ऑनलाइन रीटेल में बड़े खतरे, कहां है कानून?
देश में उपभोक्ता की सुरक्षा के लिए मौजूद कानून ऑनलाइन शॉपर्स को किसी तरह की सुरक्षा नहीं देता. आखिर इंटरनेट और ऑनलाइन रिटेलर के विस्तार को देखते हुए क्यों नहीं उपभोक्ताओं के लिए नया कानून बनाया गया.
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बस कुछ क्लिक्स और आपके घर डेलिवर हो जाएगा आपके पसंद का सामान जिसे आप अपने लिए या किसी अपने को गिफ्ट करना चाहते हैं. इस माध्यम से खरीदारी का लुत्फ उठाने वालों की संख्या देश में तेजी से बढ़ रही है, हालांकि इस ऑनलाइन खरीदारी में खतरे भी बहुत हैं. इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों के हिसाब से भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. लिहाजा, ई-कॉमर्स की दुनिया की दिग्गज कंपनियों के राडार पर भारत सर्वोपरि है. जानकारों के मुताबिक पिछले कुछ साल में जिस तरह से ई-कॉमर्स के कारोबार का विस्तार हुआ है, उससे देश की अर्थव्यवस्था में कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं.
ई-कॉमर्स के विस्तार से हो रहे प्रमुख बदलाव
1. जेब में कैश की जगह ले रहा प्लास्टिक मनी
पिछले एक दशक के दौरान देश में प्लास्टिक मनी का प्रचलन तेजी से बढ़ा है. जिस तेजी के साथ बैंकों ने डेबिट और क्रेडिट कार्ड ऑफर करना शुरू किया है वह ई-कॉमर्स की देन. बैंकिंग क्षेत्र के लोगों का मानना है कि आने वाले दिनों में रोजमर्रा की खरीदारी में कैश की अहमियत कम हो जाएगी और डेबिट और क्रेडिट कार्ड पर निर्भर्ता से देश की अर्थव्यवस्थआ में अहम परिवर्तन देखने को मिलेगा.
2. छोटे शहरों में तेजी से हो रहा विस्तार
हाल में ही आए रिजर्व बैंक आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान देश में डेबिट कार्ड के इस्तेमाल में 16.3 फीसदी का इजाफा देखने को मिला. वहीं क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल भी 21.3 फीसदी बढ़ा है. इन आंकड़ों की खासियत यह है कि सबसे अहम ग्रोथ देश के टियर टू और टियर थ्री शहरों में देखने को मिली है. इन शहरों में स्थित छोटे संस्थान और ऑफिस भी अब नौकरी देने के साथ-साथ सैलेरी अकाउन्ट पर विशेष जोर दे रहे हैं.
3. हर घर में पहुंच रहा ब्रांड
पिछले कुछ साल में ई-कॉमर्स के विस्तार में सबसे खास बात यह देखने को मिली है कि अब देश के छोटे-बड़े शहरों में एक साथ कंज्यूमर को ब्रांडेड प्रोडक्ट उपलब्ध हो रहा है. इससे पहले आमतौर पर किसी विशेष ब्रांड की खरीदारी करने के लिए लोगों को नजदीक के मेट्रो सिटी की यात्रा करनी पड़ती थी. वहीं मेट्रो सिटी के रईसों में वीक एंड पर दुबई और सिंगापुर की प्रथा पर भी लगाम लग गई है. आज इंटरनेट पर आप दुनिया के किसी भी हिस्से में निर्मित क्वालिटी प्रोडक्ट को खरीद कर सीधे अपने घर पर डिलेवरी करा सकते हैं.
4. इंटरनेट पर शॉपिंग से बदल रही है बैंकिंग
देश में तेजी से प्लास्टिक मनी के इस्तेमाल से बैंकिंग का स्वरूप बदल रहा है. आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष में अभी तक क्रेडिट कार्ड के जरिए लगभग 72 हजार करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन किया जा चुका है. वहीं इस दौरान डेबिट कार्ड से लगभग 9 लाख करोड़ रुपये का ट्रांजैक्शन हो चुका है. बैंकिग जानकारों के मुताबिक इतनी बड़ी संख्या में हुए इन ट्रांजैक्शन के पीछे देश में तेजी से बढ़ रहा ई-कॉमर्स कारोबार है. एक दशक पहले तक जहां बैंकों को कस्टमर बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी और उसके बाद एक बड़ी वर्कफोर्स की मदद से उन्हें बैंकिग सुविधा देनी पड़ती थी, आज इतनी बड़ी संख्या में बैंकों से ट्रांजैक्शन हो रहा है और महज बैंक का सॉफ्टवेयर इस काम को अंजाम दे रहा है.
सभी बदलावों के केन्द्र में उपभोक्ता
ई-कॉमर्स और ऑनलाइन शॉपिंग के तेज विस्तार के केन्द्र में देश का सवा करोड़ उपभोक्ता बैठा है. एक दशक पहले तक दुनियाभर की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भारत को एक बड़े बाजार के रूप में देखती थीं. उनकी कोशिश जल्द से जल्द इस बाजार में अपने उत्पाद को उतार कर मुनाफा कमाने की रहती थी. वहीं देश की सरकारें इस विशाल उपभोक्ता बेस को विदेशी कंपनियों के हवाले करने से बचने के लिए देश में उत्पादन के स्तर को बढ़ाने की कोशिशों में लगी रहती थीं. लिहाजा देश में किराना स्टोर उत्पाद बेचने के लिए एक मात्र विकल्प था. उस वक्त देश में उपभोक्ताओं को बचाने के लिए कानून परिपक्व हो रहा था और शिकायतों का बड़ा अंबार उपभोक्ताओं के सामने पड़ा था.
ऑनलाइन रिटेल में मौजूद खतरे
1. इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी का खतरा
तेजी से बढ़ रहे ऑनलाइन रिटेल में देश के उपभोक्ताओं का उनके बैंकिंग से जुड़ा सारा का सारा ब्यौरा ऑनलाइन मौजूद रहता है. उनके डेबिट और क्रेडिट कार्ड से जुड़ी सारी जानकारी के चोरी होने और गलत हांथ में पड़ने का रिस्क है. ऑनलाइन रीटेलर्स को बड़ी संख्या में चोरी की हुई सूचनाओं के जरिए खरीदारी करने के मामले मिल रहे हैं.
2. खरीदे समान की गुणवत्ता
ऑनलाइन शॉपिंग के जरिए हो रही खरीदारी में ऐसी शिकायतें देखने को मिलती हैं कि उपभोक्ता को डेलिवर किया गया सामान इंटरनेट पर उसके पसंद किए गए प्रोडक्ट से अलग है. ऐसी स्थिति में सेलर वेबसाइट अक्सर इस बात की जिम्मेदारी लेने से कतराती हैं जिसके चलते ग्राहकों को या तो नुकसान उठाना पड़ता है या फिर सेलर वेबसाइट के दफ्तरों का चक्कर काटना पड़ता है. चूंकि, सेलर वेबसाइट खुद बेचे जा रहे प्रोडक्ट्स का निर्माण नहीं करता और वह महज बिचौलिए की भूमिका में बिकवाली कर रहा है, इसलिए इस गलती को मान लेने के बाद भी सुधारने में अच्छा खासा समय लगता है. इस दौरान उपभोक्ता का पेमेंट भी फंसा रहता है.
कंज्यूमर सुरक्षा के प्रस्तावित बिल में क्या है
1. केन्द्र सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक नए कंज्यूमर बिल में ट्राई और सेबी की तर्ज पर कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी को स्थापित करने का प्रावधान है. इस अथॉरिटी के पास देश में ऑनलाइन रिटेल कंपनियों के कामकाज पर निगरानी के साथ-साथ ग्राहकों की शिकायतों को फास्ट ट्रैक माध्यम से दूर कराने के लिए शक्तियां मौजूद रहेंगी.
2. नए बिल में यह भी प्रस्तावित है कि उपभोक्ताओं को बेहतर उत्पाद सुनिश्चित करने के लिए ‘उत्पाद दायित्व’ का प्रावधान है.
3. उपभोक्ता की शिकायत एक से ज्यादा लोगों के संबंध में होने की स्थिति में विनियामकीय अथारिटी को उत्पाद रिकॉल और लाइसेंस रद्द करने जैसे अधिकार दिए गए हैं.
4. किसी प्रोडक्ट की खराब क्वालिटी से अगर किसी उपभोक्ता के जीवन पर खतरा होने की शिकायत पाए जाने की स्थिति में रिटेलर के लिए उम्र कैद तक का प्रावधान किया गया है.
5. नया कानून पिछले दो दशकों से अमिरका और यूरोप में ऑनलाइन कंज्यूमर की सुरक्षा के लिए बने कानून की तर्ज पर बनाया गया है. इसके पारित होने के बाद देश में उपभोक्ताओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीफ दिया जा सकेगा.
पिछले कुछ साल में जिस तरह से देश में किराना स्टोर कमजोर पड़ रहे हैं, छोटी कंपनियों की जगह मल्टी नैशनल कंपनियां अपनी पैठ बना रही हैं, इसे देखते हुए यह जानकार अचरज होगा कि देश में ई-कॉमर्स के लिए कोई कानून नहीं है. मौजूदा समय में उपभोक्ता की सुरक्षा के लिए 1986 में बना कंज्यूमर एक्ट मौजूद है. हालांकि इसमें संशोधन करने के लिए प्रस्ताव संसद में पड़ा हुआ है, लेकिन सवाल यह है कि पिछले कुछ सालों में जब ई-कॉमर्स देश में अपनी जड़ों को मजबूत कर रहा था तो यहां कि सरकारों ने क्यों कानून नहीं बनाया जबकि अमेरिका और यूरोपीय देशों में ऐसा कानून पिछले डेढ़ से दो दशकों से काम कर रहा है.
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