नोटों को छापने में आखिर कितना खर्च करती है सरकार ?
ATM से जब कड़क नोट बाहर आते हैं तो ये बहुत अच्छा लगता है, लेकिन क्या कभी सोचा है कि नोट छापने में कितना पैसा लगता है? आखिर RBI और सरकार मिलकर कितना खर्च करते हैं?
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नोटबंदी के ऐलान के साथ ही सरकार ने इस बात का आशवासन भी दिया था कि नोटों की छपाई हो रही है. नए नोट लेने के लिए पूरा देश लाइन में लगा हुआ है. ATM से जब कड़क नोट बाहर आते हैं तो ये बहुत अच्छा लगता है, लेकिन क्या कभी सोचा है कि नोट छापने में कितना पैसा लगता है?
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क्या कहते हैं आंकड़े-
जून 2016 तक रिज़र्व बैंक ने 2120 करोड़ करेंसी नोट छपे हैं, जिसके लिए करीब 3421 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. यह खर्च और बढ़ जाता है क्योंकि देश में छपने वाले नोटों के कई हिस्से बाहर से मंगवाए जाते हैं. जैसे कि जिस कागज़ पर छपाई की जाती है और जिस स्याही का इस्तेमाल होता है वो दोनों ही इम्पोर्ट किए जाते हैं. जिस कागज पर छपाई होती है उसका बेहद छोटा सा हिस्सा ही देश में बनता है. हमारे यहां होशंगाबाद एसपीएम में सिर्फ 5% करेंसी पेपर की छपाई ही होती है. ज़्यादातर यह कागज़ और स्याही जर्मनी की जीएस्की एंड डेवरेंट (Giesecke & Devrient) या ब्रिटेन की दे ला रू (De La Rue) कंपनी से मंगवाया जाता है. स्याही स्वित्जरलैंड से इंपोर्ट होती है. आनुमानिक तौर पर सालाना इसका खर्च 1500 करोड़ बैठता है.
सांकेतिक फोटो |
किस नोट की छपाई में लगता है कितना पैसा?
एक आरटीआई के अनुसार 5 रुपए का नोट छापने में 50 पैसा खर्च होता है, 10 रुपए के लिए 0.96 पैसे, 50 का नोट छापने में 1 .81 रुपए और 100 का नोट छापने में 1.79 रुपए की लागत आती है. नए नोट छापने में कितना खर्च होता है यह जानकारी अभी तक आम नही हुऐ है, लेकिन पुराने 500 और 1000 रुपए के नोट छापने में 3.58 और 4.06 रुपए का खर्च आता था. इसी तरह 10 के सिक्के की माइनिंग में 6.10 रुपए खर्च होते हैं.
देश में नोट के पेपर छापने वाला एकमात्र कारखाना मध्यप्रदेश के होशांगाबाद में स्थित 'सिक्योरिटी पेपर मिल' है. गौरतलब है कि इसकी स्थापना 1968 में हुई थी और यह सिर्फ 2.8 मेट्रिक टन पेपर बना सकता है. बाकी के पेपर जर्मनी, जापान और ब्रिटेन से मंगवाए जाते रहे हैं. 2015 में होशांगाबाद में एक नया यूनिट खोला गया और मैसूर सिक्योरिटी प्रेस के पास एक नए करंसी पेपर बनाने वाले प्लांट का काम शुरू किया गया. मैसूर वाली फैक्ट्री करीब 12,000 मेट्रिक टन नोट के लिए इस्तेमाल होने वाला कागज़ बना पाएगा और यह बन जाने के बाद देश को बाहर से कागज़ की आमदनी नही करनी पड़ेगी.
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इस सन्दर्भ में यह बताना भी ज़रूरी है कि देश का पहली नोट छापने वाली फैक्ट्री नासिक में 1926 में स्थापित की गई थी और वह 1928 से नोट छाप रही है. इसके बाद 1975 में देवास, मध्य प्रदेश में दूसरी, 1999 में मैसूर में तीसरी और 2000 में सालबोनी, पश्चिम बंगाल में चौथी नोट छापने वाली प्रेस की स्थापना की गई.
इस बात को नज़र में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोट छापने के काम को 'मेक इन इंडिया' के तहत करने का निर्देश दिया. जो नए 2000 और 500 के नोट आ रहे हैं उनमें से कुछ देश में बने हुऐ हैं. फ़िलहाल आरबीआई ने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि आखिर कितने नोट पूरी तरह से मेक इन इंडिया हैं.
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