WTO: अमेरिकी करोड़पति किसानों को सब्सिडी, गरीब भारतीय किसानों को मौत?
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में 160 देशों की बातचीत फिर से बेनतीजा साबित हुई है क्योंकि अमेरिका और तमाम विकसित देशों का अड़ियल रवैया इसे मुश्किल बना रहा है, ये अमीर देश भारत जैसे विकासशील देशों के किसानों का जीवन नारकीय बनाना चाहते हैं?
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नैरोबी में आयोजित वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन में भाग ले रहे 160 देश एक बार फिर किसी समझौते पर नहीं पहुंच सके. वजह अमीर देशों का असीमित लालच और उस लालच को पूरा करने के लिए भारत और चीन जैसे विकासशील देशों के किसानों की हालत बदतर बना देने की साजिश है.
दरसअल ये अमीर देश खुद तो अपने किसानों को सब्सिडी देते रहना चाहते हैं लेकिन भारत और दुनिया के विकासशील देशों को इसे खत्म करके उनके किसानों का जीवन नारकीय बना देना चाहते हैं. आइए जानें क्या है विकसित देशों का यह मनमाना रवैयाः
भारत के किसानों को दोहरी मौत मारना चाहते हैं अमीर देश!
डब्ल्यूटीओ समझौते के तहत हर देश को कृषि पर कुछ सब्सिडी देने का अधिकार है लेकिन इसके अलावा कोई भी और मदद देने पर रोक है. लेकिन अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के अमीर देश चाहते हैं कि भारत, चीन, ब्राजील और इंडोनेशिया को अपनी कृषि सब्सिडी और आयात शुल्क में कटौती करनी चाहिए ताकि अमीर देश अपने कृषि उत्पादों को आसानी से भारत जैसे देशों में भेज सकें. लेकिन इसमें सबसे ज्यादा विवादित बात ये है कि ये अमीर देश अपने किसानों को दी जा रही सब्सिडीज में कटौती नहीं करना चाहते हैं.
मतलब न सिर्फ सब्सिडी बंद करके आप अपने किसानों को और गरीब बनाइए बल्कि अपने बाजारों को विकसित देशों के सस्ते कृषि उत्पादों के लिए खोलकर अपने किसानों को दोहरी मौत देने का काम कीजिए. वाह रे विकसित देशों का लालच! विकसित देशों के लालच ने पहले ही विकास के नाम पर दुनिया को ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरा थमा दिया है और फिर भी वे अपने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अपने यहां होने वाले खतरनाक कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण लगाने के लिए तैयार नहीं हैं, उल्टे भारत और चीन जैसे विकासशील देशों पर ऐसा करने का दबाव डाल रहे हैं.
1995 के समझौते में एक और मांग उठी, जिसके मुताबिक विकासशील देशों की कृषि सब्सिडीज की गणना 1987 की कीमत के अनुसार की जानी चाहिए. इसके आधार पर 2013-14 का 17 लाख करोड़ का कुल कृषि उत्पादन 1987 की गणना के मुताबिक महज 1.8 लाख करोड़ का रह जाएगा. जिसके बाद इस पर 10 फीसदी की सब्सिडी की सीमा के साथ कुल सब्सिडी महज 18 हजार करोड़ रुपये ही होगी जोकि 2013-14 में 2.6 लाख करोड़ रुपये थी. अमीर देशों की इन चालबाजियों से भारत जैसे विकासशील देशों के किसानों की मुश्किलें और बढ़ेंगी. यही वजह है कि भारत, चीन समेत तमाम विकासशील देश विकसित देशों की इन मांगों का विरोध करते आए हैं.
अमीर देशों के अमीर किसानों को मिलती रहेगी सब्सिडीः
विकाशील देशों को अपनी सब्सिडीज में कटौती के लिए दबाव डाल रहे अमेरिका और बाकी के अमीर देशों का मनमाना रवैया जानकार आपके होश उड़ जाएंगे. एक स्टडी के मुताबिक वर्ष 2014 में अमेरिकी सरकार ने विभिन्न कृषि सब्सिडीज के तौर पर 12 अरब डॉलर खर्च किए. 1995 से अमेरिका अपने किसानों को 256 अरब डॉलर की सब्सिडीज दे चुका है. वहीं यूरोपियन यूनियन ने पिछले वर्ष अपने किसानों को 59 अरब यूरो की सब्सिडीज दी. इसके बावजूद भी ये अमीर देश भारत द्वारा खाद्य सब्सिडी के तौर पर दी जाने वाली 25 लाख करोड़ रुपये की सहायता का विरोध करते रहे हैं.
अमेरिकी किसानों की आय भारतीय किसानों से 70 गुना ज्यादा
ये भी तब जबकि अमेरिका और भारत के किसान की आर्थिक स्थितियों में जमीन-आसमान का अंतर है. अमेरिका में एक किसान की सलाना आय 84649 डॉलर (5613367 रुपये) प्रति वर्ष है जोकि एक औसत अमेरिकी से 70 फीसदी ज्यादा है. वहीं भारत में हर साल कर्ज से डूबे हजारों किसान आत्महत्या कर लेते हैं. यही वह तबका है जो पूरे देश का पेट भरने के बावजूद आज भी देश के सबसे गरीब तबके में शामिल है. भारत में एक किसान की सलाना आय महज 81167 रुपये ही है. अब आप खुद ही अंदाजा लगाइए कि कहां हर साल 56 लाख रुपये कमाने वाला अमेरिकी किसान और कहां साल भर में महज 81 हजार रुपये कमाने वाला भारत का गरीब किसान. सरकारी सहायता की जरूरत किसे है? ये बात तो स्कूल का एक बच्चा भी बता देगा कि सहायता की जरूरत हर हाल में भारतीय किसानों को ही है लेकिन अमेरिका और उसके जैसे बाकी अमीर देश बेशर्मी से भारत और विकासशील देशों पर दबाव डाल रहे हैं कि वे अपने किसानों को सब्सिडी देना बंद करें. विकसित देशों की मनमाने रवैये का इससे ज्यादा जीता-जागता सबूत और क्या हो सकता है!!!
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