कार्टेल बनता है, टूटता है और फिर बन जाता है
देश के प्रतियोगिता कमीशन ने एक बार फिर एयरलाइन्स कंपनियों के कार्टेल पर उंगली उठाते हुए जुर्माना लगा दिया है. क्या सीसीआई के कदम से देश में प्रतियोगिता बढ़ेगी या फिर हमारी कंपनियां कार्टेल बनाकर कारोबार करने की आदी हो चुकी हैं...
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एवीएशन, सीमेंट, शुगर, मिल्क, बैंकिंग, टेलिकम्यूनिकेशन- ये कुछ इंडस्ट्री हैं, जिनमें प्रोडक्ट किसी भी कंपनी का हो, आप अनुभव करेंगे दाम सभी के एक साथ घटेंगे या बढ़ेंगे. वजह कुछ भी दी जाए, लेकिन जानकार मानते हैं कि इस सबकी वजह इन कंपनियों का आपस में गठजोड़ है.
ऐसे ही गठजोड़ या कहें कार्टेल पर अंकुश लगाने के लिए 2009 में कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) बनाया गया. उद्देश्य था कंपनियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा स्थापित कराना और अगर कोई कंपनी इस उद्देश्य के खिलाफ काम करती पाई जाती है तो उसे दंड देना. यह संस्था् अपने उद्देश्योंइ में कितनी कामयाब हुई, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है. सीसीआई के सामने सबसे पहला मामला 2010 में आया प्यापज की कीमतों में आई बेतहाशा वृद्धि की जांच करने का. इस जांच में क्याल निकला, यह तो पता नहीं चला लेकिन प्या ज की कीमतें बढ़ने का मामला लगभग हर साल ही सामने आता है. और लोगों को यह भी पता होता है कि कुछ कारोबारियों की जमाखोरी और कालाबाजारी के चलते ऐसा हो रहा है.
खैर, ऐसा भी नहीं है कि सीसीआई पूरी तरह से नाकाम है. 2012 में उसने 11 सीमेंट कंपनियों को कार्टेल बनाकर कीमतें बढ़ाने के लिए 6000 करोड़ रुपए से ज्या2दा का जुर्माना लगाया था. हालांकि, कंपनियों ने इसे कानूनी प्रक्रिया में उलझा दिया और वे जुर्माना देने से बच गईं.
2013 में सीसीआई ने रियल स्टेट डेवलपर्स (डीएलएफ) पर गठजोड़ बनाकर काम करने का आरोप सही पाया और डीएलएफ पर 630 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा दिया. हालांकि इस मामले में डीएलएफ ने जुर्माने की कुछ रकम सुप्रीम कोर्ट में जमा कराई है लेकिन यह मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है.
कार्टेल बनाकर कारोबार करने का ताजा मामला एविएशन इंडस्ट्री से आया है. सीसीआई ने तीन साल लंबी जांच के बाद तीन एयरलाइन्स कंपनियों पर 256 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. अपनी जांच में सीसीआई ने पाया कि निजी और सरकारी क्षेत्र की सभी एयरलाइन्स आपसी तालमेल बनाकर फ्यूल सरचार्ज निर्धारित कर रही हैं. जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कम कीमत होने पर ऑपरेटिंग कॉस्ट में आई कमी का फायदा उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है.
सीसीआई भी अपनी पूर्ववर्ती संस्था मोनोपॉली एंड रेस्ट्रिक्टिव ट्रेड प्रैक्टिसेस (MRTP) कमिशन के जैसी हो गई है. उसे बंद ही इसलिए किया गया था कि वह किसी भी जुर्माना या सजा नहीं कर पा रही थी. वैसे ही सीसीआई भी कार्रवाई तो बहुत करती है, लेकिन सजा किसी को नहीं मिली है.
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