नई मैगी में कहीं दब गई पुरानी मैगी की गंदगी
एक बार फिर से नई मैगी करोड़ों लोगों का पेट महज दो मिनट में भरने के लिए तैयार है. लिहाजा इस बात की गारंटी दी जानी चाहिए कि पुरानी मैगी की गंदगी नई मैगी के नीचे नहीं दबी है.
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भारत में नेस्ले की बहुचर्चित ब्रांड मैगी का पुनर्जन्म हो चुका है. दीपावली के शुभ मौके पर जहां एक तरफ पटाखों की गूंज के साथ देश में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा था वहीं ऑनलाइन रीटेलर स्नैपडील पर नई मैगी की रिकॉर्ड सेल के साथ वापसी हो रही थी. जी हां, महज 5 मिनट में नई मैगी के 60,000 पैकेट बिक गए. अब बच्चे हो या बड़े, दीपावली पर खुशी दोगुनी हो गई क्योंकि सभी का ‘दो मिनट’ का यह साथी उनकी भूख मिटाने के लिए तैयार है.
मई में ‘दो मिनट’ के इस साथी को खाने के लिए असुरक्षित पाया गया और 5 जून को इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इस आरोप के बाद नेस्ले ने बाजार में बिकने के लिए रखी 350 करोड़ रुपये लागत की 30 टन मैगी को नष्ट कर दिया था. ब्रांड मैगी को इससे भी बड़ा झटका लगा क्योंकि पिछले तीन दशकों में मैगी ने देश के 80 फीसदी नूडल बाजार पर कब्जा कर रखा था. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि देश के फूड प्रोडक्ट्स की जांच एजेंसियों ने मुंबई हाईकोर्ट में दावा किया कि मैगी में खतरे के स्तर से ज्यादा लेड की मात्रा पाई गई है. इसके साथ ही स्वाद को बेहतर करने के लिए इसमे मोनोसोडियम ग्लूटामेट की मात्रा भी पाई गई जबकि इसके पैकेट पर इस केमिकल का कोई जिक्र नहीं था. ये दोनों केमिकल दुनियाभर में इंसानों की मौत के लिए बड़े स्तर पर जिम्मेदार रही हैं. लगभग डेढ़ लाख लोग हर साल इन केमिकल्स के प्रदूषण से मारे जा रहे हैं.
लिहाजा, मैगी पर आरोप संगीन था. लेकिन सितंबर आते-आते देश ही नहीं दुनियाभर से जांच की रिपोर्ट मैगी को इन आरोपों से बरी करती गई. लोगों की एक बार फिर उम्मीद जगने लगी कि मैगी वापस आएगी. हुआ भी ऐसा. सितंबर में मुंबई की अदालत ने भी मैगी को सुरक्षित पाया. इसके बाद कंपनी ने नई मैगी को लांच करने के लिए दीपावली के शुभ अवसर को चुना. अब नवंबर में नई मैगी तो लांच हो गई. लेकिन आरोप लगाने वाले अदालत के फैसले के बाद चुप हैं. ब्रांड को दोबारा बाजार में जगह दिलाने के लिए मैगी भी चुप है. लेकिन क्या मेगी के फैन्स को भी चुप रहना चाहिए?
देश की अदालत, जांच एजेंसियों और स्वास्थ विभागों को पिछले 6 महीनें में मैगी के खिलाफ हुई जांच से लेकर उसे ग्रीन सिग्नल दिए जाने तक का पूरा ब्यौरा (व्हाइट पेपर) सरल भाषा में उपभोक्ताओं के सामने रखना चाहिए. आखिर मैगी में लेड और मोनोसोडियम ग्लूटामेट की मात्रा शुरुआती परीक्षण में खतरे के स्तर के ऊपर कैसे पाया गया? अगर शुरुआती परीक्षण के तरीके में कोई में कोई वैज्ञानिक त्रुटि थी तो जांच एजेंसियों ने इसे सुधारने के लिए क्या किया? स्वास्थ विभाग ने पिछली जांच पर प्रतिबंध लगाना जरूरी समझा तो क्या अब वह पूरी तरह आश्वस्त है कि नई मैगी पर आरोप नहीं लगेगा? अगर पिछले छह महीने का पूरा प्रकरण किसी गलती का नतीजा था तो वह गलती किसकी थी, किसी फूड इंस्पेक्टर की, किसी विरोधी कंपनी की, मैन्यूफैक्चरिंग में इस्तेमाल हो रहे पानी की या कुछ और?
इन सवालों के जबाव दो बातों के लिए जानना जरूरी है. पहला, एक बार फिर से मैगी करोड़ों लोगों का पेट महज दो मिनट में भरने के लिए तैयार है. लिहाजा, अब इसमें खतरा न होने की गारंटी मिलनी चाहिए. दूसरा, अगर किसी मल्टीनैशनल कॉरपोरेट के ब्रांड के साथ कोई साजिश हुई तो क्या वह खामियाजा नहीं मांगेगा. आखिर इस सवाल पर नेस्ले क्यों चुप है?
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