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Updated: 10 मई, 2018 03:18 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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फ्लिपकार्ट-वॉलमार्ट डील (Flipkart-Walmart deal) हो चुकी है. ये यकीनन भारतीय ऑनलाइन शॉपिंग मार्केट के लिए बड़ी बात है. ग्राहकों को तो फायदा होने वाला है और भारत में ये बहुत बड़ा इन्वेस्टमेंट है, लेकिन कुछ लोग इस डील को लेकर अपनी अलग राय जाहिर कर रहे हैं. छोटे दुकानदार से लेकर बड़े जर्नलिस्ट तक सभी को इस डील से समस्या है. वॉट्सएप, ट्विटर, सोशल मीडिया सभी पर यही चल रहा है. 

पर क्या ये विरोध सही है? क्या इस डील को समझने में लोग देरी कर रहे हैं? जो लोग इस डील के विरोध में हैं उनके कुछ सवाल हैं..

1. अब भारतीय रिटेल मार्केट का क्या होगा?

2. रिटेल में FDI का विरोध शुरू से किया जा रहा था फिर वॉलमार्ट डील को क्यों होने दिया गया? ये FDI नहीं तो और क्या है?

3. RSS का कहना है कि ये डील भारत के हित के खिलाफ है. और ये मेक इन इंडिया अभियान को मार देगी.

4. लोगों का कहना है कि इससे छोटे दुकानदारों को बहुत परेशानी होगी इसके बारे में मोदी क्यों नहीं सोच रहे?

5. फ्लिपकार्ट एक भारतीय कंपनी है, इसे विदेशी क्यों होने दिया जा रहा है?

अब इन सब सवालों के जवाब..

1. भारतीय रिटेल मार्केट का क्या होगा?

बहुत आसान सा जवाब है कि कुछ नहीं. क्योंकि जितना दिखने में बड़ा लग रहा है उतना असर पड़ेगा नहीं. भारतीय रिटेल मार्केट और भारतीय ई-कॉमर्स मार्केट दोनों बहुत ही अलग हैं और उनका काम भी काफी अलग है.

Assocham और MRRSIndia.com की रिपोर्ट कहती है कि 2020 तक भारतीय रिटेल मार्केट 1.1 ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा जो 2017 तक 680 बिलियन डॉलर हो चुका है. यहीं अगर e-commerce मार्केट की बात करें तो इन्वेस्टमेंट बैंक Morgan Stanley की रिपोर्ट कहती है कि ये 2026 तक 200 बिलियन डॉलर पार कर जाएगा. अभी ये मार्केट 50 बिलियन डॉलर के करीब है.

फ्लिपकार्ट, सचिन बंसल, ईकॉमर्स, वॉलमार्ट, सॉफ्टबैंक, FDI

अगर इसे भी देखें तो भी ई-कॉमर्स और रिटेल मार्केट में अतंर साफ नजर आता है. ई-कॉमर्स एक अलग मार्केट प्लेस है जिसका रिटेल से सीधा सरोकार नहीं है. ऑर्गेनाइज्ड रिटेल मार्केट भारत में सिर्फ 6-7% ही है और इसका हिस्सा है ई-कॉमर्स, इसमें बिग बजार जैसे स्टोर्स भी आ जाते हैं. ऐसे में क्या वाकई ये कहना सही होगा कि इस डील के कारण भारतीय रिटेल मार्केट को कोई फर्क पड़ेगा? इसके हिसाब से तो रिटेल मार्केट का 2-4% ही ईकॉमर्स का हिस्सा है.

2. FDI क्यों होने दिया जा रहा है?

यहां फिर वही बात साफ होती है कि ये ऑनलाइन मार्केट प्लेस में हो रहा है. 2016 में ही सरकार ने ऑनलाइन मार्केट में 100% FDI की घोषणा कर दी थी. हालांकि, इसमें कई शर्तें लागू की गई थीं. 100% FDI ऑटोमैटिक रूट के लिए की गई थी, लेकिन ऑनलाइन बिजनेस में भी इन्वेंट्री आधारित मॉडल पर FDI की अनुमति नहीं दी गई है. मार्केट प्लेस मॉडल जैसे फ्लिपकार्ट जहां अन्य छोटे रीटेलरों से सामान लेकर उसे ग्राहकों तक पहुंचाया जाता है. विक्रेता फ्लिपकार्ट पर खुद ही रजिस्टर कर सकते हैं. ये कई छोटी भारतीय कंपनियों को बिना स्‍टोर खोल बिजनेस करने का माध्‍यम मुहैया कराता है.

इन्वेंट्री आधारित मॉडल मतलब ऐसा मॉडल जहां कंपनियां खुद ही सामान बेचती हैं. जैसे पतंजली और Fabindia की ईकॉमर्स साइट्स. ऐसे में मार्केट प्लेस मॉडल ज्यादा बेहतर होता है, क्योंकि इसमें पारदर्शिता ज्यादा होती है. दूसरा ये एक तरह से प्रॉफिट बिजनेस है जो कमीशन के आधार पर चलता है. जो विक्रेता और खरीददार के ट्रांजैक्शन के जरिए होता है.

तो अब ये बहस करना कि FDI भारत में लीगल नहीं है फिर भी क्यों हो रही है, ये गलत है और इसका कोई औचित्य नहीं है.

3. क्या वाकई ये डील भारत के हित के खिलाफ है और मेक इन इंडिया को मार देगी?

भारत में जब मॉल कल्चर आ रहा था तब भी ये विरोध हो रहा था. मॉल्स आएंगे और छोटे दुकानदारों के साथ गलत व्यवहार होगा. पर क्या हुआ? मैं ये नहीं कह रही कि इससे बिलकुल फर्क नहीं पड़ा, लेकिन अगर थोड़ा भी फर्क पड़ा है तो लाखों लोगों के लिए रोजगार भी पैदा हुए हैं. यही होगा वॉलमार्ट के साथ भी. Walmart कंपनी के सीईओ Doug McMillon का कहना है कि इस डील से भारत में 10 मिलियन से ज्यादा नौकरियां पैदा होंगी. ये रोजगार के लिए एक बेहतर अवसर बन सकता है.

RSS का कहना है कि अधिकतर सामान वॉलमार्ट चीन से खरीदता है और इसका असर मेक इन इंडिया पर भी पड़ेगा. ऐसा जरूरी नहीं है क्योंकि फ्लिपकार्ट पर ज्‍यादातर विक्रेता भारतीय ही हैं.

4. क्या वाकई छोटे दुकानदारों को परेशानी होगी?

जहां Flipkart डील को अभी तक वॉलमार्ट का सबसे बड़ा टेकओवर कहा जा रहा है. कई ट्रेडर संगठन और सेलर असोसिएशन इस डील का विरोध कर रहे हैं. ट्रेडर डर रहे हैं कि ये डील एक ऐसी ताकतवर कंपनी बना देगी. पर अगर देखा जाए तो वॉलमार्ट की सोर्सिंग (जहां से बेस्ट प्राइस के लिए सामान लिया जाता है) वो भारतीय है. अगर फ्लिपकार्ट में भी ये होता है तो यकीनन छोटे दुकानदारों के लिए बुराई नहीं फायदा ही होगा. और कम कीमत के कारण ग्राहकों को फायदा तो होगा ही.

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5. फ्लिपकार्ट एक भारतीय कंपनी है इसे विदेशी क्यों होने दिया जा रहा है?

अब ये पांचवे सवाल का जवाब कि फ्लिपकार्ट भारतीय कंपनी है तो उसे विदेशी हाथों में क्यों दिया जा रहा है. अधिकतर लोगों को ये नहीं पता कि फ्लिपकार्ट खुद सिंगापुर स्थित एक होल्डिंग कंपनी की तरह रजिस्टर है. इसके पहले भी फ्लिपकार्ट पर सबसे ज्यादा इन्वेस्टमेंट विदेशी कंपनियों का ही था. सबसे बड़ा शेयर होल्डर सॉफ्टबैंक (जापानी कंपनी) ही था. फ्लिपकार्ट बनाने वाले लोगों के पास भी सिर्फ कुछ ही हिस्सा था कंपनी का और इसलिए इसे पूरी तरह से भारतीय कंपनी कहना गलत है. हालांकि, फ्लिपकार्ट-वालमार्ट डील के बाद भी कंपनी के सीईओ बिन्‍नी बंसल ही रहेंगे. जो कि भारतीय ही हैं. :)

क्या बदलेगा..

अभी तक वॉलमार्ट बेस्टप्राइज स्टोर्स के जरिए भारत में मौजूद था और वह अपना सामान सिर्फ थोक-रिटेलरों को ही बेच सकता था. ये बिजनेस टू बिजनेस फॉर्मेट का इस्तेमाल कर रहा था. अब ये कस्टमर्स को भी बेच सकता है. मार्केट प्लेस में खुद स्टोर नहीं किया जा सकता है और न ही खुद इन्वेस्ट किया जा सकता है. 2007 में पहले फ्लिपकार्ट मार्केट प्लेस नहीं था और इन्वेंट्री पर आधारित था, लेकिन जैसे-जैसे कंपनी को फॉरेन इन्वेस्टमेंट की जरूरत पड़ी वैसे-वैसे कंपनी विदेशी होती चली गई.

ये जो वॉलमार्ट का इन्वेस्टमेंट हुआ है वो सिंगापुर में जो फ्लिपकार्ट की होल्डिंग कंपनी है उसपर हुआ है तो देखा जाए तो न ही कोई इन्वेस्टमेंट में बदलाव होगा. हां, कंज्यूमर्स को भी बहुत थोड़ा अंतर होगा. वॉलमार्ट के लिए ये बैकडोर एंट्री कही जा सकती है क्योंकि ये मौजूदा FDI पॉलिसी के हिसाब से हुई है.

अब फर्क सबसे ज्यादा ये हो गया है कि 80% ऑनलाइन मार्केट का हिस्सा अमेरिकी कंपनियों पर आधारित हो गया है.

क्या होगा नुकसान?

इसमें सबसे ज्यादा फर्क पड़ेगा उन छोटी कंपनियों को जो भारत में ऑनलाइन ईकॉमर्स मार्केट का हिस्सा बनने की कोशिश कर रही हैं. ये भारत के स्टार्टअप कल्चर के लिए बुरी खबर है, क्योंकि ये अब MNC की जंग हो गई है. तो फर्क छोटे दुकानदारों को नहीं पर छोटी कंपनियों को जरूर पड़ेगा. सोर्स की भी बात सही है कि वॉलमार्ट और अमेजन कहीं से भी सामान ला सकते हैं. हालांकि, बिजनेस टुडे के एडिटर राजीव दुबे के अनुसार वॉलमार्ट 95% सोर्सिंग (सामान की खरीद) भारतीय सेलर से कर रहा है. तो अगर भारत में इतना बड़ा वॉल्यूम मैन्युफैक्चर होने लगेगा तो उसे सभी सप्लायर कॉम्पटीशन में आ जाएंगे. जैसे भारतीय कार मार्केट है जिसमें छोटी कार कंपनियां भारत में ऐसी हैं कि बाकी देशों के मार्केट उसका मुकाबला बमुश्किल ही कर सकें क्योंकि भारत में इतने ज्यादा वॉल्यूम में कारें बनाई जाती हैं. अगर वही वॉल्यूम फ्लिपकार्ट या वॉलमार्ट के सेलर भारत में बनाने लगे तो यकीनन ये अच्छी खबर है.

इस डील की टाइमिंग कुछ ऐसी है कि अभी पॉलिसी ठीक तरह से बनाई नहीं गई हैं, अभी स्टार्टअप कल्चर भारत में आया ही है ऐसे में ये डील टाइमिंग के कारण लोगों की चिंता का विषय बनी हुई है.

दूसरी बात ये है कि सचिन बंसल के पास लगभग 6 हज़ार करोड़ का फंड हो गया है और वो एक बेहतरीन इन्वेस्टर हैं. सचिन बंसल के पास इतना पैसा हो गया है कि वो कई फर्म्स के पास नहीं है, ऐसे में यकीनन स्टार्टअप इन्वेस्मेंट के लिए एक नया इन्वेस्टर तैयार हो गया है.

डेटा प्राइवेसी की बात करें तो यकीनन ये बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है. क्योंकि भारत में कोई भी डेटा पॉलिसी सही नहीं है और वॉलमार्ट के आने पर यकीनन डेटा अमेरिकी सर्वर पर जाएंगे. ये शायद भारतीय पॉलिसी की सबसे बड़ी खामी है.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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