इतना भी बेअसर नहीं रहा है नोटबंदी का फैसला
नोटबंदी के फैसले के बाद सरकार को ऐसी उम्मीद थी कि 15 लाख करोड़ नोट जो चलन में थे उनका एक हिस्सा वापस से बैंकों में नहीं आएगा. और ये जो हिस्सा बैंकों में नहीं आएगा वो काला धन होगा.
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आरबीआई ने नोटबंदी को लेकर अपनी जो रिपोर्ट जारी की है उसके अनुसार पिछले साल नोटबंदी के बाद सरकारी बैंकों में पांच सौ और एक हज़ार के पुराने नोटों में से लगभग 99 फ़ीसदी बैंकिंग सिस्टम में वापस आ गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी से पहले 1000 रुपये के 633 करोड़ नोट थे. जिसमें से 98.6 फीसदी नोट वापस जमा हो गए हैं. वहीँ कुल आंकड़े के मुताबिक बंद हुए 15 लाख करोड़ रुपये के नोटों में सिर्फ 16 हज़ार करोड़ रुपये के नोट जमा नहीं हुए.
हालांकि नोटबंदी के फैसले के बाद सरकार को ऐसी उम्मीद थी कि 15 लाख करोड़ नोट जो चलन में थे उनका एक हिस्सा वापस से बैंकों में नहीं आएगा. और ये जो हिस्सा बैंकों में नहीं आएगा वो काला धन होगा. मगर रिज़र्व बैंक के आकड़ों ने सरकार की इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. तो क्या जिस नोटबंदी को मोदी सरकार गेमचेंजर फैसला मान रही थी, वो बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुआ? क्या जिस फैसले को लोग आजादी की दूसरी लड़ाई मान घंटों कतारों में खड़े थे, वो बेकार चली गयी ?
नोटबंदी की ये लाइन किस काम की थी?
बहरहाल रिज़र्व बैंक के आकड़ें तो ऐसा ही बताते हैं. हालांकि इन आकड़ों से इतर अगर हम अपने आस पास के समाज में देखें तो पाएंगे कि नोटबंदी इतनी भी बेअसर नहीं रही. अगर रिज़र्व बैंक के आकड़ों को ही हम दूसरी तरह से देखें तो पाएंगे कि जो भी पैसे अब तक चलन में थे उनका एक बड़ा हिस्सा बैंकों से बाहर था. हालांकि नोटबंदी के बाद ये पैसा बैंक के सिस्टम में वापस आ गया और साथ ही सरकार के नजर में भी. इसका दूसरा पहलु यह भी है कि सरकार अब आसानी से किसी भी तरह के संदिग्ध ट्रांजेक्शन पर नजर रख पायेगी. और साथ ही इन रुपयों को अब कालाधन में बदलने में भी खासी मशक्कत करनी पड़ेगी.
दूसरा बदलाव जो नोटबंदी के बाद साफ़ तौर पर देखा जा सकता है वो है लोगों के मन में सिस्टम का डर. नोटबंदी के बाद कैश के चलन में काफी बदलाव देखने को मिला है. अब तक जहां लोग बड़ी आसानी से कैश का आदान प्रदान करते थे. तो नोटबंदी के फैसले के बाद बहुतेरे लोग कैश के बदले चेक के माध्यम से आदान-प्रदान करने को तरजीह दे रहे हैं.
नोटबंदी से किसका फायदा
आयकर भरने वालों के आकड़ों के अनुसार भारत में इस साल करीब 91 लाख नए टैक्स पेयर जुड़े हैं. यह आकड़ें आमतौर पर प्रतिवर्ष जुड़ने वाले टैक्स पयेर्स से 40-50 लाख ज्यादा हैं. इन आकड़ों से ये कहा जा सकता है कि लोगों में आर्थिक सुचिता बढ़ी है और ज्यादा से ज्यादा लोग सिस्टम से जुड़ कर अपना सहयोग देना चाहते हैं.
नोटबंदी के बाद रियल एस्टेट के क्षेत्र में भी खासा असर देखने को मिला है. रियल एस्टेट सेक्टर जो अपने दिन दोगुनी और रात चौगनी बढ़ने वाले दाम और काला धन खपाने के लिए काफी मुफीद मानी जाती थी, वहां के हालत आज कुछ और हैं. पिछले एक साल के दौरान रियल एस्टेट्स के दाम या तो गिरे हैं या अपनी जगह पर कायम हैं. इनमें किसी भी तरह कि बढ़ोतरी नहीं देखी गयी है. साथ ही एक और महत्वपूर्ण बदलाव जो इस सेक्टर में हुए हैं, वो है जेन्युइन होम बायर्स का आगमन. आम तौर पर बहुत सारे लोग इन्वेस्ट करने कि नियत से पैसे लगाते थे. मगर इस सेक्टर में इन्वेस्टर्स से ज्यादा जेन्युइन होम बायर्स पैसे लगा रहे हैं.
इसके अलावा जानकर होम लोन के सस्ते होने के पीछे भी नोटबंदी के फैसले को मानते हैं. जानकारों के मुताबिक नोटबंदी की वजह से बैंकों में काफी बड़ी मात्रा में डिपोजिट आया है. इसका फायदा बैंकों ने आम आदमी को सस्ते कर्ज के तौर पर दिया है. ये इसी से साबित होता है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल हाउसिंग दरों में 3 फीसदी तक कमी आई है. पिछले साल ये दरें जहां 10.5 से लेकर 12 फीसदी तक थीं, अब ये 8 से 9 फीसदी तक आ गई हैं.
अब क्या जवाब है सरकार के पास?
इसी तरह से नोटबंदी के बाद महंगाई दर में कमी आयी है. नवंबर 2016 में जहां यह महंगाई दर 3.63 फीसदी थी. तो वहीं जुलाई 2017 में यह घटकर 2.36 फीसदी पर आ गई. नोटबंदी के बाद कैशलेस ट्रांसक्शन में भी अच्छी खासी बढ़ोतरी देखी गयी है, जो सिस्टम में पारदर्शिता लाने के लिहाज से काफी अहम है.
कुल मिला कर अगर नोटबंदी के फैसले के बारे में कहा जाये तो सही दिशा में उठाया गया एक बेहतर कदम था, मगर इसको लागु करने में कई तरह की गड़बड़ियां दिखीं. और ये भी एक सच है कि इसके वो फायदे देखने को नहीं मिले जिसकी अपेक्षा सरकार या आम जनता कर रही थी. मगर इस फैसले के बाद सिस्टम में कई तरह के पॉजिटिव बदलाव भी देखने को मिले इसे नकारा नहीं जा सकता.और साथ ही इस फैसले को पूरी तरह विफल करार देना भी बेमानी ही होगी.
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