'आम' बजट नहीं - ये वाला 2019 के लिए मोदी सरकार का चुनाव मैनिफेस्टो होगा!
संभव है मोदी सरकार बजट से बताना चाहे कि आर्थिक सुधारों की खातिर लोक लुभावन बजट जैसे कदम कतई जरूरी नहीं - वैसे भी नोटबंदी के बाद यूपी चुनाव और GST के बाद गुजरात चुनाव के नतीजे तो वो जीत ही चुके हैं.
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देश में GST लागू होने के बाद मोदी सरकार पहला आम बजट पेश करने जा रही है. बजट जैसी बहुत बातें 'सस्ता-महंगा' पहले ही हो चुका है. कुछ गुजरात चुनाव से पहले कुछ चुनाव के बीचोंबीच.
अब आम सवाल यही है कि आम बजट 2018 कैसा होगा? क्या ये बजट लोक लुभावन होगा? क्योंकि मौजूदा मोदी सरकार का ये आखिरी बजट होगा. अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संकेतों को समझें तो, ऐसा तो नहीं लगता कि सरकार का इरादा कोई पॉप्युलिस्ट बजट लाने का है. फिर कैसा होगा अरुण जेटली का पांचवां बजट? एक बात तो साफ है - जो भी होगा, बजट में निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी के 'मन की बात' जरूर होगी, वैसे भी अब तो चुनाव जिताने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर जा पड़ी है.
क्या बताते हैं अब तक के इशारे?
जॉर्ज बुश ने इराक युद्ध में बचे काम पूरे करने की बात कर अमेरिकी राष्ट्रपति के दूसरे टर्म का चुनाव जीते थे. ओबामा ने भी बचे हुए काम के नाम पर एक टर्म और मांगा - और अमेरिकी लोगों ने उन्हें पूरा मौका दिया. वैसे ध्यान दें तो मोदी सरकार के ज्यादातर प्रोग्राम 2019 के बाद ही पूरे होने वाले हैं. कुछ प्रोजेक्ट 2020 तो कई परियोजनाएं 2022 में पूरी होनी हैं. बुलेट ट्रेन भी पहली बार अगस्त 2022 में चलेगी.
आर्थिक सुधारों पर जोर बना रहेगा!
2014 के चुनावी घोषणा पत्र को आगे बढ़ाते हुए बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक पारी और मांगेगी - और इस मांग को जनता के बीच प्रधानमंत्री मोदी ही रखेंगे. अमित शाह तो बीजेपी के स्वर्णिम काल के लिए पंचायत से पार्लियामेंट और शासन के सिल्वर जुबली और गोल्डन जुबली सेलीब्रेशन की बातें करते रहते हैं - लेकिन मोदी ने अभी तक सिर्फ 10 साल की ही बात कही है. अब नोटबंदी की तरह ये पीरियड भी बढ़ता जाये तो बात अलग है.
राष्ट्रपति के अभिभाषण में भी इस बात के काफी संकेत हैं कि बजट में किन बातों पर जोर रहने वाला है. राष्ट्रपति के अभिभाषण में किसानों की आज को 2022 तक दोगुना करने की प्रतिबद्धता जतायी गयी. मतलब साफ है - बजट में इस बात को खास तवज्जो दी जाएगी. किसानों का मुद्दा वैसे भी ठंडा नहीं पड़ने वाला क्योंकि राहुल गांधी इसे लेकर सरकार पर लगातार हमलावर हैं. यूपी चुनाव से लेकर गुजरात चुनाव तक राहुल गांधी का किसानों से जुड़े मसलों पर जोर रहा - और बीजेपी को लगातार डर बना रहा कि कहीं कांग्रेस इस मामले में मुश्किलें न बढ़ा दे.
किसानों के अलावा राहुल गांधी का प्रिय विषय देश में रोजगार की कमी भी रहा है. यूपीए की इस मामले में चूक के लिए वो गलती भी मान चुके हैं. जब ये मसले आने वाले दिनों में मुद्दा बन कर छाये रहने वाले हैं ही तो सरकार बजट के जरिये जरूर कोई डिटरेंट ईजाद कर सकती है.
बजट में मिल सकती है अगले घोषणा पत्र की छाप
बीजेपी के 2014 के चुनाव घोषणा पत्र में जिन बातों पर खास जोर रहा वे थीं - महंगाई, रोजगार, स्वरोजगार, भ्रष्टाचार और काला धन. इन सभी के लिए बीजेपी ने विशेष प्रावधान की बात कही थी. बीजेपी ने सुशासन और समेकित विकास देने का वादा करते हुए ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ और ‘सबका साथ, सबका विकास’ स्लोगन पेश किया जिसे बीजेपी की सभी नेता वंदे मातरम् की तरह ही गाते रहते हैं.
चुनावों की कितनी चिंता?
देखा जाये तो मोदी सरकार ने 'एक भारत, एक टैक्स' लागू कर ही दिया है - और अब 'एक भारत, एक चुनाव' की तैयारियां चल रही हैं. मुमकिन है - किसी दिन 'एक भारत, एक बजट' जैसे स्लोगन भी गढ़े जायें, ठीक वैसे ही जैसे रेल बजट 2017 में आम बजट का हिस्सा ही बन गया.
बीजेपी के मैनिफेस्टो में जिक्र तो काले धन का भी था और मोदी के भाषण में ₹ 15-15 लाख आम लोगों के खातों में पहुंचाये जाने का भी, तब तक जब तक कि अमित शा ने साफ नही कर दिया - वो तो महज चुनावी जुमला था. मौजूदा दौर के 'पकोड़े' की तरह.
माना तो ये भी जा रहा है कि वित्त मंत्री कोई ऐसा रोड मैप भी लायें जिसके जरिये समझाया जा सके कि नये रोजगार देने के लिए सरकार ठोस कदम उठा रही है - और किसी को 'पकोड़े' जैसे नये जुमले के चक्कर में पड़ने की जरूरत नहीं है.
प्रधानमंत्री मोदी ने 31 दिसंबर को मन की बात में न्यू इंडिया के वोटर का स्वागत किया था - जाहिर है बजट में उनके लिए भी कुछ खास होना ही चाहिये.
सस्ते मकान से लेकर स्मार्ट सिटी तक चाहे जिस रूप में बजट में जगह पायें, सभी का फोकस 2019 ही होगा. आम तौर पर शहरी वोटर बीजेपी के साथ रहे ही हैं. अब शहरी वोटर के साथ साथ गांववाले भी उसकी महती जरूरत बनते जा रहे हैं. विरोधियों के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के इल्जाम को बीजेपी तारीफ में कसीदे के तौर पर भले लेती रहे, राष्ट्रवादी और देशद्रोही के दरम्यानी बहस में सर्जिकल स्ट्राइक का कितना बड़ा रोल होता है - बीजेपी आने वाले दिनों में उसका और ज्यादा फायदा उठाना चाहेगी ही. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के हिसाब से सैन्य खर्च करने के मामले भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश बन चुका है. इंस्टीट्यूट के अनुसार 2012 से 2016 के बीच दुनिया के कुल आयात का 13% भारत ने किया है. आतंकवाद के खिलाफ ढाई मोर्चों पर मुकाबले के लिए सैन्य बजट पर भी खास जोर होगा, समझा जा सकता है.
बाकी सब तो ठीक है, आधी आबादी के हिस्से में क्या आने वाला है? जिस हिसाब से मोदी सरकार का तीन तलाक पर जोर देखा गया, लगता है बजट में महिलाओं के लिए भी कुछ न कुछ सरप्राइज तोहफा जरूर होगा. महिला आरक्षण विधेयक को लेकर सोनिया गांधी की चिट्ठी भले ही ठंडे बस्ते में चली गयी हो - लेकिन उज्ज्वला स्कीम जैसी योजनाएं बीजेपी के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. कुछ कुछ वैसे ही जैसे यूपीए के दोबारा सस्ता में आने के लिए मनरेगा हमसफर बना था.
नोटबंदी और जीएसटी के बाद भी जीत
तस्वीर का दूसरा पहलू भी कभी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिये. खासकर तब जबकि प्रधानमंत्री मोदी रेल बजट खत्म करने और नीति आयोग बनाने से लेकर मुख्यमंत्रियों के नाम भी भूकंप के झटकों की तरह पेश करते रहे हों.
संभव ये भी है कि सरकार बजट से ये संदेश देने की भी कोशिश करे कि आर्थिक सुधारों की दिशा में वो पूरी मजबूती से बढ़ रही है और लोक लुभावन बजट जैसे कदम उठाना उसके लिए कतई जरूरी नहीं हैं. प्रधानमंत्री मोदी नोटबंदी लागू करने के बाद यूपी चुनाव जीते और जीएसटी के बाद हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव. लोगों को बीजेपी से भले ही शिकायत होने लगी हो, ब्रांड मोदी की लोकप्रियता बरकरार है - और मूडीज जैसी एजेंसियां भी आर्थिक नीतियों को सर्टिफिकेट दे चुकी हैं - जैसा भी हो ये तो तय है बजट 2018 पूरी तरह राजनैतिक होगा. बिलकुल 2019 के बीजेपी के चुनाव मैनिफेस्टो के करीब. शक की कोई गुंजाइश नहीं बचती.
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