ट्राई की ये नई पॉलिसी मुफ्त कॉल रेट और सस्ता इंटरनेट ना खत्म कर दे !
इस बार पॉलिसी में कॉल ड्रॉप के साथ-साथ डेटा ड्रॉप को भी शामिल किया गया है. ट्राई की ये पॉलिसी आ तो रही है ग्राहकों के फायदे के लिए, लेकिन ऐसा ना हो कि इससे ग्राहकों को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो जाए.
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कॉल ड्रॉप को लेकर समस्या इतनी बढ़ चुकी है कि इससे सिर्फ आम आदमी ही नहीं, बल्कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी परेशान हैं. कुछ दिन पहले ही उन्होंने इसका जिक्र किया था. 1 अक्टूबर से कॉल ड्रॉप को लेकर ट्राई एक नई पॉलिसी लागू करने जा रहा है. यूं तो कॉल ड्रॉप पर पहले से ही पॉलिसी बनी हुई है, लेकिन इस बार पॉलिसी में कॉल के साथ-साथ डेटा ड्रॉप को भी शामिल किया गया है. ट्राई की ये पॉलिसी आ तो रही है ग्राहकों के फायदे के लिए, लेकिन ऐसा ना हो कि इससे ग्राहकों को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो जाए. दरअसल, यहां इशारा किया जा रहा है टेलिकॉम कंपनियों के प्लान की तरफ. कहीं ऐसा ना हो कि कंपनियां अपने प्लान ही महंगे कर दें. अगर बात कॉल ड्रॉप की करें तो हर कंपनी में कॉल ड्रॉप की शिकायत आ रही है, ऐसे में ट्राई की ये नी पॉलिसी कहीं मुफ्त कॉल और सस्ता इंटरनेट ना छीन ले.
इस बार पॉलिसी में कॉल ड्रॉप के साथ-साथ डेटा ड्रॉप को भी शामिल किया गया है.
क्या है नई पॉलिसी में?
इस नई पॉलिसी को 4जी नेटवर्क को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है. इस तरह इसमें वीडियो कॉलिंग को लेकर भी नियम बनाए गए हैं, क्योंकि वीडियो कॉल में वॉइस कॉल के साथ-साथ इंटरनेट डेटा भी इस्तेमाल होता है. ट्राई की इस नई पॉलिसी के तहत प्लान में डाउलोडिंग के दौरान महीने में कम से कम 90 फीसदी समय तय स्पीड के तहत सर्विस देना जरूरी है. साथ ही, इंटरनेट के सामान्य ट्रांसमिशन में कम से कम 75 फीसदी समय तय स्पीड से सर्विस देनी होगी. इतना ही नहीं, इंटरनेट ड्रॉप रेट अधिकतम 3 फीसदी तक ही हो सकता है, इससे अधिक होने पर जुर्माना देना होगा. अगर महीने में 2 फीसदी से अधिक कॉल ड्रॉप होती है, तो वह तकनीकी दायरे में नहीं आएगी और कंपनी को जुर्माना देना होगा. हालांकि, अगर कॉल ड्रॉप 2 फीसदी तक रहेगी तो ये माना जाएगा कि किन्हीं तकनीकी कारणों के चलते ऐसा हुआ है.
क्या है कॉल ड्रॉप?
अगर फोन पर किसी से बात करने के दौरान फोन अपने आप कट जाए, तो इसे कॉल ड्रॉप कहा जाता है. नए नियमों में कॉल ड्रॉप की परिभाषा में कुछ और प्वाइंट जोड़े गए हैं. इनके अनुसार अगर आवाज रुक-रुककर आती है या फिर अगर आवाज नहीं आती है, तो इसे भी कॉल ड्रॉप कहा जाएगा. LocalCircles के एक सर्वे के अनुसार बहुत से लोगों को कॉल क्लेरिटी, वॉइस ब्रेक और कॉल ड्रॉप की दिक्कत होती है, जिसकी वजह से करीब 20 फीसदी लोग ऐसे हैं जो हर 5 में से 1 कॉल वाट्सऐप, स्काइप या अन्य तरह के ऑनलाइन कॉलिंग ऐप के जरिए कॉल करते हैं. अब नए नियमों के अनुसार कॉल ड्रॉप होने पर कंपनी पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
ग्राहकों को ऐसे हो सकता है नुकसान !
कॉल ड्रॉप की कई वजहें हैं. पहली तो ये कि फ्री वॉइस कॉलिंग और सस्ते प्लान मिलने की वजह से लोग अधिक कॉलिंग करने लगे हैं. दूसरा ये कि मोबाइल टावर अपेक्षाकृत कम हैं. 2जी और 3जी टावरों को कंपनियां 4जी में बदलने में लगी हुई हैं. और तीसरी वजह ये है कि कॉलिंग से कंपनियों की कमाई घटी है, जिसके चलते अब कंपनियां इंटरनेट डेटा से कमाई पर फोकस कर रही हैं. ऐसे में अगर कंपनियों पर कॉल ड्रॉप और इंटरनेट ड्रॉप को लेकर शिकंजा कसेगा, तो खुद को बचाने के लिए या तो कंपनियां टावर, टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस करेंगी या फिर अपने प्लान की कीमतें बढ़ाएंगी. प्लान की कीमत रातों-रात बढ़ाना कंपनी के लिए आसान है, बजाय तकनीक और इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने के. अगर प्लान महंगे हुए तो इससे ग्राहकों को ही नुकसान होगा.
जब से रिलायंस जियो ने बाजार में एंट्री मारी है, तब से तो कॉल क्वालिटी पर हर कंपनी ने फोकस करना लगभग बंद जैसा कर दिया है. खुद जियो की कॉल क्वालिटी भी अक्सर बेहद खराब रहती है. यानी ये तो साफ है कि पूरी टेलिकॉम इंडस्ट्री में कोई भी कंपनी ऐसी नहीं है, जिसकी सेवाओं बेहतर हों. बहुत से लोग शिकायत सिर्फ इसलिए नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें काफी सस्ती दरों पर प्लान मिल रहे हैं, लेकिन अगर कंपनियों पर जुर्माना लगेगा तो वह क्या करेंगी, ये देखना दिलचस्प होगा.
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