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Updated: 18 मई, 2015 09:17 AM
अंशुमान तिवारी
अंशुमान तिवारी
  @1anshumantiwari
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बीजेपी क्या भारतीय बाजार के सबसे बड़े उदारीकरण को रोकने की जिद छोड़ रही है? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुदरा कारोबार के शेर को जगाने की हिम्मत जुटा चुके हैं, जो 125 करोड़ उपभोक्ताओं व 600 अरब डॉलर के कारोबार की ताकत से लैस है और जहां विदेशी व निजी निवेश के बाद पूरी अर्थव्यवस्था में बहुआयामी ग्रोथ का इंजन चालू हो सकता है. अगर खुदरा कारोबार में 51 फीसदी विदेशी निवेश के फैसले पर नई सरकार की सहमति और बीजेपी व उसके सहयोगी दलों के राज्यों की मंजूरी दिखावा नहीं है तो फिर इसे मोदी सरकार की पहली वर्षगांठ का सबसे साहसी तोहफा माना जाना चाहिए. 

यह केवल बीजेपी की रुढ़िवादी जिद थी जिसके चलते देश के विशाल खुदरा बाजार को आधुनिकता की रोशनी नहीं मिल सकी, जो बुनियादी ढांचे, खेती, रोजगार से लेकर उपभोक्ताओं तक को फायदा पहुंचा सकती है. रिटेल का उदारीकरण होकर भी नहीं हो सका. पिछली सरकार ने सितंबर 2012 में मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी विदेशी निवेश खोल तो दिया लेकिन बीजेपी के जबरदस्त विरोध के बाद, निवेशकों को इजाजत देने का विकल्प राज्यों पर छोड़ दिया गया था. सियासत इस कदर हो चुकी थी कि किसी राज्य ने आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं दिखाई. 

खुदरा कारोबार में एफडीआई पर सरकार का यू-टर्न ताजा है क्योंकि इसी अप्रैल में, वाणिज्य व उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमन ने लोकसभा को बताया था कि मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश की नीति पर अमल पर कोई फैसला नहीं हुआ है. यह पहलू बदल शायद भूमि अधिग्रहण पर मिली नसीहतों से उपजा है. मोदी स्वीकार कर रहे हैं कि विपक्ष में रहते एक सख्त भूमि अधिग्रहण कानून की वकालत, बीजेपी की गलती थी. ठीक ऐसी ही गलती रिटेल में एफडीआइ के विरोध के जरिए हुई थी जिसे अब ठीक करने का वक्त है.

खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश की सीमा 51 फीसदी करने का निर्णय ठीक उन्हीं चुनौतियों की देन था जिनसे अब मोदी सरकार मुकाबिल है. मंदी व बेकारी से परेशान यूपीए सरकार खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश लाना चाहती थी ताकि ग्रोथ का जरिया खुल सके. यह एक क्रांतिकारी उदारीकरण था. इसलिए ग्लोबल छवि भी चमकने वाली थी. मोदी सरकार पिछले एक साल में रोजगारों की एकमुश्त आपूर्ति बढ़ाने या बड़े सुधारों का कौल नहीं दिखा सकी. अलबत्ता अब मौका सामने है. उद्योग मंत्रालय के ताजा दस्तावेज के मुताबिक बीजेपी, उसके सहयोगी दलों व कांग्रेस को मिलाकर राजस्थान, महाराष्ट्र कर्नाटक, आंध्र प्रदेश समेत 12 राज्य खुदरा कारोबार में विदेशी कंपनियों को प्रवेश देने पर राजी हैं. समर्थन की ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं बनी थी. यह विदेशी रिटेल कंपनियों को बुलाने का साहस दिखाने का सबसे अच्छा अवसर है. 

भारत की उपभोग खपत ही अर्थव्यवस्था का इंजन है जिसके बूते 2004 से 2009 के बीच सबसे तेज ग्रोथ आई थी. रिटेल बाजार के पीछे खेती है, बीच में उद्योग हैं और आगे उपभोक्ता. उपभोग खर्च ही मांग, रोजगार, आय में बढ़त, खर्च व खपत का चक्र तैयार करता है, जो रिटेल की बुनियाद है. रिटेल भारत में रोजगारों का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है जिसमें चार करोड़ लोग लगे हैं. स्किल डेवलपमेंट मंत्रालय मानता है कि 2022 तक इस क्षेत्र में करीब 5.5 करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा. यह आकलन इस क्षेत्र में विदेशी निवेश से आने वाली ग्रोथ की संभावना पर आधारित नहीं है. बोस्टन कंसल्टिंग की ताजा रिपोर्ट बताती है कि भारत का खुदरा कारोबार 2020 तक एक खरब डॉलर का हो जाएगा, जो आज 600 अरब डॉलर पर है. खुदरा कारोबार का आधुनिकीकरण, नौकरियों का सबसे बड़ा जरिया हो सकता क्योंकि सप्लाई चेन से लेकर स्टोर तक संगठित रिटेल में सबसे ज्यादा रोजगार बनते हैं. पारंपरिक रिटेल में विदेशी निवेश पर असमंजस के बीच ई-रिटेल के कारण असंगतियां बढ़ रही हैं. ई-रिटेल में टैक्स, निवेश, गुणवत्ता, पारदर्शिता के सवाल तो अपनी जगह हैं ही. इससे डिलीवरी मैन से ज्यादा बेहतर रोजगार भी नहीं निकले हैं. 

रिटेल में नया निवेश, कंस्ट्रक्शन की मांग को वापस लौटा सकता है जो इस समय गहरी मंदी में है और खेती के बाद रोजगारों और मांग का दूसरा बड़ा जरिया है. रिटेल उपभोक्ता उत्पाद उद्योगों के लिए नया बाजार और दसियों तरह की सेवाएं लेकर आता है जो कि मेक इन इंडिया का हिस्सा है. रिटेल का 60 फीसदी हिस्सा खाद्य व ग्रॉसरी का है जो कि प्रत्यक्ष रूप से खेती से जुड़ता है. आधुनिक रिटेल, किसानों और लघु उद्योगों के लिए एक बड़ा बाजार होगा.

रिटेल को लेकर कुछ नए तथ्य तस्दीक करते हैं कि सरकार इसके सहारे ग्रोथ के इंजन में ईंधन भर सकती है. जीडीपी की नई गणना के मुताबिक, आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार पांच फीसदी से बढ़कर 7.5 फीसदी पहुंचने के पीछे विशाल थोक व खुदरा कारोबार की ग्रोथ है. इस कारोबार के समग्र आकार को जीडीपी गणना का पुराना आंकड़ा पकड़ नहीं पाता था. पुराने पैमाने के तहत थोक व रिटेल कारोबार का, जीडीपी में योगदान नापने के लिए एनएसएसओ के रोजगार सर्वे का इस्तेमाल होता था लेकिन नए फॉर्मूले में सेल टैक्स के आंकड़े को आधार बनाया गया तो पता चला कि थोक व खुदरा कारोबार न केवल अर्थव्यवस्था का 20 फीसदी है बल्कि इसके बढ़ने की रफ्तार जीडीपी की दोगुनी है. 

भूमि अधिग्रहण कानून में बदलावों के विरोध में राहुल-सोनिया के भाषणों को, खुदरा में विदेशी निवेश के खिलाफ अरुण जेटली के भाषण के साथ सुनना बेहतर होगा. इससे यह एहसास हो जाएगा कि भारत की राजनीति चुनाव से चुनाव तक का मौकापरस्त खेल है और कांग्रेस-बीजेपी नीतिगत दूरदर्शिता में बेहद दरिद्र हैं. अलबत्ता फैसले बदलना साहसी राजनीति का प्रमाण भी है. इसलिए प्रधानमंत्री अगर नई सोच का साहस दिखा रहे हैं तो उन्हें भूमि अधिग्रहण के साथ 125 करोड़ लोगों के विशाल खुदरा बाजार के उदारीकण की हिम्मत भी दिखानी चाहिए जो केवल बीजेपी की दकियानूसी सियासत के कारण आगे नहीं बढ़ सका. उनका यह साहस अर्थव्यवस्था की सूरत और सीरत, दोनों बदल सकता है.

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लेखक

अंशुमान तिवारी अंशुमान तिवारी @1anshumantiwari

लेखक इंडिया टुडे के संपादक हैं.

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