत्थे चढ़ा है.
चोरी के लिए 15,000 ट्रांजेक्शन
सुनकर ही आपको अजीब लग रहा होगा कि कोई हैकर 15,000 हजार ट्रांजेक्शन करके चोरी करे और किसी को पता ना चले? सवाल ये भी उठ रहा होगा कि क्या इतने सारे ट्रांजेक्शन करने के लिए कोई टीम बैठी हुई थी? दरअसल, ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि ये सारी ट्राजेक्शन एक ही दिन में हुईं. 12,000 ट्रांजेक्शन के जरिए भारत के बाहर करीब 28 देशों से 78 करोड़ रुपए चुराए गए और 2841 ट्रांजेक्शन की मदद से भारत में भी 2.50 करोड़ रुपए की चोरी की गई. हैकर्स ने ऐसा करने के लिए एक खास सिस्टम बनाया था. जितना दिमाग इस हैकर ने चोरी करने में लगाया, उतना दिमाग अपना बिजनेस करने में लगाता तो शायद हजारों करोड़ की कंपनी खड़ी कर लेता.
ऐसे दिया चोरी को अंजाम
सबसे पहले 11 अगस्त (शनिवार, जिस दिन बैंक बंद थे) को हैकर्स ने बैंक के 'एटीएम स्विच सर्वर' पर मालवेयर अटैक किया और हजारों बैंक अकाउंट और एटीएम कार्ड का डेटा चुराया. ये डेटा उन यूजर्स का था, जो VISA और RuPay डेबिट कार्ड इस्तेमाल करते हैं. चोरी को अंजाम देने के लिए हैकर्स ने एक नकली मैकेनिज्म तक बना लिया था, जिसकी मदद से वह कॉसमोस बैंक के जरिए इस ट्रांजेक्शन को करने की मंजूरी ले सकते थे. इसके बाद भुगतान की राशि को पेमेंट गेटवे से मंजूरी लेने का तोड़ भी हैकर्स ने निकाल लिया था, जिसके बाद उनके मनचाहे अकाउंट में पैसे पहुंचा दिए गए. ये सब यहीं नहीं रुका. इन हैकर्स ने 13 अगस्त को SWIFT का भी इस्तेमाल किया और उसके जरिए भी 14.42 करोड़ रुपए चुराए.
SWIFT को चकमा देने के लिए बनाया मैकेनिज्म
बैंकों में SWIFT का इस्तेमाल विदेशों में पैसे भेजने के लिए किया जाता है. इसमें बैंक स्तर पर ही चार लोग शामिल होते हैं. पहले स्तर पर SWIFT ट्रांजेक्शन के लिए मैसेज जारी होता है. दूसरा उसे ऑथेंटिकेट करता है और तीसरा उस मैसेज को वेरिफाई करता है. इन सबके बाद चौथे स्तर पर एलओयू यानी लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग भेजने के बाद लेन-देन से जुड़ा प्रिंट आउट लिया जाता है. यानी सारी प्रक्रिया बैंक के भीतर ही होती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि हैकर्स ने ये सारी प्रक्रिया बिना किसी शख्स के सिर्फ हैंकिंग के जरिए एक मैकेनिज्म बनाकर कर ली. ये सारा पैसा हांगकांग में 'ALM Trading Limited' के नाम पर हेनसेंग बैंक के अकाउंट में ट्रांसफर हुआ. पीएनबी घोटाले के बाद जब नीरव मोदी और मेहुल चौकसी ने SWIFT ट्रांजेक्शन का दुरुपयोग किया था, तब भी ये बात उठी थी कि SWIFT को सीबीएस यानी कोर बैंकिंग सिस्टम से जोड़ना चाहिए, लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ. बस इसी का फायदा उठाया हैकर्स ने, और देश की सबसे बड़ी हैकिंग के जरिए चोरी को अंजाम दे डाला.
दूसरा सबसे पुराना और सबसे बड़ा को-ऑपरेटिव बैंक
बहुत से ऐसे भी लोग होंगे, जिन्होंने पहले कभी कॉसमोस को-ऑपरेटिव बैंक का नाम नहीं सुना होगा. यहां आपके लिए ये जानना बहुत जरूरी है कि ये बैंक 1906 में शुरू हुआ था, जिसका मुख्यालय पुणे में है. यह देश का दूसरा सबसे पुराना और दूसरा सबसे बड़ा को-ऑपरेटिव बैंक है. जो कोर बैंकिंग से जुड़ा है.
खैर, एक बैंक से 94 करोड़ रुपए चोरी हो जाना किसी बैंक के लिए बहुत बड़ी बात नहीं है. पीएनबी से तो 13000 करोड़ रुपए चले गए, लेकिन वो भी अभी तक चल रहा है. चिता की सबसे बड़ी बात वो है, जो खुद कॉसमोस को-ऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन मिलिंद काले ने कही है. काले के अनुसार कॉसमोस में वही सिस्टम इस्तेमाल किया जा रहा है जो देश के अधिकतर बड़े बैंक इस्तेमाल कर रहे हैं. यानी देश के सभी बैंकों पर ये खतरा मंडरा रहा है. अब हैकर्स किसी और बैंक को अपना निशाना बनाएंगे या फिर पकड़े जाएंगे, ये देखना दिलचस्प होगा. फिलहाल भारतीय रिजर्व बैंक के साथ-साथ विदेशी एजेंसियां भी इस मामले की छानबीन कर रही हैं. हालांकि, उम्मीद कोई नहीं है कि कुछ भी हाथ लगेगा. पहले भी हैकिंग के जरिए विदेशों से कुछ चोरियां हो चुकी हैं, लेकिन कोई हत्थे नहीं चढ़ा, क्योंकि बहुत से देश ऐसे मामलों की जांच में सहयोग नहीं करते. इस बार मामला थोड़ा बड़ा है तो शायद अन्य देशों का साथ मिल जाए.
कुलमिलाकर रुपया चौतरफा संकट से घिर गया है. नीरव मोदी जो रुपया लेकर भागा है, तो वह पकड़ में ही नहीं आया. मंगलवार की खबर आई कि डॉलर के मुकाबले इसकी गिरावट 70 रु. को पार कर गई. इस खबर से उबर पाते, तब तक पुणे के Cosmos Bank से खबर आ गई, जो देश के सबसे बड़े साइबर हमले का शिकार हुआ है. 'पहरेदार' कहां हैं?
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