Ford की नाकामी का ठीकरा भारत पर फोड़ने वाले गलती कर रहे हैं!
भारत में सबसे बड़ा मार्केट छोटी कारों यानी 800 सीसी वाली कारों का है. फोर्ड के पास इस सेगमेंट में फिगो और फ्रीस्टाइल (6 लाख से शुरुआत) कारें हैं. लेकिन, भारत के बाजार के हिसाब से ये केवल मिडिल या लोवर मिडिल क्लास रेंज की कारें कही जा सकती हैं. वहीं, सेडान सेगमेंट में फोर्ड के पास एस्पायर, एसयूवी में इकोस्पोर्ट और एसयूवी सेगमेंट में एंडेवर मॉडल उपलब्ध था.
-
Total Shares
कोरोना महामारी से जूझ रहे उद्योगों का हाल दुनियाभर में तकरीबन एक जैसा ही है. कोरोना की वजह से थमा व्यापार का पहिया अभी भी पूरी तरह से घूमने के लिए संघर्ष कर रहा है. इस बीच अमेरिका की प्रमुख वाहन निर्माता कंपनी फोर्ड ने भारत में अपने कार मैन्युफैक्चरिंग प्लांट को इस साल के अंत तक बंद करने का निर्णय लिया है. करीब तीन दशक तक भारतीय बाजार में स्थापित होने के लिए संघर्ष करने के बाद फोर्ड अब देश में में केवल आयातित वाहनों को ही बेचेगी. कार उद्योग के बारे में जानकारी रखने वाले लोगों के बीच लंबे समय से ये चर्चा रही है कि फोर्ड भारत से अपना व्यापार समेट सकती है. हालांकि, 2019 में ऑटोमोबाइल कंपनी महिंद्रा के साथ हुए एक करार के बाद ये संभावना बढ़ गई थी कि फोर्ड अभी भी मार्केट में बनी रहेगी. लेकिन, इसी साल जनवरी में महिंद्रा के साथ हुआ उसका यह करार खत्म हो गया था. जिसके बाद फोर्ड के पैसेंजर वीकल्स मार्केट में बने रहने की संभावनाएं अचानक से शून्य हो गई थीं. कहा जा सकता है कि भारत के पैंसेजर वीकल्स मार्केट में करीब 2 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली फोर्ड के सामने अपना व्यापार समेटना ही आखिरी विकल्प बचा था. आइए जानते हैं वो कौन सी वजह हैं जिनके चलते फोर्ड को भारत को गुडबाय कहना पड़ा.
भारतीय कार बाजार के बारे में बात करने से पहले ये जानना जरूरी है कि आखिर भारतीय बाजार यानी मार्केट का फॉर्मूला क्या है? देश के अलग-अलग सेक्टर्स में कई तरह की कंपनियां अपना व्यापार कर रही हैं. भारतीय बाजार के फॉर्मूला को आसानी से समझने के लिए हम हिंदुस्तान यूनीलिवर कंपनी का उदाहरण ले लेते हैं. कंज्यूमर गुड्स कंपनी के तौर पर हिंदुस्तान यूनीलिवर के केवल सोप सेगमेंट पर नजर डालें, तो कंपनी के पास सस्ते सोप में लाइफब्वॉय से लेकर डव जैसा महंगा सोप भी मौजूद है. इन दो साबुनों के बीच हिंदुस्तान यूनीलिवर के पास लक्स, लिरिल जैसे सोप मिड सेक्शन में हैं. कंपनी के पास लोवर क्लास से लेकर अपर क्लास तक को टार्गेट करने के लिए प्रोडक्टस की लंबी रेंज है. अन्य प्रोडक्ट्स में भी इस कंपनी के पास ऐसी ही रेंज मौजूद है. कुल मिलाकर इस कंपनी के पास भारत के बाजार में हर तरह के ग्राहक पर अपनी पकड़ बनाने के लिए प्रोडक्ट्स हैं. तो, फोर्ड की भारत में हालत खराब होने की सबसे बड़ी वजह यहीं से साफ हो जाती है.
फोर्ड के पास भारत में फिगो, फ्रीस्टाइल, इकोस्पोर्ट, एस्पायर और एंडेवर मॉडल्स ही थे.
फोर्ड के पास भारत में फिगो, फ्रीस्टाइल, इकोस्पोर्ट, एस्पायर और एंडेवर मॉडल्स ही थे. भारत में सबसे बड़ा मार्केट छोटी कारों यानी 800 सीसी वाली कारों का है. फोर्ड के पास इस सेगमेंट में फिगो और फ्रीस्टाइल (6 लाख से शुरुआत) कारें हैं. लेकिन, भारत के बाजार के हिसाब से ये केवल मिडिल या लोवर मिडिल क्लास रेंज की कारें कही जा सकती हैं. वहीं, सेडान सेगमेंट में फोर्ड के पास एस्पायर, एसयूवी में इकोस्पोर्ट और एसयूवी सेगमेंट में एंडेवर मॉडल उपलब्ध था. अगर मारुति कंपनी से इसकी तुलना करें, तो उसके पास तकरीबन हर सेगमेंट में कार मॉडल्स की एक बड़ी रेंज है. ऑल्टो (3.15 लाख से शुरुआत), वैगन आर, स्विफ्ट जैसी कारों के दम पर उसने छोटी कारों के सेंगमेंट में अन्य ऑटोमोबाइल कंपनियों के लिए ज्यादा जगह ही नहीं छोड़ी है. इस साल मारुति की छोटी कारों के बाजार में 67 फीसदी हिस्सेदारी रही थी. और, यह केवल एक सेगमेंट की बात नहीं है. मारुति के पास सेडान, मल्टीयूटिलिटी वीकल्स, एसयूवी, वैन सेगमेंट में मॉडल्स की कोई कमी नहीं है. आसान शब्दों में कहा जाए तो, प्राइस रेंज में एक लाख बढ़ने के साथ मारुति के पास हर सेगमेंट की कार मौजूद है. और, ऐसा ही कुछ ह्युंडइ के साथ भी है.
सवाल उठेगा कि अगर ऐसा है तो, महिंद्रा भारतीय कार बाजार में कैसे टिकी हुई है, जबकि उसकी हिस्सेदारी भी कम है. इसका बहुत सीधा सा जवाब है कि महिंद्रा छोटी कारों के सेगमेंट की खिलाड़ी ही नही है. महिंद्रा कंपनी मल्टीयूटिलिटी वीकल्स और एसयूवी सेगमेंट में ही खेलती है और इस सेगमेंट में उसके मॉडल्स की रेंज काफी बड़ी है. इसी के साथ उसने मिड रेंज (6-10 लाख) की कारों को टक्कर देने के लिए केयूवी और टीयूवी मॉडल्स के सहारे अन्य कंपनियों को कड़ी चक्कर दे रही है. ये कारें ग्राहकों को मिड रेंज की प्राइस में मिनी एसयूवी का फील कराती हैं, तो लोगों के पास ऑपशन्स अपनेआप ही बढ़ जाते हैं. वहीं, भारतीय कार बाजार में मारुति और ह्युंडइ कंपनियों के बीच ही मुख्य रूप से प्रतिस्पर्धा चलती है. इन दोनों ही कंपनियों का भारतीय कार बाजार में सबसे ज्यादा बोलबाला है. ह्युंडइ कंपनी के पास भी कार मॉडल्स की एक बड़ी रेंज उपलब्ध है. वहीं, मिनी एसयूवी सेगमेंट में ह्युंडइ की किया मोटर्स ने मारुति, टाटा और महिंद्रा के लिए चुनौती खड़ा करना शुरू कर दिया है.
वैसे, मारुति का बादशाहत भी केवल छोटी कारों, कॉम्पैक्ट कार और वैन सेगमेंट में ही है. मारुति की छोटी कारों के बाजार में 67 फीसदी, कॉम्पैक्ट कार सेगमेंट में 64 फीसदी और वैन सेगमेंट में 98 फीसदी हिस्सेदारी है. जबकि, सेडान, एसयूवी और मल्टीयूटिलिटी वीकल्स सेगमेंट में मारुति को अन्य कंपनियों से कड़ी टक्कर मिलती है. एसयूवी सेगमेंट में तो मारुति की हिस्सेदारी 14 फीसदी ही रह गई है, जो 2018 में 26 फीसदी हुई करती थी. हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि भारत की पुरानी कंपनियों में शुमार मारुति को उसके सबसे बड़े सर्विस नेटवर्क का भी फायदा मिलता है. वहीं, फोर्ड के साथ सर्विस से जुड़ी समस्याएं आम हो गईं. कहा जा सकता है कि भारत में कार लेना लोगों एक बड़ा सपना होता है. वो केवल कार नही खरीदते बल्कि कंपनी से जुड़ते हैं. फोर्ड की सर्विस ग्राहकों से ये जुड़ाव नही बना सकी. कहना गलत नहीं होगा कि भारत के कुल पैंसेजर वीकल्स मार्केट में करीब 2 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली फोर्ड के सामने ये स्थिति आना तय था. हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि भारत में टैक्स वगैरह के मामले सरकार को थोड़ा लचीला होना होगा. लेकिन, फोर्ड के भारत छोड़ने की वजह मोदी सरकार नही है.
भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर के लिए फोर्ड का जाना एक झटका माना जा सकता है. लेकिन, इससे कंपनी के ग्राहकों पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है. ग्राहकों को पार्ट्स या सर्विस जैसी सुविधाएं भविष्य में भी मिलती रहेंगी. लेकिन, ये फोर्ड के लिए बुरी खबर कही जा सकती है. भारतीय कार बाजार बीते करीब दो सालों से मंदी की मार झेल रहा है और बढ़ने की जगह सिकुड़ता जा रहा है. कोरोना महामारी के चलते स्थितियां और बिगड़ गईं. हालांकि, इस साल ऑटोमोबाइल सेक्टर में कुछ तेजी आने के संकेत वर्ष की शुरुआत में ही मिले थे. लेकिन, प्रतिस्पर्धा से भरे ऑटोमोबाइल सेक्टर में गिने-चुने मॉडल्स के साथ केवल 2 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली फोर्ड के लिए हालात कहीं से भी अनुकूल नहीं कहे जा सकते थे. महिंद्रा के साथ उसका करार खत्म होना इसके पीछे बड़ा कारण माना जा सकता है. फोर्ड ने महिंद्रा के साथ हाथ मिलाकर भारतीय कार बाजार में अपने वीकल्स मॉडल्स की रेंज को बढ़ाने की कोशिश की थी. लेकिन, करार के समाप्त होते ही उसके रिवाइवल की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गई.
आपकी राय