तो क्या ये सबसे बड़ी मंदी की शुरुआत है?
सोमवार को चीन की गिरावट के साथ दुनियाभर के शेयर बाजार धड़ाम हो गए. इसके अलावा क्रूड, करेंसी, प्रेशस मेटल में सोना-चांदी, रियल स्टेट सेक्टर जैसे तमाम एसेट क्लास गंभीर संकट के दौर से गुजर रहे हैं. और जब रूपर्ट मर्डोक जैसा व्यवसाई भी मान रहा है कि वैश्विक स्तर पर कोई बड़ा संकट उभर रहा है, तो ऐसे में छोटे निवेशकों का विचलित होना स्वाभाविक है.
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दुनिया के भूगोल को अगर आर्थिक नजरिए से आंकेंगे तो नजर आएगा कि उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में उभरे संकट की चपेट में दुनियाभर के शेयर बाजार आ गए हैं. बीजिंग में लगी आग की लपटें अमेरिका, यूरोप, समेत भारत तक आ पहुंची हैं. इसकी ताकीद भरभरा के गिरते शेयर बाजार करते हैं. दलाल स्ट्रीट पर खड़ा निवेशक अब इस पशोपेश में निश्चित होगा कि बाजार से पैसा निकाल सुरक्षित निवेश के लिए सोने में डाल दिया जाए? लेकिन ध्यान यह भी रखना होगा कि मंदी से उभरते अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने की आहट भर सोने की कीमतों में एक ताजा गिरावट का कारण बन सकती है, ऐसे में सवाल यह बड़ा है कि निवेशक जाए कहां?
अब आम आदमी का क्या होगा?
पिछले हफ्ते से जारी वैश्विक बाजारों में गिरावट पर प्रतिक्रिया देते हुए जब मीडिया मोगल रूपर्ट मर्डोक 20 अगस्त को ट्वीट करते हैं कि 'शेयर मार्केट के अलावा सभी जगह कीमतें गिर रही हैं'. इस गिरावट में मर्डोक भविष्य में गंभीर आर्थिक संकट को उभरता हुआ देख रहे हैं. इसके साथ ही मुर्डोक अगले ट्वीट में कहते हैं कि आर्थिक मंदी का अगर नया दौर शुरू होता है तो दुनिया के बड़े और शक्तिशाली देशों के पास भी इससे लड़ने के लिए अब कोई हथियार नहीं बचे हैं. मुर्डोक का कहना है कि दुनियाभर में कैपिटल (कैश) का अंबार लगा हुआ है इसके बावजूद कोई निवेश नहीं कर रहा है.
फीकी पड़ी सोने की चमक
देश में लोगों की सोने के प्रति असीम आस्था रही है. लेकिन पिछले कुछ महीनों में सोने की कीमतें वैश्विक बाजार पर कुछ इस कदर गिरी कि लोगों की इस असीम आस्था को तगड़ी ठेस पहुंची. शायद यह पहली बार ही रहा होगा कि सोने की कीमतें गिरती रहीं और लोग अगली गिरावट के इंतजार में बने रहे लेकिन किसी भी निचले स्तर पर निवेशकों ने सोने की मांग नहीं बढ़ाई. लिहाजा वैश्विक स्तर पर इस मेटल की कीमतों में आई गिरावट के बाद निवेशकों ने मान लिया है कि सोने में निवेश फिलहाल मुनाफे का सौदा नही रहेगा.
प्रॉपर्टी मार्केट में मंदी
पिछले दो-तीन साल से देश का रियल्टी सेक्टर मंदी के दौर से गुजर रहा है. डेवलपर्स बड़ी मात्रा में इनवेंट्री लिए बैठे हैं. नए कॉमर्शियल प्रोजेक्ट्स लांच करने में कॉरपोरेट जगत कोई रुचि नहीं दिखा रहे. ज्यादातर निवेशक मंदी के इस दौर में रियल स्टेट सेक्टर में फंसा महसूस कर रहे हैं. जानकार इसे रियल्टी बबल की संज्ञा दे रहे हैं और उन्हें दिखाई दे रहा है कि यह रियल्टी बबल फटने की तैयारी में है. ऐसे में नए निवेशकों के लिए रियल्टी मार्केट में घुसने का विकल्प सिरे से नकारने लायक है.
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