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Updated: 27 जून, 2018 05:48 PM
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जीएसटी को लागू हुए अब 1 साल होने वाला है और इस टैक्स रिफॉर्म के आने के बाद से ही भारतीय अर्थव्यवस्था में कई बदलाव हुए हैं. इस टैक्स सिस्टम को लागू करने में करीब 1 दशक का समय लग गया और आखिरकार सभी जरूरी बदलाव (सरकार के अनुसार) करके जीएसटी लागू कर दिया गया.

जीएसटी को नरेंद्र मोदी ने एक देश एक टैक्स कहा, लेकिन इसपर विवाद अभी तक चल रहा है कि जीएसटी एक टैक्स न बन पाया. इसे आसान टैक्स कहा गया, लेकिन अभी भी कई ऐसी समस्याएं हैं जो जीएसटी को मुश्किल बनाए हुए हैं.

1. व्यापारियों के लिए सिर दर्द बन गया जीएसटी..

सबसे बड़ा चैलेंज जो शुरुआत से ही नाक में दम कर रहा है वो ये कि अभी तक व्यापारी और डीलर्स जीएसटी के पूरी तरह से ऑनलाइन सिस्टम को अपना नहीं पा रहे हैं. हर राज्य जहां भी काम करना हो वहां अलग रजिस्ट्रेशन. पहला पूरा साल इसी में निकला है. इससे सेंट्रलाइज्य रजिस्ट्रेशन का फायदा उठाने वाले सर्विस प्रोवाइडर्स को खासी दिक्कत हुई है.

पहले तीन रिटर्न प्रति माह भरने होते थे जो अब दो रिटर्न हो गए हैं और 1 सालाना रिटर्न. इसके अलावा, कई अन्य रिटर्न भी हैं जो इनपुट सर्विस प्रोवाइडर्स को भरने होते हैं तो एक तरह से देखें तो डीलर्स के लिए दो छमाही रिटर्न से बढ़कर करीब 25 रिटर्न सालाना हो गए हैं.

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सरकार 2018 के अंत तक इस मामले को ठीक करने की कोशिश कर रही है ताकि एक हाईब्रिड मॉडल बन सके. पर अभी के हालात देखें तो ये व्यापारियों के लिए एक बड़ा सिरदर्द है.

- जीएसटी रिटर्न सिर्फ व्यापारी ही नहीं सरकार को भी है समस्याएं...

जीएसटी रिटर्न की बात जहां तक है तो सिर्फ व्यापारियों के लिए ही समस्याएं नहीं हैं. इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक करीब 20 हज़ार करोड़ के रिफंड अभी भी सरकार के पास पेंजिंग पड़े हैं और इनमें से आधा पैसा इनपुट टैक्स क्रेडिट प्रोसेस में अटका हुआ है. समय-समय पर IGST में कुछ छूट दी गईं हैं जिनका असर रिटर्न पर पड़ा है. कई एक्सपोर्ट करने वाले तो ITC (इनपुट टैक्स क्रेडिट) रिटर्न फाइल ही नहीं कर पाए क्योंकि तकनीकी खामियां आ गईं. अगर इनपुट टैक्स क्रेडिट और एक्सपोर्ट अलग-अलग महीने में हो तो इसमें भी काफी दिक्कतें आती हैं.

2. बार-बार रेट बदलने की मुश्किल..

जीएसटी को लागू हुए पूरे एक साल होने वाले हैं, लेकिन अभी तक जीएसटी रेट स्लैब में लगातार बदलाव किया जा रहा है. ये मुश्किल सिर्फ सरकार को ही नहीं हुई है बल्कि इस मुश्किल के कारण व्यापारी भी खासे परेशान हुए हैं. रेस्त्रां में खाना खाने को ही ले लीजिए. पहले जो टैक्स 18% तक बढ़ गया था वो घटकर 5% हो गया. ये आम जनता के लिए तो अच्छा हुआ, लेकिन इससे रेस्त्रां मालिकों पर काफी असर पड़ गया. इसी तरह कई चीज़े घटती और बढ़ती रही हैं और जीएसटी की लिस्ट में अभी भी काफी सुधार की उम्मीद की जा सकती है.

3. E-way Bill सिस्टम का कन्फ्यूजन..

पूरे 1 साल की मेहनत के बाद कम से कम कुछ तकनीकी खामियां तो खत्म कर दी गई हैं जैसे पुरानी जानकारी को अपडेट करने की सुविधा, टैक्स देनदारी का ऑटोमैटिक एडजस्टमेंट लेकिन कई बातें हैं जो अभी भी नहीं ठीक हुई हैं. जैसे धीमा रिस्पॉन्स, रिटर्न फाइल करते समय आने वाली खामियां, आदि बहुत कुछ ऐसा है जो ठीक नहीं हुआ है.

अप्रैल 2018 में लॉन्च हुए नए इंट्रा स्टेट E-way Bill सिस्टम में तो और भी समस्याएं सामने आईं. ये व्यापारियों के लिए सिरदर्द बन गया है. जीएसटी का पूरा मकसद काम को आसान बनाना और कम समय में काम पूरा करना था, लेकिन इंट्रा स्टेट ईवे-बिल सिस्टम के कारण ये समस्या और बढ़ गई है.

एक उदाहरण से समझिए ईवे बिल सिस्टम के लागू होने के बाद से ही व्यापारियों को थोड़ा अधिर काम करना पड़ रहा है. मसलन चाय के व्यारापी को बागान से लेकर अपने गोदाम तक चाय लेकर आने के लिए हर बार एक बिल बनाना होगा. ये गोदाम 10 किलोमीटर से कम दूरी पर भी स्थित हो सकता है. शर्त ये है कि ऑर्डर की कीमत 1 लाख से अधिक होनी चाहिए. अब हर बार चाय का ऑर्डर एक जगह से दूसरी जगह ले जाते समय एक नया बिल देना थोड़ा पेचीदा है.

ईवे बिल पहले फरवरी 2018 में लॉन्च होना था, लेकिन कुछ खामियों के चलते ये 1 अप्रैल 2018 को लॉन्च हुआ है. इंट्रा स्टेट बिल होने से सरकार सभी सामान की ट्रैकिंग कर सकती है, लेकिन इससे व्यापारियों को कितनी समस्या हो रही है ये वो ही जानते हैं.

4. इनपुट क्रेडिट का झोल..

जीएसटी के लागू होने के समय सरकार ने इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम करने के लिए मैचिंग कॉन्सेप्ट प्रस्तावित रखा था. ये ऑनलाइन टैक्स सिस्टम के लिए रीढ़ की हड्डी बनाया गया. तकनीकी खराबियों के कारण मैचिंग कॉन्सेप्ट पूरा ही नहीं हो पाया और इसका असर ये हुआ कि डीलर्स को अभी भी डीलर्स को आसानी से इनपुट क्रेडिट नहीं मिल रहा. सबसे बड़ा चैलेंज इनपुट क्रेडिट के साथ अब ये हो गया है कि आधा प्रोसेस इलेक्ट्रॉनिक है और आधा मैनुअल. इससे न चाहते हुए भी ट्रांजैक्शन की कीमत ज्यादा बढ़ रही है.

5. जीएसटी को लेकर कई फर्जी धंधे भी चल रहे हैं..

जीएसटी को लेकर फर्जी धंधे सरकार अभी तक रोक नहीं पाई है. कई फर्जी कंपनियां ये दावा करती हैं कि वो आसानी से आपका रिटर्न फाइल करवा देंगी और ये समस्या उन व्यापारियों को झेलनी पड़ती है जो खुद रिटर्न फाइन नहीं कर पाते. 1 साल बाद भी बदलते नियमों और लगातार बदलते टैक्स रिटर्न फाइलिंग प्रोसेस ने इस तरह के फर्जीवाड़े को भी जन्म दिया है.

6. पेट्रोल और डीजल अभी भी जीएसटी के दायरे से बाहर..

पेट्रोल और डीजल अभी भी जीएसटी के दायरे से बाहर है और ये भी एक परेशानी का सबब है. जितनी भी बार इसपर बात हुई है उतनी बार ये कहा गया है कि इसे जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए. सरकार के पास रेवेन्यू खोने का ऑप्शन है या फिर महंगाई बढ़ाने का. पेट्रोल और डीजल के दाम कम होते ही ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट भी कम हो जाएगी और इससे सीधे तौर पर महंगाई पर असर पड़ेगा. जीएसटी लागू होने के साल भर बाद भी पेट्रोल और डीजल वाला मामला सरकार हल नहीं कर पाई है.

7. जनता अभी तक पूरी तरह से जीएसटी को समझ ही नहीं पाई है..

ये समस्या अधिकतर लोगों के साथ है. जीएसटी को समझना अभी भी उनके लिए मुश्किल हो रहा है. ये वो ग्राहक हैं जो पैसे चुकाते हैं और सामान लेते हैं. किराने के बिल में और अर्थव्यवस्था में हुए इस बदलाव का असर आम जनता को परेशान किए हुए है.

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